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(१०) अक्रम मार्ग
आप्तवाणी-४
आज्ञाएँ पालनी हैं। लिफ्ट में बैठने के बाद भीतर उछलकूद मत करना, हाथ बाहर मत निकालना, इतना ही आपको करना है। कभी ही ऐसा मार्ग निकलता है, वह पुण्यशालियों के लिए ही है। यह तो अपवाद मार्ग है। दस लाख वर्षों में एकबार अपवाद मार्ग निकलता है! वर्ल्ड का यह ग्यारहवाँ आश्चर्य कहलाता है ! अपवाद में जिसे टिकिट मिल गई, उसका काम हो गया।
....अपूर्व और अविरोधाभास प्रश्नकर्ता : इस 'अक्रम' द्वारा मोक्ष देने की बात है, वह आपने शुरू की है या पहले कुछ था ऐसा?
दादाश्री : हर बार दस लाख वर्षों में आता है। यह बिल्कुल नया नहीं है, पर नया इसलिए दिखता है कि दस लाख वर्षों से किसी पुस्तक में नहीं होता है, इसलिए अपूर्व कहलाता है। पढ़ा नहीं हो, सुना नहीं हो, जाना नहीं हो, वैसा यह अपूर्व!
प्रश्नकर्ता : आप ज्ञान देते हैं, उसके पीछे कोई वैज्ञानिक भूमिका हो तो वैसी कोई बात कीजिए न!
दादाश्री: यह पूरा विज्ञान ही है, अविरोधाभासी विज्ञान है। और विज्ञान की भूमिका क्या है? आपके सर्व पाप भस्मीभूत कर डालता है। उसके बिना तो आप साक्षात्कार प्राप्त ही नहीं कर सकते और साक्षात्कार प्राप्त किए बिना मोक्ष में नहीं जा सकते और वह साक्षात्कार योग निरंतर रहना चाहिए। एक क्षण भी साक्षात्कार योग नहीं बदले, अपने आप ही रहा करे, आपको याद नहीं करना पड़े।
आत्मा जानने के लिए, अरे आत्मा जानने की बात तो कहाँ गई पर आत्मा कुछ श्रद्धा में आए कि 'मैं आत्मा हँ' वैसी प्रतीति बैठे उसके लिए भयंकर प्रयत्न लोगों ने किए हैं। पर वह श्रद्धा बैठनी मुश्किल हो जाती है, ऐसा विचित्र काल है। अब ऐसे काल में आत्मा का अनुभव 'ज्ञानी पुरुष' के पास से हो जाना, वे ही इस अक्रम ज्ञान की सिद्धियाँ हैं। सभी देवीदेवताओं की जो 'ज्ञानी पुरुष' पर कृपा बरसती है, पूरा ब्रह्मांड जिन पर
खुश है, उससे यह सब प्राप्त होता है।
अक्रम में पात्रता प्रश्नकर्ता : उपादान की योग्यता के बिना, पात्रता के बिना निमित्त उपकार कर सकता है? यदि कर सकता है तो कितना और किस प्रकार से?
दादाश्री : क्रमिक मार्ग में उपादान की योग्यता के बिना निमित्त उपकार नहीं कर सकता। ये अक्रमज्ञानी चाहे किसीका भी काम कर सकते हैं। उनसे मिला, वही उसकी पात्रता। यह तो अक्रमविज्ञान है. घंटेभर में ही मुक्ति दे, ऐसा यह विज्ञान है! जो करोड़ों जन्मों तक नहीं हो सके, वह घंटेभर में ही हो जाता है! तुरन्त फल देनेवाला है। क्रमिक अर्थात् क्या कि 'स्टेप बाय स्टेप'। सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ना, परिग्रह छोड़ते-छोड़ते ऊँचे चढ़ना।
प्रश्नकर्ता : यदि सत्ता में जो दोष डल गए हों तो अक्रमिक मार्ग से सद्गुरु उनका नाश कर सकते हैं?
दादाश्री : हाँ, सबका नाश कर देते हैं।
प्रश्नकर्ता : खद का आत्मा उन दोषों का नाश नहीं कर सकता, परन्तु सद्गुरु कर सकते हैं?
दादाश्री: 'ज्ञानी पुरुष' सबकुछ ही कर सकते हैं। 'ज्ञानी पुरुष' क्या नहीं कर सकते? सबकुछ कर सकते हैं, क्योंकि वे कर्ता नहीं हैं। जो कर्ता हों, उनसे कुछ नहीं होता। और 'ज्ञानी परुष' तो कर्ता हैं ही नहीं. सिर्फ निमित्त ही हैं।
प्रश्नकर्ता : खुद का आत्मा वह नहीं कर सकता?
दादाश्री : खुद का आत्मा यदि कर सकता तो अभी तक भटकना ही नहीं पड़ता न? निमित्त के बिना कभी भी ठिकाना नहीं पड़ता। खुद का आत्मा कुछ नहीं कर सकता। जो बंधा हुआ है, वह स्वयं किस तरह छूट सकता है?