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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य नहीं।' मैंने कहा, 'तेरी नियत यदि शुद्ध है तो ब्रह्मचर्य ही है।' तब कहता है, 'पर ऐसा हो जाता है। मैंने कहा, 'भैया, वह गलन नहीं है। वह तो जो पूरण हुआ है वही गलन हो जाता है। उसमें तेरी नियत नहीं बिगड़नी चाहिए, ऐसा रखना, वह संभालना। नियत नहीं बिगड़नी चाहिए कि इसमें सुख है।' भीतर दु:खी हो रहा था बेचारा! ऐसे कह दे तो तुरंत धो दें।
अभी विषय का कोई विचार आया, तुरंत तन्मयाकार हुआ इसलिए भीतर भरा हुआ माल गिरकर (सूक्ष्म में स्खलन होकर) नीचे गया। फिर सारा जमा होकर निकल जाता है, फ़ौरन। परंतु विचार आते ही तुरंत उसे उखाड़ फेंके तो भीतर फिर झड़ता नहीं, ऊर्ध्वगामी होता है। इतना सारा भीतर में विज्ञान है!
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य करें तो उसमें कभी विषय विकार हो ऐसा है ही नहीं।
आपको ब्रह्मचर्य पालन करना हो तो हर प्रकार से सावधान रहना होगा। वीर्य ऊर्ध्वगामी हो फिर अपने आप चलता रहेगा। अभी तो वीर्य ऊर्ध्वगामी हुआ नहीं है। अभी तो उसका अधोगामी स्वभाव है। वीर्य ऊर्ध्वगामी हो फिर सभी ऊपर उठेगा। फिर वाणी-बाणी बढिया निकलेगी. भीतर दर्शन भी उच्च प्रकार का विकसित हुआ होगा। वीर्य उर्ध्वगामी होने के बाद परेशानी नहीं होगी। तब तक खाने-पीने में बहुत नियम रखना पड़ता है। वीर्य उर्ध्वगामी हो इसके लिए आपको उसे मदद तो करनी पड़ेगी या सब यों ही चलता रहेगा?
यदि ब्रह्मचर्य की नियंत्रण में रहकर कुछ साल के लिए रक्षा हुई, तो फिर वीर्य ऊर्ध्वगामी होगा और तभी ये शास्त्र-पुस्तकें सभी दिमाग में धारण कर सकेंगे। धारण करना कोई आसान बात नहीं है, वर्ना पढ़ता जाएगा और भूलता जाएगा।
प्रश्नकर्ता : यह प्राणायाम, योग आदि ब्रह्मचर्य के लिए सहायक हो सकते हैं क्या?
दादाश्री: यदि ब्रह्मचर्य की भावना से यह सब करे तो सहायक हो सकता है। ब्रह्मचर्य की भावना होनी चाहिए और यदि आपको शरीर स्वस्थ रखने के लिए करना हो तो उससे शरीर स्वस्थ होगा। अर्थात् भावना पर सब आधार है। पर आप इन सब बातों में मत पड़ना, वर्ना हमारा आत्मा एक ओर रह जाएगा।
ब्रह्मचर्य व्रत लिया हो और कुछ उलटा-सीधा हो जाए तो उलझ जाता है। एक लड़का उलझन में था, मैंने पूछा, 'क्यों भाई, किस उलझन में हो?' उसने कहा, 'आपको बताते हए मुझे शर्म आती है। मैंने कहा, 'क्यों शर्म आती है? लिखकर दे। मुँह से कहते शर्म आती हो तो लिखकर दे।' तब कहने लगा, 'महीने में दो-तीन बार मुझे डिस्चार्ज हो जाता है।' मैंने पूछा 'अरे पगले, उसमें इतना घबराता क्यों है? तेरी नियत तो नहीं न? तेरी नियत में खोट है?' तब कहता है, 'बिलकुल नहीं, बिलकुल
प्रश्नकर्ता : विचार आने के साथ ही?
दादाश्री : ओन द मोमेन्ट (उसी क्षण)। वह बाहर नहीं निकले मगर भीतर में अलग हो गया। बाहर निकलने के लायक जो माल हो गया फिर वह शरीर में नहीं रहता।
प्रश्नकर्ता : अलग हो जाने के बाद प्रतिक्रमण करें तो फिर ऊपर नहीं उठेगा अथवा ऊर्ध्वगमन नहीं होगा?
दादाश्री : प्रतिक्रमण करें तो क्या होता है कि आप उससे अलग हैं ऐसा अभिप्राय दिखाते हो कि हमारा उसमें लेना-देना नहीं है।
भरा हुआ माल है वह तो निकले बगैर रहेगा नहीं। विचार आया उसे पोषण दिया, तो फिर वीर्य कमज़ोर हो गया। इसलिए किसी भी रास्ते डिस्चार्ज हो जाता है और यदि भीतर टिका, विषय का विचार ही नहीं आया तो ऊर्ध्वगामी होता है। वाणी मज़बूत होकर निकलती है। वर्ना विषय को हमने संडास कहा हुआ ही है। यह सब जो उत्पन्न होता है वह संडास बनने के लिए ही होता है। ब्रह्मचर्य पालनेवाले को सब कुछ प्राप्त होता है। खुद को वाणी में, बुद्धि में, समझ में, सबमें प्रकट होता है। वर्ना वाणी बोलें तो प्रभाव नहीं होता, परिणाम भी नहीं आता। वीर्य का ऊर्ध्वगमन