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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य हो फिर वाणी फर्स्ट कलास हो जाती है और सारी शक्तियों का आविर्भाव होता है। सारे आवरण टूट जाते हैं।
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य किस तरह से है। यदि विचार यों ही नहीं आता तो बाहर देखने से भी विचार पैदा होते हैं।
विषय का विचार तो कब आता है? यों देखा और आकर्षण हुआ इसलिए विचार आता है। कभी कभार ऐसा भी होता है कि बिना आकर्षण हुए विचार आता है। विषय का विचार आया कि मन में एकदम मंथन होता है और जरा-सा मंथन हुआ कि वहाँ फिर तुरंत स्खलन हो ही जाता है। इसलिए हमें पौधा उगने से पहले ही उखाड़ फेंकना चाहिए। दूसरा सब चलेगा, पर यह (विषय का) पौधा बड़ा दुःखदायी होता है। जो स्पर्श नुकसानदायक हो, जिस मनुष्य का संग नुकसानदायक हो, वहाँ से दूर रहना चाहिए। इसलिए तो शास्त्रकारों ने यहाँ तक कहा है कि स्त्री जिस जगह पर बैठी हो उस स्थान पर मत बैठना, यदि ब्रह्मचर्य का पालन करना हो तो। और यदि संसारी रहना हो तो वहाँ बैठना।
प्रश्नकर्ता : वास्तव में तो विचार ही नहीं आना चाहिए न?
दादाश्री : विचार तो आए बिना रहता नहीं है। भीतर माल भरा हुआ है इसलिए विचार तो आएगा, पर प्रतिक्रमण उसका उपाय है। विचार नहीं आना चाहिए ऐसा हो तो गुनाह है।
प्रश्नकर्ता : (विषय का विचार ही न आए) वह स्टेज आनी चाहिए?
दादाश्री : हाँ, पर विचार न आने की स्थिति तो, लम्बे अरसे के बाद जब डिवेलप होते होते आगे बढ़ता है तब आए। प्रतिक्रमण करते करते आगे बढ़े, फिर उसकी पूर्णाहुति हो! प्रतिक्रमण करने लगे तो फिर पाँच जन्मों-दस जन्मों के बाद भी पूर्णाहुति हो जाएगी। एक जन्म में तो खत्म न भी हो।
१४. ब्रह्मचर्य से प्राप्ति ब्रह्मांड के आनंद की
इस कलियुग में, इस दुषमकाल में ब्रह्मचर्य का पालन बहुत मुश्किल है। अपना ज्ञान ऐसा ठंडकवाला है कि भीतर हमेशा ठंडक रहती है। इसलिए ब्रह्मचर्य का पालन कर सकते हैं। अब्रह्मचर्य किस कारण से है? जलन की वजह से है। सारा दिन कामकाज करके जलन, निरंतर जलन पैदा हुई है। यह ज्ञान है इसलिए मोक्ष के लिए हर्ज नहीं, पर साथ-साथ ब्रह्मचर्य हो तो उसका आनंद भी ऐसा ही होगा न! अहो! अपार आनंद! वह तो दुनिया ने कभी चखा ही नहीं, वैसा आनंद उत्पन्न हो जाए! ऐसे ब्रह्मचर्य व्रत में ही यदि पैंतीस साल की वह अवधि निकाल दे, उसके बाद तो अपार आनंद उत्पन्न होगा!
ब्रह्मचर्य व्रत सभी को लेने की आवश्यकता नहीं होती। वह तो जिसके उदय में आए, भीतर ब्रह्मचर्य के बहुत विचार आते रहते हों, तो फिर व्रत लें। जिसे ब्रह्मचर्य बरते, उसके दर्शन की तो बात ही अलग न? किसी को ही उदय में आए, उसीके लिए यह ब्रह्मचर्य व्रत है। अगर उदय में नहीं आए तो उलटे मुश्किल हो जाए। ब्रह्मचर्य व्रत साल भर के लिए या छ: महीने के लिए भी ले सकते हैं। हमें ब्रह्मचर्य के बहुत सारे विचार आते रहते हों, उस विचार को हम दबाते रहें तब भी उसके विचार आते रहते हों, तभी ब्रह्मचर्य व्रत माँगना; वर्ना यह ब्रह्मचर्य व्रत माँगने जैसा नहीं है। यहाँ ब्रह्मचर्य व्रत लेने के पश्चात् उसे तोड़ना महान अपराध है। आपको किसी ने बाध्य नहीं किया कि आप ब्रह्मचर्य व्रत लें ही।
इस काल में तो ब्रह्मचर्य व्रत सारी ज़िन्दगी का दिया जाए ऐसा नहीं है। देना ही जोखिम है। साल भर के लिए दे सकते हैं। बाकी सारी ज़िन्दगी की आज्ञा ली और यदि वह गिरे तो खुद तो गिरे पर हमें भी निमित्त बनाएँ। फिर हम महाविदेह क्षेत्र में वीतराग भगवान के पास बैठे हों तो वहाँ भी आए और हमें खड़ा करे और कहे, 'क्यों आज्ञा दी थी? आपको सयाना
यह तो लोगों को मालूम ही नहीं है कि यह विचार आया तो क्या होगा? वे तो कहते हैं कि विचार आया तो क्या बिगड़ गया? लोगों को यह ख्याल भी नहीं होता कि विचार और डिस्चार्ज दोनों मे लिंक (संबंध)