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(९) व्यक्तित्व सौरभ
प्रश्नकर्ता : आप्तवाणी पढ़ते-पढ़ते 'दादा' दिखते हैं!
दादाश्री : हाँ.... 'दादा' दिखते हैं। एक्जेक्ट 'दादा' दिखते हैं। जहाँ इच्छा करे, वहाँ 'दादा' दिखे वैसे हैं और अपना फल मिले वैसा है। ये 'दादा' नहीं हैं, ये दिखते हैं वे तो भादरण के पटेल हैं। ये बोलते हैं वे भी दादा नहीं है, वह तो टेपरिकॉर्ड बोलता है। 'दादा' तो 'दादा' हैं! जो वीतराग हैं, चौदह लोक के नाथ हैं !! जिन्हें 'हम' भी भजते हैं। जो भीतर वीतराग बैठे हैं, वे 'दादा' हैं। ये तो भीतर प्रकट हो गए हैं! कितने ही लोगों का कल्याण हो जाएगा। हाथ से स्पर्श करेगा उसका भी कल्याण हो जाएगा! यह 'अक्रम विज्ञान' है। अभी क्रमिक चले वैसा नहीं है।
(१०)
अक्रम मार्ग 'ज्ञानी' कृपा से ही 'प्राप्ति' प्रश्नकर्ता : आपने जो अक्रम मार्ग कहा, वह आपके जैसे 'ज्ञानी' के लिए ठीक है, सरल है। पर हमारे जैसे सामान्य, संसार में रहनेवाले, काम करनेवाले लोगों के लिए वह मुश्किल है। तो उसके लिए क्या उपाय
दादाश्री : 'ज्ञानी पुरुष' के वहाँ भगवान प्रकट हो चुके होते हैं, चौदह लोक के नाथ प्रकट हो चुके होते हैं, वैसे 'ज्ञानी पुरुष' मिल जाएँ तो क्या बाकी रहेगा? आपकी शक्ति से नहीं करना है। उनकी कृपा से होता है। कृपा से सबकुछ ही बदल जाता है। इसलिए यहाँ तो जो आप माँगो वह सारा ही हिसाब पूरा होता है। आपको कुछ भी नहीं करना है। आपको तो 'ज्ञानी पुरुष' की आज्ञा में ही रहना है।
प्रश्नकर्ता : परन्तु खुद के आत्मा का उद्धार खुद के आत्मा को ही करना है न?
दादाश्री : ठीक है, पर वह बात 'क्रमिक मार्ग' की है। यह तो 'अक्रम विज्ञान' है। यानी प्रत्यक्ष भगवान के पास से काम निकाल लेना है और वह आपको प्रतिक्षण रहता है, घंटे-दो घंटे ही नहीं।
प्रश्नकर्ता : यानी उन्हें सब सौंप दिया हो, तो वे ही सब करते हैं?
दादाश्री : वे ही सब करेंगे, आपको कुछ भी नहीं करना है। करने से तो कर्म बंधेगे। आपको तो सिर्फ लिफ्ट में बैठना है। लिफ्ट में पाँच