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आत्मबोध
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आत्मबोध
मानता है, उस पेड़ को भी ऐसा रहता है। लेकिन 'मैं कौन हूँ?' वो नहीं जानते हैं। अस्तित्व का भान सब को है, लेकिन वस्तुत्व का भान नहीं है। वस्तुत्व का भान हो गया, फिर पूर्णत्व ऐसे ही हो जाता है, दूसरा कोई करानेवाला नहीं। शुद्धात्मा हो गया, वस्तुत्व का भान हो गया तो ऐसे ही पूर्णत्व हो जायेगा।
विश्व के सनातन तत्त्व ! आत्मा इस देह के साथ 'कम्पाउन्ड' नहीं हो गयी है, मिश्चर है सिर्फ। 'कम्पाउन्ड' हो जाये तो आत्मा का गुणधर्म चला जायेगा और देह का गुणधर्म भी चला जायेगा। लेकिन ये मिश्चर है, तो आत्मा का गुणधर्म पूरा है और देह का भी गुणधर्म पूरा है। इस अंगूठी में सोना है और तांबा भी है, लेकिन कम्पाउन्ड नहीं हुआ तो अलग कर सकते है। वैसे ही ज्ञानी पुरुष आत्मा और जड़ को अलग कर सकते हैं।
ये संसार समसरण है। समसरण याने दुनिया में जो तत्व हैं, छ: परमानेन्ट तत्व, वो निरंतर परिवर्तन होते रहते हैं। परिवर्तन से एक दूसरे से इक्टठू होते है और इससे, ये संयोग मिलने से अलग तरह का प्रकाश हो जाता है। बस ऐसे ही दुनिया हो गई है। भगवान को कुछ करने की जरूरत नहीं। उनकी हाजरी से ही सब चल रहा है।
प्रश्नकर्ता : जब तक ये पृथ्वी घूमती रहेगी, तब तक ये जन्म होते ही रहेंगे और जब पृथ्वी रुक जायेगी तो सब खत्म हो जायेगा?
दादाश्री : पृथ्वी घूमती कभी बंद होने वाली ही नहीं। वो ऐसे ही घूमती रहेगी। सब परिवर्तनशील है। आप कल आये थे, तब जो 'दादाजी' देखे थे, वो आज नहीं है। आज दूसरे हैं। समय समय पर सब परिवर्तन होता है। सब चीज समय समय पर परिवर्तित होती ही है. लेकिन अपनी इतनी eye sight (द्रष्टि) नहीं है कि हम वो देख सकें।
प्रश्नकर्ता : कल जो देखा और आज जो देखता हूँ, उसमें भगवान अलग-अलग है और रूप एक ही है?
दादाश्री : नहीं, सब परिवर्तन होता है। संसार याने सब चीजों में परिवर्तन ही हो रहा है, उसका नाम ही संसार है और आत्मा में कोई परिवर्तन नहीं होता है। आत्मा परमानेन्ट है। टेम्पररी सब परिवर्तन ही हो रहा है।
एक 'स्पेस' में सब लोग नहीं रहे सकते न? तो सब की 'स्पेस' अलग अलग है। समय सभी के लिए एक रहता है। अभी दस बजे है तो सभी के लिए दस बजे है। लेकिन 'स्पेस' अलग है और इसलिए भाव भी अलग है। आपका भाव अलग, इसका भाव अलग, उसका भाव अलग। ऐसे सब भिन्न भिन्न है।
सारी दुनिया सायन्स है। आत्मा भी सायन्स है। सायन्स के बाहर दुनिया नहीं है। बड़े बड़े पुस्तक है, ग्रंथ है, लेकिन समझ में नहीं आने से पज़ल बन गये है। जहाँ तक 'स्वरूप' समझ में नहीं आया, वहाँ तक The world is puzzle itself. किसी ने पज़ल नहीं किया, स्वयं ही पज़ल हो गया है।
'अक्रम मार्ग' से सब नयी बातें हम बताते हैं। एक आत्मा के उपर आ जाओ, और अनात्म विभाग में तो दूसरे पाँच विभाग है। ये सब समझने की जरूरत है।
प्रश्नकर्ता : पृथ्वी, तेज (अग्नि), वायु, आकाश, जल ये पांच तत्त्वो के सिवा जगत में और कुछ है ही नहीं?
दादाश्री : नहीं, और भगवान भी है न! प्रश्नकर्ता : ये पांच तत्त्वों का कोम्बीनेशन वो ही भगवान है?
दादाश्री : नो, नो, नो, नो. वो पांच तत्त्व तो अनात्म विभाग है और भगवान आत्म विभाग है। भगवान चैतन्य है और ये पाँच तत्त्व जड़ है। ये दुनिया में छ: परमानेन्ट तत्त्व है, वो आपको खयाल है?
प्रश्नकर्ता : आकाश, पृथ्वी, तेज, वायु, जल, आत्मा?