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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
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प्रश्नकर्ता: संपूर्ण सेफसाइड कब होती है ?
दादाश्री : संपूर्ण सेफसाइड कब हो, उसका तो कोई ठिकाना ही नहीं न! पर पैंतीस साल की उम्र होने के बाद ज़रा उसके दिन ढलने लगते हैं। इससे वह आपको ज्यादा परेशान नहीं करता। फिर आपकी धारणा के अनुसार चलता रहता है। वह आपके विचारों के अधीन रहता है। आपकी इच्छा न बिगड़े। आपको फिर कोई नुकसान नहीं करता । पर पैंतीस साल की उम्र होने तक तो बहुत बड़ा जोखिम है !
१२. तितिक्षा के तप से तपाइए मन - देह
प्रश्नकर्ता: उपवास किया हो, उस रात अलग ही तरह के आनंद का अनुभव होता है, उसका क्या कारण?
दादाश्री : बाहर का सुख नहीं लेते तब अंदर का सुख उत्पन्न होता है। यह बाहरी सुख लेते हैं इसलिए अंदर का सुख बाहर प्रकट नहीं होता । हमने ऊणोदरी तप आखिर तक रखा था। दोनों वक्त जरूरत से कम ही खाना, सदा के लिए। ताकि भीतर निरंतर जागृति रहे । ऊणोदरी तप यानी क्या कि रोज़ाना चार रोटियाँ खाते हों तो दो खाना, वह ऊणोदरी तप कहलाता है।
प्रश्नकर्ता: आहार से ज्ञान को कितनी बाधा होती है?
दादाश्री : बहुत बाधा आती है। आहार बहुत बाधक है, क्योंकि यह आहार जो पेट में जाता है, उसका फिर मद होता है और सारा दिन फिर उसका नशा, कैफ़ ही कैफ़ चढ़ता रहता है।
जिसे ब्रह्मचर्य का पालन करना है, उसे ख्याल रखना होगा कि कुछ प्रकार के आहार से उत्तेजना बढ़ जाती है। ऐसा आहार कम कर देना । चरबीवाला आहार जैसे कि घी तेल (अधिक मात्रा में) मत लेना, दूध भी ज़रा कम मात्रा में लेना । दाल-चावल, सब्ज़ी-रोटी आराम से खाओ पर उस आहार का प्रमाण कम रखना। दबाकर मत खाना । अर्थात् आहार
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य कितना लेना चाहिए कि ऐसे केफ़ (नशा) नहीं चढ़े और रात को तीनचार घंटे ही नींद आए, बस उतना ही आहार लेना चाहिए।
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इतने छोटे-छोटे बच्चों को बेसन और गोंद से बनी मिठाइयाँ खिलातें हैं! जिसका बाद में बहुत बुरा असर होता है। वे बहुत विकारी हो जाते हैं। इसलिए छोटे बच्चों को यह सब अधिक मात्रा में नहीं देना चाहिए। उसका प्रमाण रखना चाहिए।
मैं तो चेतावनी देता हूँ कि ब्रह्मचर्य पालना हो तो कंदमूल नहीं खाने चाहिए।
प्रश्नकर्ता: कंदमूल नहीं खाने चाहिए?
दादाश्री : कंदमूल खाना और ब्रह्मचर्य पालना, वह रोंग फिलासफ़ी ( गलत दर्शन) है, विरोधी बात है।
प्रश्नकर्ता: कंदमूल नहीं खाना, जीव हिंसा के कारण है या और
कुछ ?
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दादाश्री : कंदमूल तो अब्रह्मचर्य को जबरदस्त पुष्टि देनेवाला है। इसीलिए ऐसे नियम रखने की आवश्यकता है कि जिससे उनका ब्रह्मचर्य टिका रहे।
१३. न हो असार, पुद्गलसार
ब्रह्मचर्य क्या है? वह पुद्गलसार है। हम जो आहार खाते-पीते हैं, उन सभी का सार क्या रहा? 'ब्रह्मचर्य'! वह सार यदि आपका चला गया तो आत्मा को जिसका आधार है, वह आधार ढीला हो जाएगा। इसलिए ब्रह्मचर्य मुख्य वस्तु है। एक ओर ज्ञान हों और दूसरी ओर ब्रह्मचर्य हो तो सुख की सीमा ही नहीं रहेगी! फिर ऐसा 'चेन्ज' (परिवर्तन) हो जाए कि बात ही मत पूछिए ! क्योंकि ब्रह्मचर्य तो पुद्गलसार है।
यह सब खाते हैं, पीते हैं, उसका क्या होता होगा पेट में? प्रश्नकर्ता: रक्त होता है।