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(९) व्यक्तित्व सौरभ
आप्तवाणी-४
वह तो बहुत लोगों के पास है। परन्तु निमित्त के बिना क्या करें? दूसरा कोई उपाय नहीं है।
प्रश्नकर्ता : निमित्त पुण्य से मिलते हैं या पुरुषार्थ से?
दादाश्री : पुण्य से। वर्ना, पुरुषार्थ करे और इस उपाश्रय से उस उपाश्रय की ओर दौड़े, ऐसे अनंत जन्मों तक भटकता रहे तो भी निमित्त प्राप्त नहीं होंगे और हमारे पुण्य हों तो रास्ते में ही मिल जाते हैं। उसमें पुण्यानुबंधी पुण्य चाहिए।
पुण्य का संबंध कब तक?
प्रश्नकर्ता : आत्मा का पुण्य से कोई संबंध है?
दादाश्री : कोई संबंध नहीं है। पर जब तक बिलीफ़ ऐसी है कि 'यह मैं कर रहा हूँ, तब तक संबंध है। जब 'मैं नहीं करता' वह राइट बिलीफ़ बैठ जाए, उसके बाद आत्मा का और पुण्य का कोई संबंध नहीं
धर्मध्यान प्रश्नकर्ता : धर्मध्यान किसे कहते हैं?
दादाश्री : कोई गालियाँ दे और क्रोध हो जाए, वह रौद्रध्यान है। अब कोई गालियाँ दे, तब इतना ज्ञान हाज़िर हो जाए कि यह गालियाँ देनेवाला निमित्त है और यह मेरे ही कर्म के उदय का फल आया है, इसलिए इसमें कोई गुनहगार है ही नहीं। ऐसा समझ में आए और खुद को क्रोध नहीं आए तब धर्मध्यान होता है। और्तध्यान और रौद्रध्यान को बदलना, वह धर्मध्यान है।
शुक्लध्यान प्रश्नकर्ता : शुक्लध्यान अर्थात् क्या?
दादाश्री : शुक्लध्यान अर्थात् 'मैं शुद्धात्मा हँ', वैसा निरंतर ध्यान रहे, वह । वह टुकड़ों में नहीं होना चाहिए, निरंतर होना चाहिए। शुक्लध्यान यानी शाश्वत वस्तु का ध्यान उत्पन्न होना, वह और धर्मध्यान, वह अवस्था का, अशाश्वत वस्तु का ध्यान उत्पन्न होना, वह है।
मन और आत्मा प्रश्नकर्ता : मन और आत्मा में क्या फर्क है?
दादाश्री : मन तो अज्ञान परिणाम से खड़े हुए स्पंदनों की गाँठे हैं, वे फूटें तब विचार स्वरूप होता है। मन तो स्थूल है, निश्चेतन चेतन है और आत्मा तो चैतन्य परमात्मा है।
प्रेम और भक्ति प्रश्नकर्ता : प्रेम और भक्ति, उन दोनों में से उत्तम कौन-सा है?
दादाश्री : भगवान के प्रति प्रेम न? यह संसारी प्रेम नहीं है न? भगवान के प्रति प्रेम हो तो ही भक्ति उत्पन्न होगी, नहीं तो नहीं होगी। बिना प्रेम की भक्ति, वह भक्ति ही नहीं मानी जाएगी।
प्रश्नकर्ता : पुण्य की वृद्धि हो उसके लिए क्या करें?
दादाश्री : सारे दिन लोगों पर उपकार करते रहना। इन मनोयोग, वाणीयोग और देहयोग का उपयोग लोगों के लिए करना, वह पुण्य कहलाता है।
प्रश्नकर्ता : दूसरे का भला करने जाएँ, पर खुद का बिगड़ जाए तो? दादाश्री : खुद का उसमें नहीं बिगड़ेगा, उसकी हम गारन्टी देते
प्रश्नकर्ता : अभी का यह काल ऐसा है कि माला फेरें, जप करें, तप करें, भक्ति करें, चाहे जो करे, फिर भी शांति नहीं रहती, वह क्या है?
दादाश्री : उसका अर्थ यही है कि ठीक रास्ता नहीं मिला है, इसलिए रास्ता बदलो।