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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य फाइल आए उस घड़ी भीतर तूफ़ान मचा दे। ऊपर जाए, नीचे जाए, उसका विचार आने के साथ ही। भीतर तो सिर्फ गंदगी भरी है, कचरा माल ही है। भीतर आत्मा की ही क़ीमत है।
___ फाइल गैरहाजिर हो और याद रहे तो बड़ा जोखिम कहलाए। फाइल गैरहाजिर हो तो याद न रहे पर आते ही असर करे वह सेकन्डरी (दूसरे प्रकार का) जोखिम। हम उसका असर होने ही नहीं दें। स्वतंत्र होने की जरूरत है। हमारी उस घड़ी लगाम ही टूट जाती है। फिर लगाम रहती नहीं न!
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य भी खराब विचार आएँ उसमें हर्ज नहीं, उसे बार-बार हटाते रहो। उसके साथ दूसरी बातचीत का व्यवहार करो कि फलाँ आदमी मिलेगा तो उसका क्या करेंगे? उसके लिए ट्रक, मोटरें कहाँ से लाएँगे? अथवा सत्संग की बात करो ताकि मन फिर नये विचार दिखाएगा।
अधिक से अधिक चित्त किसमें फँसता है? विषय में, और चित्त विषय में फँसा कि उतना आत्मऐश्वर्य टूट गया। ऐश्वर्य टूटा तो जानवर (जैसा) हो गया। अतः विषय ऐसी वस्तु है कि उससे ही सारा जानवरपन आया है। मनुष्य में से जानवरपन विषय के कारण हुआ है। फिर भी हम आपसे क्या कहते हैं कि यह तो पहले से संग्रह किया माल है, इसलिए निकलेगा तो सही लेकिन अब नये सिरे से संग्रह नहीं करें वह उत्तम कहलाए।
९. 'फाइल' के प्रति कड़ाई प्रश्नकर्ता : वह यदि मोह-जाल डाले तो उससे कैसे बचें?
दादाश्री : हम दृष्टि ही नहीं मिलाएँ। हम समझ जाएँ कि यह जाल खींचनेवाली है, इसलिए उसके साथ दृष्टि ही नहीं मिलाना।
जहाँ हमें लगे कि यहाँ फँसाव ही है, वहाँ उसे मिलना ही नहीं।
किसी भी स्त्री के साथ आँख मिलाकर बात नहीं करना, आँखें नीचे करके ही बात करना। दृष्टि से ही बिगड़ता है। उस दृष्टि में विष होता है और बाद में विष चढ़ने लगता है। इसलिए नज़र मिली हो, दृष्टि
आकर्षित हुई हो तो तुरंत प्रतिक्रमण कर लेना। वहाँ तो सावधान ही रहना चाहिए। जिसे यह जीवन बिगड़ने नहीं देना है, उसे सावधान रहना पड़ता है।
जहाँ मन आकर्षित होता हो, वह फाइल (व्यक्ति) आए तो उस घड़ी मन चंचल ही रहा करता है। उस घडी तुम्हारा मन चंचल हो तो हमें भीतर बहुत दु:ख होता है। इसका मन चंचल हआ था इसलिए हमारी दृष्टि उस पर सख्त हो जाती है।
जिसको फाइल (विशेष आकर्षण या लगाव हो गया हो ऐसी व्यक्ति) हो चुकी है, उसके लिए भारी जोखिम है। उसके लिए सख़्ती बरतनी चाहिए। सामने आए तो आँख दिखानी पडे ताकि वह फाइल तुझसे डरती रहे। उलटा, फाइल हो जाने के बाद तो लोग चप्पल मारते हैं ताकि दोबारा वह मुँह दिखाना ही भूल जाए।
प्रश्नकर्ता : फाइल हो और उसके प्रति हमें तिरस्कार नहीं होता हो तो जान-बूझकर तिरस्कार पैदा करें क्या?
दादाश्री : हाँ, तिरस्कार क्यों नहीं पैदा होगा? जो हमारा इतना भारी अहित करे, उस पर तिरस्कार नहीं होगा क्या? इसलिए अभी पोल है! नियत चोर है!
प्रश्नकर्ता : बहुत परिचय हो तो उसका अपरिचय कैसे करे? तिरस्कार करके?
दादाश्री : 'नहीं है मेरी, नहीं है मेरी' करके, बहुत प्रतिक्रमण करना। फिर सामने मिल जाए तो सुना देना कि 'क्या ऐसा मुँह लेकर घूम रही है? जानवर जैसी, युजलेस (निकम्मी)!' फिर वह दोबारा मुँह नहीं दिखाएगी।
प्रश्नकर्ता : सामनेवाली फाइल हमारे लिए फाइल नहीं है, पर उसके लिए हम फाइल हैं ऐसा हमें पता चले तो हमें क्या करना चाहिए?