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आत्मबोध
आत्मबोध
तो रीयलाइज किसका करने का? रीयल का रीयलाइज करने का! रिलेटिव को रीयलाइज करने में कोई फायदा नहीं है।
प्रश्नकर्ता : असली ज्ञान तो रीयल का ही है न?
दादाश्री : हा, दरअसल तो है। लेकिन वो चार अरब की बस्ती में 'ज्ञानी पुरुष' अकेले ही जानते हैं। दूसरा कोई आदमी जान सकता ही नहीं। पुस्तक में ऐसी बात लिख नहीं सकते, क्योंकि वो बात अवर्णनीय है, अवक्तव्य है। आत्मा जो है, उसका वर्णन हो सके ऐसा नहीं है।
लगते। जैसे वो ओपरेशन के लिए छ: घंटे बैठना पड़ता है, इधर तो एक घंटे में ओपरेशन कर देते हैं, within one hour only! हम सभी लोगों को ज्ञान दे सकते हैं, जैन हो, वैष्णव हो, मुस्लिम हो, पारसी हो या कोई भी हो!
प्रश्नकर्ता : वहाँ भी तो कोई अंतर नहीं है।
दादाश्री : हाँ, उधर तो कोई मतभेद ही नहीं होता है। सब मतभेद रिलेटिव के अंदर है, रीयल के अंदर कोई मतभेद नहीं है।
एक दफे रीयल का रीयलाइज हो गया फिर मुक्ति हो गई। प्रश्नकर्ता : रीयल को रीयलाइज करना कोई आसान बात थोड़ी है?
दादाश्री : वो कभी होता ही नहीं। कभी 'ज्ञानी पुरुष' मिल जाते है, तो उनके पास होता है। 'ज्ञानी पुरुष' प्रत्यक्ष मिले और उनकी कृपा से मिल जाता है। 'ज्ञानी पुरुष' में भगवान प्रगट हो गये हैं, चौदह लोक के नाथ प्रगट हो गये हैं। लेकिन हम तो निमित्त हैं, हम कर्ता नहीं हैं। निमित्त से सब कुछ काम होता है।
The world is the puzzle itself. ये पज़ल जो सोल्व करे, उसको परमात्मा पद की डिग्री मिलती है। हम ये पज़ल सोल्व करके बैठे है। जिसका पज़ल सोल्व हो गया है, वो सब का पज़ल सोल्व करा सकते हैं। जिसका पजल सोल्व नहीं हुआ, वो सब ये पज़ल में डिजोल्व हो गये हैं। पज़ल सोल्व कर दिया कि सारे ब्रह्मांड के उपर बैठ गया।
The world is the puzzle itself, ये पहेली दफे ऐसा वाक्य निकल गया है, ऐसा कोई बोला ही नहीं। नया ही वाक्य, नयी ही बात, नया ही सायन्स है। ये बेसमेंट ही नया है। किसी दिन जगत जब ये बात सुनेगा, तब सब लोग आफ्रीन हो जायेंगे।
प्रश्नकर्ता : वो रीयल ज्ञान कैसे प्राप्त करना है?
दादाश्री : 'ज्ञानी पुरुष' है, उनके पास जाकर आपको बोलने का कि 'हमको रीयल का रीयलाइज करा दो', तो वो करा देंगे।
प्रश्नकर्ता : करा देंगे?
प्रश्नकर्ता : आप बताते हैं कि आप निमित्त हैं, लेकिन आपकी ही वजह से हमारा सब का काम हो जाता है।
दादाश्री : वो बात ठीक है। मेरी समझ में तो मैं निमित्त हूँ, लेकिन आप सभी को मुझे निमित्त नहीं मानना चाहिये। आप निमित्त मानेंगे, तो आपका पूरा काम नहीं होगा।
आत्मज्ञान प्राप्ति कैसे?
दादाश्री : हाँ, सब कुछ कर सकते हैं। प्रश्नकर्ता : तुरंत करा देगें? दादाश्री : हाँ, तुरंत, तुरंत ! छः महिने नहीं लगते, दो दिन भी नहीं
आत्मा को समझो फिर दुःख कहीं भी नहीं है। आत्मा आपकी समझ में आ जाये, दर्शन में आ जाये, फिर काम पूर्ण हो गया। इतना ही समझने का है। बड़े शास्त्र के उपर भी वो ही लिखते हैं, आत्मा जानने की है। दूसरा क्या लिखते हैं? वो ही बात समझने की है, कोई