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________________ (९) व्यक्तित्व सौरभ ८३ आप्तवाणी-४ दादाश्री : अज्ञान से बिल्कुल निर्लेप विज्ञान, वह एब्सोल्यूट विज्ञान दादाश्री : दर्शन ही मोक्ष में जाने का मुख्य साधन है। ज्ञान तो दर्शन के विशेष भाव से है। और ज्ञान-दर्शन मिल जाएँ, तब चारित्र उत्पन्न होता है। ज्ञान किसे कहते हैं? दर्शन द्वारा जो जाना, समझा, वह अंदर फिट हो जाए, फिर वह दूसरों को समझाए, वैसी दशा उत्पन्न हो, तब वह ज्ञान कहलाता है। वास्तव में तो दर्शन ही काम करता है। प्रश्नकर्ता : ज्ञान और शुद्धात्मा के बीच कोई संबंध है? दादाश्री : शुद्धात्मा खुद ही ज्ञानस्वरूप है। खुद संपूर्ण ज्ञानस्वरूप हो जाए तब परमात्मस्वरूप कहलाता है। प्रश्नकर्ता : आत्मा क्रिया नहीं करता तो कर्म कौन बाँधता है? दादाश्री : अहंकार जो यह बोलता है कि, 'मैंने यह किया' वही कर्म बाँधता है। प्रश्नकर्ता : ज्ञायक और जिज्ञासु, उन दोनों में क्या फर्क है? दादाश्री : बहुत फर्क है। उनकी तो तुलना ही नहीं हो सकती। ज्ञायक तो खुद परमात्मा हुआ और जिज्ञासु को तो गुरु बनाने पड़ेंगे, ढूंढते रहना पड़ेगा। जिज्ञासा उत्पन्न हुई है यानी पुरुषार्थी हुआ कहलाएगा, पर यह ज्ञायक तो खुद ही भगवान कहलाता है। प्रश्नकर्ता : मुमुक्षु और जिज्ञासु में क्या फर्क है? दादाश्री : मुमुक्षु अर्थात् केवल मोक्ष की इच्छावाला और जिज्ञासु अर्थात् जिसे अभी तक सुख की वांछना है और वह जहाँ से मिले वहाँ से लेने जाता है। प्रश्नकर्ता : ब्रह्मांड के अंदर और ब्रह्मांड के बाहर से देखना मतलब क्या? दादाश्री : ज्ञेयों में तन्मयाकार हो जाए, तब ब्रह्मांड में कहलाता है। और ज्ञेयों को ज्ञेय के रूप में देखे, तब ब्रह्मांड से बाहर कहलाता है। प्रश्नकर्ता : एब्सोल्यूट विज्ञान अर्थात् क्या? प्रश्नकर्ता : आत्मा शब्द अनादिकाल से है? दादाश्री : हाँ, अनादि काल से है। अनादि काल से ज्ञान और ज्ञान का तरीका एक ही है। निमित्त की महत्ता प्रश्नकर्ता : आत्मा को पहचानने के लिए निमित्त की ज़रूरत है क्या? दादाश्री : निमित्त के बिना तो कुछ नहीं होता है। किसीको ही वह अपवादरूप में होता है, उसे स्वयंबुद्ध कहा जाता है। स्वयंबुद्ध को भी पिछले अवतारों में ज्ञानी मिले हों, तब होता है। निमित्त के बिना तो कुछ भी नहीं होता। उपादान भी जागृत चाहिए और निमित्त भी चाहिए। 'उपादान का नाम लेकर जो तजे निमित्त, पाए नहीं सिद्धत्व को रहे भ्रांति में स्थित।' - श्रीमद् राजचंद्र। यानी पहले निमित्त चाहिए। उपादान अजागृत हो तो भी ज्ञान उसे ऊँचा ले आएगा, पर निमित्त के बिना कुछ भी नहीं होगा। प्रश्नकर्ता : वैसा सौ प्रतिशत निश्चित रखे कि निमित्त से आत्मानुभव नहीं होता है, तो? दादाश्री : तो आत्मानुभव कभी भी नहीं होगा। लाखों मन उपादान जागृत रखे, पर निमित्त नहीं मिले तो वह कभी भी नहीं होता। निमित्त की ही क़ीमत है सारी। प्रश्नकर्ता : यानी ऐसा निश्चित रखें कि निमित्त से ही आत्मानुभव होता है? दादाश्री : ऐसा है न, उपादान जागृति तो सभी को रखनी ही चाहिए,
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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