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________________ आत्मबोध आत्मबोध मालिकी भाव, वहाँ चेतन ? प्रश्नकर्ता : भगवान सर्वव्यापी हैं लेकिन वह दिखाई क्यों नहीं देते? दादाश्री : सर्वव्यापी याने क्या? प्रश्नकर्ता : omnipresent, हर चीज में भगवान हैं। दादाश्री : तो ये टेपरिकार्डर तोड़ डाले तो हिंसा होती है न? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : और चिड़िया को मार डाले तो भी हिंसा होती है? प्रश्नकर्ता : हाँ, होती है। दादाश्री : चिड़िया की हिंसा और टेपरिकार्डर की हिंसा समान है? प्रश्नकर्ता : इसमें प्राणी की हत्या होती है, और उसमें दिखाई नहीं तो जड़ ही है, उसमें भगवान रहते ही नहीं। प्रश्नकर्ता : लेकिन भगवान सर्वव्यापी तो निश्चित रूप से हैं या उसमें भी कोई शंका है? दादाश्री : सर्वव्यापी का अर्थ यह है कि भगवान का जो प्रकाश है, वो प्रकाश सर्वव्यापी हो जाता है। यदि देह का आवरण इनको नहीं हो तो इनका प्रकाश कैसा है? सर्वव्याप्त है। सच्चा भगवान जड़ में नहीं है, सब क्रियेचर के अंदर है और शुद्ध चेतन रूप में है। सारा ब्रह्मांड क्रियेचर से भरा हुआ है। सब के अंदर भगवान है। God is in every creature, whether visible or invisible; not in creation ! ये भगवान का सच्चा एड्रेस है। वो सच्चा एड्रेस जानने में क्या फायदा है कि ये टेबल को आप तोड देंगे तो इसका कोई पाप नहीं लगता है। इसके मालिक को पूछकर मैं तोड़ देता हूँ, तो कोई पाप नहीं लगता है। एक bug (खटमल) मार दिया तो पाप होता है, क्योंकि उसके अंदर भगवान है। जिधर भगवान है, वहाँ हिंसा मत करो और इसकी, टेबल की हिंसा हो जाये, तोड़ डालो तो भी कोई हर्ज नहीं और नया बना दो तो भी कोई हर्ज नहीं। जो आदमी बना नहीं सकता, एक bug को आदमी बना नहीं सकता है, वो क्रियेचर के अंदर भगवान है। प्रश्नकर्ता : जितने क्रियेचर है, उन सब के अंदर शुद्ध चेतन है? दादाश्री : सब में ही शुद्ध चेतन है। प्रश्नकर्ता : तो फिर जड़ में भी शुद्ध चेतन होना चाहिए। दादाश्री : जड़ में शुद्ध चेतन नहीं है। जड़ तो जड़ ही है। जड़ तो निकाल कर देने की चीज है, ग्रहण करने की चीज नहीं है। इसके अंदर संकल्प चेतन है। मैं उसका मालिकभाव छोड दूं तो उसमें से इतना चेतन निकल जाता है। जड़ पदार्थ के अंदर संकल्प चेतन है और जो सच्चा भगवान है वो शुद्ध चेतन रूप है। देती। दादाश्री : हाँ, तो ये जड़ है और चिड़िया में चेतन है। जहाँ चेतन है, वहाँ नुकसान करे तो हिंसा होती है और जड़ को नुकसान करे तो हिंसा नहीं होती। लेकिन इसमें क्या होता है, वो जानने की जरूरत है। यदि टेपरिकार्डर का कोई मालिक नहीं हो, तो हम टेपरिकार्डर को तोड़ डाले, तो हमको हिंसा नहीं लगती। लेकिन उसका कोई मालिक हो तो टेपरिकार्डर तोड़ डालने से उसके मालिक को दु:ख होता है, इस तरह हिंसा होती है। इस लिए सब में भगवान हैं, ऐसा बोला है। यदि जड़ की किसी की मालिकी नहीं हो, तो इसके अंदर भगवान नहीं हैं, लेकिन कोई मालिक है, तो मालिक को दुःख होता है, इसलिए इतना ही चेतन जड़ में है ऐसा बोला है। उसको 'संकल्प चेतन' बोलते हैं। नहीं तो जड़
SR No.009577
Book TitleAtmabodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages41
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size91 KB
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