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आत्मबोध
आत्मबोध
दादाश्री : All these Relatives are temporary adjustment and Real is the permanent.
प्रश्नकर्ता : But what are these adjustments?
दादाश्री : ये आपका जो शरीर है, ये हाथ है, ये सब एडजस्टमेन्ट हैं, वो सब रिलेटिव हैं।
प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं कि हम में और आप में कुछ फर्क नहीं है।
दादाश्री : कोई फर्क नहीं है। मैं खुद को पहचानता हूँ और आप खुद को पहचानते नहीं है, वो ही फर्क है। दूसरा कोई फर्क नहीं है।
प्रश्नकर्ता : मैं तो खुद को पहचानता हूँ।
दादाश्री : नहीं, आप खुद को नहीं पहचानते। आप तो बोलते है कि, 'मैं रवीन्द्र हूँ'। वो तो रोंग बिलीफ है। Ravindra is correct by relative view point. you are brother of your sister is correct by relative view point, not by fact.
प्रश्नकर्ता : क्यों? This is fact because I am borned to the same mother!
By Relative view point you are Ravindra & Real view point आप क्या है, वो ही समझने की जरुरत है।
You are Ravindra is correct by Relative view point & by Real view point you are pure soul (Shuddhatma). लेकिन आपको रीयलाइज नहीं हुआ, वहाँ तक आप कैसे शुद्धात्मा हो जायेंगे? वहाँ तक रवीन्द्र की डाक आप ले लेंगे। ये 'अशोक' है लेकिन वो 'अशोक' की डाक अलग है और उनकी खुद की पोस्ट अलग है। आपको कोई रवीन्द्र के नाम की गाली दे तो आप वो डाक ले लेते हैं, क्योंकि आप रवीन्द्र को ही पहचानते हैं, कि मैं रवीन्द्र हूँ। Real view point & Relative view point समझ जायें तो दुनिया में कोई बाधा नहीं आयेगी। ऐसा महावीर भगवान का विज्ञान है, चौबीस तीर्थंकरों का विज्ञान है।
आपको कुछ भी छोड़ देने का नहीं है। बात ही समझने की है कि ये डाक इसकी है और ये डाक मेरी है।
दादाश्री : But It is correct by relative view point, not by real view point ! and this is only temporary adjustment! You are permanent. लेकिन वो आपको मालूम नहीं। आप बोलेंगे कि 'मैं रवीन्द्र हूँ, अभी जवान हूँ।' फिर वृद्ध हो जायेंगे, क्योंकि रवीन्द्र टेम्पररी एडजस्टमेन्ट है।
दो लेंग्वेज हैं। एक रिलेटिव लेंग्वेज है, एक रीयल लेंग्वेज है। रीयल लेंग्वेज 'ज्ञानी पुरुष' सारी दुनिया में अकेले ही जानते हैं। सब लोग रिलेटिव लेंग्वेज जानते हैं। Relative language is temporary adjustment and Real language is permanent adjustment !
रिलेटिव लेंग्वेज में दुनिया के लोग क्या बोलते हैं, 'God is the creator of this world' और ऐसा ही सारा जगत मानता है। लेकिन वो रिलेटिव करेक्ट है, रीयल करेक्ट बात नहीं है। सभी अपने व्यू पोइंट से सच्चे है, नोट बाय फैक्ट. व्यू पोइंट, वो फैक्ट नहीं है। By real language, the world is the puzzle itself! वो रीयल करेक्ट है। रीयल करेक्ट जानो तो मोक्ष मिलता है।
आपके अंदर है, वो खुद ही परमात्मा है। वो परमात्मा आपकी समझ में आ जाये, तो फिर आप भी परमात्मा हो जाते हैं। जहाँ तक आप रवीन्द्र हैं, वहाँ तक वो समझ में नहीं आयेगा। अभी तो आपको 'मैं रवीन्द्र हूँ' वो ही एक्सपिरियन्स हुआ है। जब 'मैं शुद्धात्मा हूँ' वो एक्सपिरियन्स हो जाये तो, सब काम पूरा हो गया। आप रवीन्द्र नहीं है। जो आप नहीं है, लेकिन वहाँ आप बोलते है कि, 'मैं रवीन्द्र हूँ', वो आरोपित भाव है, कल्पित भाव है।