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(१६) 'रिलेटिव' धर्म : विज्ञान
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आप्तवाणी-४
प्रश्नकर्ता : दादा, आप जो 'रिलेटिव' कहते हैं, उसकी मर्यादा क्या
कर। भले अहंकार से कर, पर उसका फल अच्छा मिलेगा, पुण्य बंधेगा। बाजरा बोया हो तो बाजरा मिलेगा और कुच (घास) बोया हो तो कुच मिलेगा। इसलिए तुझे अनुकूल हो वह उगाना। खराब विचारों को उखाड़ देना पड़ेगा। पर यह तो क्या करता है कि अच्छे बीज डालता है और बेर के भी डालता है ! तो ये बेर की झाड़ियाँ उग निकली हैं ! 'रिलेटिव' सारा मिक्सचर है और 'रियल' स्वतंत्र है। जिसमें परिवर्तन होता है वह 'रिलेटिव' का है, 'रिलेटिव' अर्थात जिसमें मिलावट हो गई है वह और 'रियल' अर्थात् शुद्ध! 'रिलेटिव' की चाहे जितनी स्लाइस करें तो उनमें से एक भी रियल' की स्लाइस मिलेगी क्या? वीतरागों ने कहा है कि यह आप करते हो, उससे आगे तो बहुत कुछ है। फिर भी ये मार्ग हैं, ऐसे करते-करते आगे बढ़ा जाएगा। हर एक धर्मवाला अपने धर्म को अंतिम स्टेशन मानता है, फिर भी उसके लिए ठीक है, ऐसा माने तो ही डेवलप होता जाएगा।
वीतराग धर्म ही मोक्षार्थ
ज्ञान तो अपार है, लेकिन वीतरागों ने जिस ज्ञान को जीत लिया है, उससे आगे ज्ञान ही नहीं है। किसी जगह पर 'हारें' नहीं, वे ही वीतराग! शायद कभी देह हार जाए, मन हार जाए, वाणी हार जाए पर वे खद नहीं हारते। वीतराग कैसे सयाने होते हैं! वीतरागों का धर्म तो सैद्धांतिक है, अर्थात् नक़द फल मिलता है। मोक्ष का नक़द फल मिलता है! जो मोक्षदाता भगवान हैं, वे निष्पक्षपाती हैं। वीतराग भगवान भीतर हैं, वे निष्पक्षपाती हैं। वीतराग धर्म किसे कहते हैं कि जो ३६० डिग्री का धर्म हो, संपूर्ण धर्म हो। सच्चा धर्म, रहस्यपूर्ण धर्म निष्पक्षपाती होता है। पक्षपात गलत नहीं है, वह स्टेन्डर्ड में रखता है और आउट ऑफ स्टेन्डर्ड में निष्पक्षपात है। 'यह' तो साइन्स है, धर्म नहीं। हिन्दू धर्म, जैन धर्म, क्रिश्चियन धर्म, वे सभी धर्म हैं। साइन्स एक ही होता है और धर्म अलग-अलग होते हैं।
___'रिलेटिव' धर्म की मर्यादा जगत् के धर्म 'रिलेटिव' धर्म हैं, वे 'रिलेटिव' में हेल्प करते हैं, 'रियल' की ओर लाने में हेल्प करते हैं।
दादाश्री : पाँच इन्द्रियों से जो अनुभव में आता है, जो होता है, वह सारा ही 'रिलेटिव' की सीमा में होता है।
प्रश्नकर्ता : 'रिलेटिव' का 'रियल' के साथ संबंध है क्या?
दादाश्री : है ही न! 'रियल' था तभी 'रिलेटिव' खड़ा हुआ न ! 'रियल' के संसर्ग से 'रिलेटिव' उत्पन्न हुआ है, अवस्था उत्पन्न हुई है और जो अवस्था है न, वह विनाशी है।
प्रश्नकर्ता : 'रियल' जब तक प्राप्त नहीं हुआ हो, तब तक 'रिलेटिव' की ज़रूरत है न?
दादाश्री : जब तक 'रियल' नहीं मिला, तब तक 'रिलेटिव' ही होता है। 'रियल' प्राप्त होने के बाद ही 'रिलेटिव' अलग होता है।
पारिणामिक धर्म का थर्मामीटर दादाश्री : अभी क्या कर रहे हो?
प्रश्नकर्ता : श्रीमद् राजचंद्र की पुस्तकों का अध्ययन और धर्म का अध्ययन करता हूँ।
दादाश्री : पुस्तकें पढ़ने मात्र से काम नहीं हो जाता, वहाँ तो कषाय रहित होना पड़ेगा। 'चंदूभाई में अक्कल नहीं है', ऐसा आपके सुनने में आए तो आपको दुःख होगा या नहीं होगा? असर होगा उसका?
प्रश्नकर्ता : होगा।
दादाश्री : तो उस शब्द से चोट लगी आपको। जब तक शब्दों से चोट लगती है, तब तक धर्म का आपने कुछ भी प्राप्त नहीं किया, ऐसा मानना। पत्थर लगे तो वह ठीक है, उसकी मलहम पट्टी-दवाई करनी पड़ती है। परन्तु यह शब्द की चोट लगती है, वह धर्म का फल नहीं है!