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(९) व्यक्तित्व सौरभ
आप्तवाणी-४
दादाश्री : आपकी ही तरह मुझे बहुत लोग पूछते हैं, तब मुझे कहना पड़ता है कि, 'आपको नकल करनी है? नकल करोगे तो आपकी मेहनत बेकार जाएगी।' 'दिस इज बट नेचुरल।' और वह भी सूरत स्टेशन की बेंच पर बैठा हुआ था, तब अत्यंत भीड़ में यह ज्ञान प्रकट हुआ!
प्रश्नकर्ता : आपको 'बट नेचुरल' ज्ञान हुआ वह क्या है? उसे समझाइए।
दादाश्री : 'बट नेचुरल' ज्ञान किसीको ही होता है। कोई कहेगा कि, 'मैंने अपने आप किया है। तो वह ज्ञान अधूरा रहता है। यह तो 'नेचुरली' अपने आप हुआ है। यदि किया होता, तो ८० प्रतिशत विकल्प कम हुआ होता, तो २० प्रतिशत बाकी रहता। यह तो १०० प्रतिशत निर्विकल्प है, यह वीतराग विज्ञान है।
'ज्ञानी', मोक्ष का प्रमाण देते हैं प्रश्नकर्ता : आपका नित्यक्रम क्या है?
दादाश्री : मैं मेरे मोक्ष में ही निरंतर रहता हूँ, अभी भी मैं मेरे मोक्ष में ही हूँ। यह वाणी निकल रही है, वह टेपरिकॉर्ड निकल रहा है, उसका मालिक मैं नहीं हूँ। यह वाणी 'सही है या गलत' उसे मैं देखता रहता हूँ।
प्रश्नकर्ता : आपके भीतर की 'टेप' नहीं बोले, तब वह 'ब्लेन्क' निकल जाती है क्या?
दादाश्री : सुनाई दे वैसी टेप भी चलती रहती है और सूक्ष्म वाणी की टेप भी चलती रहती है।
प्रश्नकर्ता : 'ज्ञानी पुरुष' परमाणु बदल सकते हैं? या फिर उनकी उपस्थिति से वे बदलते हैं?
के रंग बदल सकते हैं, वह हम कर देते हैं।
प्रश्नकर्ता : दूध में दही डाला, वह किसे कहा जाता है?
दादाश्री : जो जम गया है, बर्फ के रूप में हो चुके हैं, उन कर्मों को तो भोगना ही पड़ेगा। भाप और पानी के रूप में हों, उन्हें 'ज्ञानी' भस्मीभूत कर देते हैं। फिर भी खुद तो नैमित्तिक भाव में ही होते हैं, अकर्ता ही रहते हैं।
प्रश्नकर्ता : मोक्ष अर्थात् क्या?
दादाश्री : मोक्ष अर्थात् सर्व दु:खों से मुक्ति और सनातन परमानंद रहे। मोक्ष अर्थात् मुक्तभाव।
प्रश्नकर्ता : बंधन किससे है? दादाश्री : अज्ञान से। प्रश्नकर्ता : मोक्ष, वह स्थल है या अवस्था है?
दादाश्री : वह अवस्था है और वह यह 'अवस्था' नहीं है, वह स्वाभाविक अवस्था है।
प्रश्नकर्ता : मोक्ष अर्थात् स्वतंत्रता?
दादाश्री : हाँ, सच्ची आज़ादी-कोई ऊपरी नहीं और कोई अन्डरहैन्ड भी नहीं।
प्रश्नकर्ता : वैसी मुक्त स्थिति संसार में उपलब्ध है?
दादाश्री : क्यों नहीं? यह मैं प्राप्त करके बैठा ही हूँ न! संसार में रहकर उपलब्ध हो सकता है, उसके प्रमाण के रूप में मैं हूँ। मुझे देखकर आपको एन्करेजमेन्ट मिलता है कि संसार में भी उपलब्ध हो सके ऐसा
दादाश्री: दूध में दही डालने के बाद ज्ञानी कछ भी नहीं कर सकते। दही डालने से पहले कहें तो होगा, बाद में कुछ नहीं होगा। 'ज्ञानी कर्म भस्मीभूत कर सकते हैं, सिर्फ वही एक उनकी सत्ता है। कुछ भागों
प्रश्नकर्ता : दर्शन और ज्ञान में क्या फर्क है?