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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य नहीं है न! इसलिए पुरुष स्त्रियों से ठगे जाते हैं!
इसलिए जब तक 'सिन्सियारिटी-मोरालिटी' (सदाचार) थे, वहाँ तक संसार भोगने योग्य था। आजकल तो भयंकर दगाबाजी है। यह प्रत्येक को उसकी वाइफ' की बात बता दूँ, तो कोई अपनी वाइफ के पास जाएगा नहीं। मैं सबका जानता हूँ मगर कुछ कहता-करता नहीं। अलबत्त पुरुष भी दगाबाजी में कुछ कम नहीं है लेकिन स्त्री तो निरा कपट का कारखाना ही! कपट का संग्रहस्थान और कहीं नहीं होता, एक स्त्री में ही होता है।
। ये लोग तो 'वाइफ' जरा देर से आए तब भी शंका किया करते हैं। शंका करने जैसी नहीं है। ऋणानुबंध (कर्मों के लेन-देन का हिसाब) के बाहर कुछ होनेवाला नहीं है। उसके घर आने के बाद उसे समझाना परंतु शंका मत करना। शंका से तो उलटे अधिक बिगडेगा। हाँ. सावधान जरूर करना पर कोई शंका नहीं रखनी। शंका करनेवाला मोक्ष खो बैठता
भीतर से चोर ही हैं।
यदि आप आत्मा हैं, तो डरने जैसा कहाँ रहा? यह तो सब जो 'चार्ज' हो गया था, उसका ही 'डिस्चार्ज' है। जगत् स्पष्टरूप से 'डिस्चार्ज'मय है। 'डिस्चार्ज' से बाहर यह जगत् नहीं है। इसलिए हम कहते हैं न, 'डिस्चार्ज'मय है, इसलिए कोई गुनहगार नहीं है।
प्रश्नकर्ता : तो उसमें भी कर्म का सिद्धांत काम करता है न?
दादाश्री : हाँ, कर्म का सिद्धांत ही काम कर रहा है, और कुछ नहीं। मनुष्य का दोष नहीं है, यह कर्म ही बेचारे को घुमाते हैं। पर उसमें शंका करें, तो बिना वजह वह मारा जाएगा!
इसलिए जिसे पत्नी के चारित्र संबंधी शांति चाहिए तो उसे एकदम काले रंग की, गोदनेवाली (चमड़ी में सूई चुभाकर बनाई हुई आकृति वाली स्त्री) पत्नी लानी चाहिए ताकि उसके पर कोई आकर्षित ही न हो, कोई उसे रखे ही नहीं। और वही ऐसा कहे कि 'मुझे दूसरा कोई रखनेवाला नहीं है, यह जो एक पति मिले वही संभालते हैं।' इसलिए वह आपको 'सिन्सियर' (वफादार) रहेगी, बहुत 'सिन्सियर' रहेगी। अगर सुंदर हो तो उसे लोग (मन से) भोगेंगे ही। सुंदर हो तो लोगों की दृष्टि बिगड़ने ही वाली है। कोई सुंदर पत्नी लाए तो हमें (दादाश्री को) यही विचार आता है कि क्या दशा होगी इसकी?
पत्नी बहुत रूपवान हो तो वह भगवान को भूले न? और पति बहुत रूपवान हो तो वह स्त्री भी भगवान को भूलेगी। इसलिए सामान्य हो, मर्यादा में हो वह सब अच्छा।
ये लोग तो कैसे हैं? जहाँ होटल देखा वहाँ खाया। शंका रखने योग्य संसार नहीं है। शंका ही दुःखदायक है। अब जहाँ होटल देखा वहाँ खाया, उसमें पुरुष भी ऐसा करता है और स्त्री भी ऐसा करती है।
पुरुष भी स्त्रियों को पाठ पढ़ाते हैं और स्त्रियाँ भी पुरुषों को पाठ पढ़ाती हैं ! फिर भी स्त्रियों की जीत होती है, क्योंकि इन पुरुषों में कपट
अत: यदि हमें छूटना है, मोक्ष प्राप्त करना है, तो हमें शंका नहीं करनी चाहिए। कोई अन्य मनुष्य आपकी 'वाइफ' के गले में हाथ डालकर घूमता हो और यह आपके देखने में आया, तो क्या आप जहर खाएँगे?
प्रश्नकर्ता : नहीं, ऐसा किस लिए करें? दादाश्री : तो फिर क्या करें?
प्रश्नकर्ता : थोड़ा नाटक करना पड़ेगा, फिर समझाना पड़े। फिर जो करे वह 'व्यवस्थित'। दादाश्री : हाँ, सही है।
६. विषय बंद वहाँ दख़ल बंद इस संसार में लड़ाई-झगड़ा कहाँ होता है? जहाँ आसक्ति हो वहीं। झगड़े कब तक होते रहेंगे? विषय है तब तक! फिर 'मेरा-तेरा' करने लगते हैं, 'यह तेरा बेग उठा ले यहाँ से। मेरे बेग में साड़ियाँ क्यों रखीं?' ऐसे