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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
दादाश्री : तब तो फिर पहले से ही उड़ा देना। ज्यादा सख्त हो जाना। वह कल्पनाएँ ही बंद कर दे। न हो तो भी कुछ पागल जैसा भी बोल देना। उसे कहना कि 'चार चपत लगा दूँगा यदि मेरे सामने आएगी तो। मेरे जैसा कोई चक्रम नहीं मिलेगा।' ऐसा कहें तो वह फिर आएगी ही नहीं। वह तो ऐसे ही खिसके।
१०. विषयी वर्तन? तो डिसमिस यहाँ किसी पर दृष्टि बिगड़े वह गलत कहलाए। यहाँ तो सभी विश्वास से आते हैं न!
दूसरी जगह पर पाप किया हो, वह यहाँ आने से धुल जाएगा किन्तु यहाँ पर किया गया पाप नर्कगति में भोगना पड़ेगा। जो हो गए हैं उन्हें लेट गो (जाने दें) करें पर नया तो होने ही नहीं दें न! हो गया है उसका कोई उपाय है क्या?
पाशवता करना उसके बजाय शादी करना बेहतर। शादी में क्या हर्ज है? शादी की पाशवता फिर भी ठीक है। शादी करनी नहीं और गलत छेड़-छाड़ करना वह तो भयंकर पाशवता कहलाए। वे तो नर्कगति के अधिकारी! और वह तो यहाँ होना ही नहीं चाहिए न? शादी तो हक़ का विषय कहलाता है।
ब्रह्मचर्य भंग करना वह तो सबसे बड़ा दोष है। ब्रह्मचर्य भंग हो वह तो बड़ी मुश्किल, थे वहाँ से लुढ़क गए। दस साल पहले बोया हुआ पेड़ हो और आज गिर पड़े तो आज से ही बोया ऐसा ही हुआ न और दसों साल बेकार गए न! ब्रह्मचर्यवाला एक ही दिन गिर जाए तो खतम हो गया।
प्रश्नकर्ता : निश्चय तो है मगर भूलें हो जाती है।
दादाश्री : दूसरी भूलें होंगी तो चला लेंगे, लेकिन विषय संयोग नहीं होना चाहिए।
दो कलमें (बातें); ऐसा लिखने का कि एक, अगर विषयी वर्तन
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य हो तो हम अपने आप निवृत हो जाएँगे, किसी को हमें निवृत करना नहीं पड़ेगा। हम खुद ही यह स्थान छोड़कर चले जाएंगे और दूसरा, यदि प्रमाद होगा, दादाजी की उपस्थिति में नींद के झोंके आएँ तो उस समय संघ जो हमें शिक्षा करेगा, तीन दिन भूखा रहने की या ऐसी कोई, जो भी शिक्षा करेंगे उसे स्वीकारेंगे।
११. सेफसाइड तक की बाड़ ब्रह्मचर्य पाल सके उसके लिए इतने कारण होने चाहिए। एक तो हमारा यह 'ज्ञान' होना चाहिए। ब्रह्मचारियों का समूह होना चाहिए। ब्रह्मचारियों के रहने की जगह शहर से ज़रा दूर होनी चाहिए और साथ ही उनका पोषण होना चाहिए। अर्थात् ऐसे सभी 'कॉज़ेज़' (कारण) होने चाहिए।
प्रश्नकर्ता : उसका अर्थ ऐसा हुआ कि कुसंग निश्चयबल को काट डालता है?
दादाश्री : हाँ, निश्चयबल को काट डालता है। अरे, मनुष्य में सारा परिवर्तन ही कर देता है और सत्संग भी मनुष्य का परिवर्तन कर डालता है। लेकिन जो एक बार कुसंग में गया उसे सत्संग में लाना हो तो बहुत मुश्किल हो जाए और सत्संगवाले को कुसंगी बनाना हो तो देर नहीं लगती।
प्रश्नकर्ता : सभी गाँठे हैं, उनमें विषय की गाँठ जरा ज्यादा परेशान करती है।
दादाश्री : कुछ गाँठे अधिक परेशान करती है। उनके लिए हमें सैना तैयार रखनी होगी। ये सारी गाँठे तो धीरे-धीरे एग्जॉस्ट (खाली) हुआ ही करती हैं, घिसती ही रहती हैं, इसलिए एक दिन सारी नष्ट हो ही जाएंगी।
प्रश्नकर्ता : सैना यानी क्या? प्रतिक्रमण?
दादाश्री : प्रतिक्रमण, दृढ़ निश्चय, वह सारी सैना तो रखनी होगी और साथ में 'ज्ञानी पुरुष' के दर्शन, उस दर्शन से अलग हो जाने पर भी मुश्किल आ पड़ेगी। यानी सेफसाइड कोई आसान बात नहीं है।