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________________ (१७) भगवान का स्वरूप, ज्ञान दृष्टि से १४१ १४२ आप्तवाणी-४ प्राप्त किया है। वह संकल्पी चेतन है। और आप यह वस्तु उनसे पूछे बिना ले लो, तो उतना दोष आपको लगेगा और उसकी कीमत देकर आप लो और फिर उसे तोड़ डालो, चूरचूर कर दो, तो भी दोष नहीं लगेगा। चेतन तत्व तो वह कि जिसमें ज्ञान है, दर्शन है। जागृति हुए बिना खुद का भान प्रकट नहीं होता है। संपूर्ण जागृति आए तो खुद का भान प्रकट होता है और भान प्रकट हो तब खद सर्वांश रूप से ईश्वर है, ऐसा खुद को पता चलता है, अनुभव में आता है और उसके बाद की जो क्रिया होती है उसमें दुःख नहीं होता है कभी भी। भगवान की सर्वव्यापकता दादाश्री : भगवान कहाँ रहते होंगे? प्रश्नकर्ता : भगवान तो सर्वव्यापी हैं। कण-कण में सब ओर ही भगवान हैं। दादाश्री: तब तो फिर भगवान को कहीं भी हँढने को रहा ही नहीं न? यदि सभी जगह भगवान हैं तो फिर संडास कहाँ जाएँ? सभी जगह भगवान हों तो फिर जड़ और चेतन जैसा कुछ अलग रहा ही नहीं न? इसलिए ऐसा नहीं है। जड़ भी है और चेतन भी है। सभी गेहँ हों तो बीनने को क्या रहा? गेहूँ में से गेहूँ पहचानो, तभी कँकड़ बीने जाएंगे और कँकड़ को पहचानोगे तब भी काम हो जाएगा। उसी तरह इसमें से आत्मा को जानो तो अनात्मा को जान सकोगे और अनात्मा को जानोगे तो भी आत्मा को पहचान सकोगे। जब कि ये लोग कहते हैं कि सब जगह भगवान हैं तो फिर उन्हें ढूँढने का कहाँ रहा? संकल्पी चेतन ये लोग कहते हैं कि कण-कण में भगवान हैं, इसमें हैं, उसमें हैं। उस कहनेवाले की भाषा में और उसका अर्थ करनेवाले की भाषा में फ़र्क होगा या नहीं? प्रश्नकर्ता : फ़र्क तो होगा ही न? दादाश्री : वह किस अपेक्षा से कहा है, वह समझाता हूँ। इस जगत् में आत्मा और अनात्मा दो विभाग हैं। इस तिपाई में चेतन नहीं है, पर यह वस्तु 'चंदूभाई' की मिल्कियत है, इसलिए उसने उतने चेतन भाव को
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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