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आत्मबोध
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दादाश्री : नहीं, ये पानी है, वो भाप हो जाती है, बर्फ हो जाता है। तो वो परमानेंट नहीं है। पृथ्वी चेन्ज हो जाती है, वो परमानेंट नहीं है। वायु तो डी- कम्पोज हो जाता है, इकट्ठा भी हो जाता है। वो चेन्ज होता है, तो वो परमानेन्ट नहीं है। तेज भी विनाश हो जाता है। पृथ्वी, तेज, वायु, जल ये चारों मिलाकर एक ही अविनाशी तत्त्व है। जिसको रूपी तत्व बोला जाता है। ये चारों एक ही तत्व की अवस्थाएँ है। ये जल, वायु, तेज, पृथ्वी- वो सभी तो जीव है। जलकाय जीव है, उसका शरीर कैसा है? जल वो ही उसका शरीर है। वायु, वो वायुकाय जीव का शरीर है। तेज में तेजकाय जीव है, वो सभी जीवों का शरीर ही जलता है। पृथ्वी वो पृथ्वीकाय जीव है। वो चारों के अंदर जीव है। वो चेतन तत्त्व है, वो परमानेन्ट तत्व है और दूसरा एक तत्व 'रूपी तत्व' भी है, उसको पुद्गल तत्व बोला जाता है। इन दोनों का साथ में मिश्चर हो गया है। पुद्गल, याने जो पूरण होता है, गलन होता है। फिर पूरण होता है, फिर गलन होता है। लेकिन वो परमाणु स्वरुप से परमानेन्ट है और पुद्गल के स्वरूप से वो विनाशी है। ये एटम है, इससे भी परमाणु बहुत छोटा है। एटम का विनाश होता है, लेकिन परमाणु का विनाश नहीं होता । वो एक ही पुद्गल तत्व है।
प्रश्नकर्ता: परमाणु जो है वो अनादि है, उसका क्या कारण है? दादाश्री परमाणु वो तो अविनाशी है और परमानेन्ट है, इसलिए वो अनादि से ही है ।
प्रश्नकर्ता : परमाणु याने प्रकृति ?
दादाश्री : परमाणु से प्रकृति में हेल्प होती है। प्रकृति है वो सब परमाणु ही है लेकिन प्रकृति एक चीज से नहीं होती है, प्रकृति में दूसरी चीजें भी है। ये प्रकृति है, इसमें परमाणु भी है और इसमें आने-जाने की शक्ति भी है।
प्रश्नकर्ता: इन परमाणुओं का स्वतंत्र अस्तित्व है?
आत्मबोध
दादाश्री : हाँ, स्वतंत्र अस्तित्व है। जितना आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व है, उतना ही परमाणु का भी स्वतंत्र अस्तित्व है। आत्मा भी अविनाशी है। परमाणु भी अविनाशी है।
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अपने शास्त्रों में क्या बोलते हैं कि ये शरीर हैं, प्रकृति है वो पाँच तत्त्व का मिलन है। वो पाँच तत्त्व- पृथ्वी, जल, वायु, तेज और आकाश को कहा है। लेकिन इसमें आकाश के अलावा जो चार तत्त्व हैं, वो सब अकेले परमाणु में आ जाते हैं। क्योंकि ये परमाणु से पृथ्वी हो गई, परमाणु से जल भी हो गया, परमाणु से वायु भी हो गया, परमाणु से ही तेज भी हो गया लेकिन आकाश तो स्वतंत्र है, बिलकुल स्वतंत्र है। जिस तरह परमाणु स्वतंत्र है, उसी तरह आकाश भी स्वतंत्र है। दूसरा, आने-जाने की जो क्रिया होती है, यह पुद्गल है, उसको इधर से उधर ले जाने के लिए कोई एक तत्त्व की जरूरत है। चेतन में आने-जाने की कोई शक्ति नहीं है। मनुष्य को आने-जाने के लिए यह तत्व की जरूरत है। वह गतिसहायक तत्व है। वह भी स्वतंत्र है। कोई चीज चलती है, तो फिर चलती ही रहेगी। उसकी गति चालू हो गई, फिर बंद नहीं होगी। तो उसे ठहरने के लिए, स्थिर होने के लिए भी एक तत्व चाहिये, वो स्थितिसहायक तत्व है और 'काल' ये भी एक तत्व है। ऐसे छ: स्वतंत्र तत्व है, उससे ये जगत बना हुआ है, सातवाँ तत्त्व नहीं है।
ये छ: तत्व निरंतर समसरण करते हैं, परिवर्तन होता ही है। इससे यह पज़ल हो गया है। खुद से ही पज़ल हो गया है। किसी ने पज़ल बनाया नहीं है।
है ।
प्रश्नकर्ता: तो पज़ल भी सनातन है?
दादाश्री : नहीं, पज़ल सनातन नहीं है। पजल तो सोल्व हो जाता
प्रश्नकर्ता: 'ज्ञानी' को सोल्व हो जाता है, लेकिन दूसरे सभी को तो परमानेन्ट ही है?