________________
१२६
आप्तवाणी-४
(१५) आचरण में धर्म
धर्म और आचरण प्रश्नकर्ता : धर्म का आचरण नहीं होता है, दादा।
दादाश्री : भगवान के लिए आचरण की कीमत नहीं है. हेत की क़ीमत है। आचरण को भगवान ने 'नो कर्म' कहा है. वे नहीं जैसे कर्म हैं। हेतु सहित आचार हो उसकी तो बात ही अलग! धर्म तो, एक ही पैसा दिया हो, पर सच्चे दिल से दिया हो, वह कहलाता है। जो वस्तु हमें स्थिरता करवाए वह धर्म! 'ज्ञानी पुरुष' स्थिरतावाले होते हैं, इसलिए जो कोई भी उनसे डोरी बाँध जाए, उसकी नाव स्थिर रहती है।
मनुष्यत्व की सार्थकता प्रश्नकर्ता : यह मनुष्य जन्म व्यर्थ नहीं जाए, उसके लिए क्या करना चाहिए?
दादाश्री : 'यह मनुष्य जन्म व्यर्थ नहीं जाए' उसका ही पूरे दिन चिंतवन करें तो वह सफल होगा। इस मनुष्य जन्म की चिंता करनी है, जबकि लोग लक्ष्मी की चिंता करते हैं! कोशिश करना आपके हाथ में नहीं है, पर भाव करना आपके हाथ में है। कोशिश करना दूसरे की सत्ता में है। भाव का फल आता है। वास्तव में तो भाव भी परसत्ता में है, परन्तु भाव करो तो उसका फल आता है।
क्लेश, वहाँ धर्म नहीं क्लेश यानी भयंकर संसार रोग। जिससे क्लेश उत्पन्न नहीं हो उसे
धर्म कहते हैं। संसार में खाए-पीए उसमें हर्ज नहीं है, पर जो क्लेश उत्पन्न होता है, वह नहीं होना चाहिए। भगवान क्या कहते हैं कि मोक्ष नहीं मिले उसमें हर्ज नहीं है, परन्तु क्लेश नहीं हो तो संसार में रहना अच्छा है। क्लेश तो भयंकर रोग कहलाता है, टी.बी. से भी अधिक भयंकर रोग कहलाता है। 'क्लेश नहीं गया तो तू धर्म ही नहीं जानता', ऐसा भगवान ने कहा है। क्लेश हो तो जानवरगति आती है। इसलिए दो बातें सीख लेनी हैं। क्लेश नहीं होता हो तो संसार में रहना, नहीं तो मोक्ष का मार्ग ढूंढना। जहाँ थोड़ा भी क्लेश है-वहाँ धर्म नहीं है और जहाँ धर्म है-वहाँ क्लेश नहीं है। क्लेश का अर्थ तो मानसिक रोग है। उसके कारण तो अगला जन्म बिगड़ता है। देह को रोग हो जाए तो अगला जन्म नहीं बिगड़ता, फिर भी उसके लिए तो इलाज करवाते हैं। तो फिर क्लेश के रोग के इलाज की खोज नहीं करनी चाहिए? उसकी तो तुरन्त खोज करनी चाहिए, कि किस कारण से क्लेश हुआ है!
अक्रम विज्ञान : नया ही अभिगम पूरा संसार गलतफहमी के कारण है। मैं लोगों से कहूँ कि, 'दया रखो, शांति रखो, सत्य बोलो।' तो लोग मुझे कहेंगे कि, 'आप ही दया रखिए, हमसे नहीं होता।' हजारों वर्षों से शास्त्र भी यही गाते रहते हैं कि 'सच बोलो, दया रखो, शांति रखो, क्रोध मत करो' तब लोग कहते हैं कि, 'हमें लाख सच बोलना है, पर सच बोला नहीं जाता। लाख क्रोध नहीं करना है, पर हो जाता है। इसलिए आपके शास्त्र काम के नहीं हैं।' ऐसा करके लोगों ने पुराणोंशास्त्रों को परछत्ती पर चढ़ा दिया है। हम जगत् को नया ही साइन्स देना चाहते हैं। दया रखनी, शांति रखनी, सत्य बोलना, वे सब इफेक्ट्स हैं। लोगों के पास 'इफेक्ट्स ' का ज्ञान है, किसीके पास 'कॉजेज' का ज्ञान है ही नहीं, वह अज्ञान है। हम कॉज़ेज़ का स्पष्टीकरण देना चाहते हैं। ओपन टु स्काइ कर दे, वह ज्ञान है। ज्ञान तो क्रियाकारी होना चाहिए। अनुभवजन्य ज्ञान हो तभी क्रियाकारी होता है। बाक़ी पुस्तकों के ज्ञान से तो भटके ही हैं। 'रिलेटिव' धर्म कैसा होना चाहिए कि जो परिणाम लाए।
सब धर्मों का कुदरती प्रकार से बदलाव होनेवाला है और यह