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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
समझे नहीं मैं क्या कहना चाहता हूँ?
प्रश्नकर्ता : हाँ, चूड़ियों के मोल बिकता है।
दादाश्री : कौन-से बाजार में? कॉलेजों में! किस मोल बिकती हैं? सोने के दाम चूड़ियाँ बिकती हैं! हीरों के दाम चूड़ियाँ बिकती हैं! सब जगह ऐसा नहीं मिलता। सब जगह ऐसा नहीं है। कुछ लड़कियाँ तो सोना दें तो भी न लें। चाहे कुछ भी दें तो भी न लें! पर दूसरी तो बिक भी जाती हैं, आज की स्त्रियाँ । सोने के भाव नहीं हो तो दूसरे किसी दाम पर भी बिकती हैं!
(कोई स्त्री) पहले से सती न हों किन्तु बिगड़ जाने के बाद भी सती हो सकती हैं। जब से निश्चय किया तब से सती हो सकती हैं।
प्रश्नकर्ता : ज्यों-ज्यों उस सतीत्व की रक्षा करेंगे, त्यों-त्यों कपट खत्म होता जाएगा?
दादाश्री : सतीत्व में रहे तो कपट तो जाने ही लगेगा, अपने आप ही। आपको कुछ कहना नहीं पड़ेगा। वो मल सती है, वह तो जन्म से सती होती है। इसलिए उसे पहले का कोई दाग़ नहीं होता। आपको पहले के दाग़ रह जाते हैं और फिर बाद में पुरुष होते हो। सतीत्व से सब पुरा हो जाए। जितनी सतियाँ हुई थीं, उसका सब पूरा हो जाता है और वे मोक्ष में जाती हैं। कुछ समझ में आया? मोक्ष में जाते हुए सती होना पड़ेगा। हाँ, जितनी सतियाँ हुईं, वे मोक्ष में गईं, अन्यथा पुरुष होना पड़ता है।
प्रश्नकर्ता : हाँ, अर्थात् ऐसा निश्चित नहीं है कि जो स्त्री है वह लम्बे काल तक स्त्री के जन्म ही पाएगी। पर इन लोगों को पता नहीं चलता, इसलिए उसका उपाय नहीं होता है।
दादाश्री : उपाय हो तो स्त्री, पुरुष ही है। बेचारे उस गाँठ को जानते ही नहीं है और वहाँ पर इन्टरेस्ट आता है. वहाँ मज़ा आता है इसलिए पड़े रहते हैं। दूसरा कोई ऐसा रास्ता जानता नहीं इसलिए दिखाता नहीं। वह केवल सती स्त्रियाँ अकेली ही जानती हैं। सतियाँ अपने एक पति के
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य सिवाय और किसी का विचार ही नहीं करतीं और वह कभी भी नहीं। यदि उसका पति तुरंत मर जाए, चल बसे, तब भी नहीं। उसी पति को ही पति मानती है। अब ऐसी स्त्रियों का सारा कपट चला जाता है।
ये लड़कियाँ बाहर जाती हों, पढ़ने के लिए जाती हों, तब भी यों शंका। 'वाइफ' के ऊपर भी शंका। ऐसा सब दगा! घर में भी दगा ही है न, आजकल! इस कलयुग में खुद के घर में भी दगा होता है। कलयुग अर्थात् दगा का काल। कपट और दगा, कपट और दगा, कपट और दगा! इसमें किस सुख के लिए यह सब करते हैं? वह भी बिना होश. बेहोशी में!
प्रश्नकर्ता : किन्तु शंका से देखने की मन की ग्रंथि पड़ गई होती है वहाँ क्या एडजस्टमेन्ट लें?
दादाश्री: यह आपको नज़र आता है कि इसका चारित्र खराब है, तो क्या पहले नहीं था? यह क्या अचानक ही पैदा हो गया है? अत: यह संसार समझ लेने जैसा है, कि यह तो ऐसा ही है। इस काल में चारित्र संबंध में किसीका देखना ही नहीं। इस काल में तो सब जगह ऐसा ही है। खुला नहीं होता परंतु मन तो बिगड़ता ही है। उसमें स्त्री चारित्र तो निरा कपट और मोह का ही संग्रहस्थान, इसलिए तो स्त्री का जन्म आता है। इसमें सबसे अच्छा कि जो विषय से छूटे हों।
प्रश्नकर्ता : चारित्र में तो ऐसा ही होता है यह जानते हैं, फिर भी मन शंका करे तब तन्मयाकार हो जाते हैं, वहाँ क्या एडजस्टमेन्ट लें?
दादाश्री : आत्मा होने के पश्चात् अन्य में पड़ना ही नहीं। यह सभी फ़ोरिन डिपार्टमेन्ट (अनात्म विभाग) का है। हमें होम (आत्मा) में रहना। आत्मा में रहिए न ! ऐसा ज्ञान बार-बार मिलनेवाला नहीं है। इसलिए अपना काम निकाल लीजिए। एक आदमी को उसकी बीवी पर शंका होती रहती थी। मैंने उससे पूछा कि किस कारण शंका होती है? तूने देखा इसलिए शंका होती है? तूने नहीं देखा था क्या तब यह सब नहीं हो रहा था? हमारे लोग तो पकड़े जाएँ उसे 'चोर' कहते हैं। किन्तु पकड़े नहीं गए वे सभी