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(१५) आचरण में धर्म
है। वही सत्-चित्त आनंद स्वरूप है।
इस जगत् का सत्य कैसा है? आप ऐसा कहो कि, 'इस व्यक्ति को मैंने पैसे दिए हैं, वह लुच्चा है, वापिस नहीं दे रहा । ' तब दूसरा व्यक्ति आपसे कहेगा कि, 'किचकिच किसलिए कर रहे हो? घर जाकर खा-पीकर चुपचाप सो जा न शांति से, कलह किसलिए कर रहे हो?' आप उसे कहो कि, 'कलह करनी चाहिए। मेरा सत्य है।' तो आप सबसे बड़े गुनहगार हो । सत्य कैसा होना चाहिए? साधारण होना चाहिए। सत्य में नैतिकता होनी चाहिए। उसमें किसीको धोखा या नुकसान नहीं होता, लुच्चाई नहीं होती। चोरी नहीं होती। नैतिकता ही चाहिए, दूसरी किसी चीज़ की ज़रूरत नहीं है। ये सत्य को पकड़कर जो बैठे थे, वे अंत में दरिया में गिरे हैं!
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सत्य का आग्रह करना, वह पोइजन है और असत्य का आग्रह करना, वह भी पोइजन है।
प्रश्नकर्ता: जिस तरह सत्य के आप विभाग बनाते हैं, वैसे प्रार्थना में भी विभाग होते हैं न? दंभी प्रार्थना आती है न?
दादाश्री : प्रार्थना बिल्कुल सच्ची होनी चाहिए, गप्पबाज़ी नहीं चलेगी। तोता आयाराम-गयाराम बोलता है, राम राम बोलता है, वह समझकर बोलता है या बिना समझे? उसी प्रकार ये प्रार्थनाएँ समझकर, विचारपूर्वक, हृदय पर असर हो वैसी होनी चाहिए।
(१६) 'रिलेटिव' धर्म : विज्ञान
'रिलेटिव' धर्म, डेवलप होने के लिए
'रिलेटिव' धर्म, वह स्वभाविक धर्म नहीं है, जब कि 'रियल' धर्म स्वभाविक धर्म है। वह स्वभाविक सुख उत्पन्न करता है। वह तो 'खुद कौन है' ऐसा जानता है, 'यह सब कौन चलाता है' यह जानें तब मोह टूटता है। नहीं तो 'यह' मेरी बहन है और मौसी है, उस मौसी पर से भी मोह टूटता नहीं है न! यदि जल गए हों तो कोई पूछ जाता है, वर्ना लगाव किसीको भी नहीं होता।
जगत् के सारे 'रिलेटिव' धर्म विरोधाभासवाले हैं। 'रिलेटिव' धर्म किसे कहा जाता है कि इस धोती को शुद्ध करना हो तो साबुन से धोना पड़ता है, पर फिर साबुन अपना मैल छोड़ता जाता है। साबुन का मैल निकालने के लिए टिनोपॉल डालो तो वह टिनोपॉल वापिस अपना मैल छोड़ता जाता है ! वैसे ही ये लौकिक गुरु आपका मैल निकालते हैं और फिर खुद का मैल छोड़ते जाते हैं! सारे 'रिलेटिव' धर्म मैल से मैल निकालने का काम करते हैं!
वीतरागी ज्ञान सुना नहीं, जाना नहीं और श्रद्धा में नहीं। यदि वैसा हुआ होता तो काम ही हो गया होता! वीतरागी ज्ञान, वीतरागी पुरुष के बिना नहीं मिलता। परोक्ष भजना से संसार खड़ा होता है, पुण्य बंधता है। उससे संसार मीठा लगता है और उससे तो संसार में और अधिक गहरे उतरता है, इससे तो कड़वा अच्छा।
जो 'रिलेटिव' धर्म चल रहे हैं वे क्या कहते हैं कि अच्छे कार्य