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________________ (८) तिरस्कार-तरछोड़ ওও तरछोड़ किसे मारते हो? भगवान को ही। क्योंकि हर एक के भीतर भगवान बैठे हुए हैं। मनुष्य को गाली नहीं पहुँचती, भगवान को पहुँचती है। संसार के सभी परिणाम भगवान स्वीकार करते हैं, इसलिए वे परिणाम ऐसे लाना कि भगवान स्वीकार करें तो वहाँ अपना खराब नहीं दिखे, एक जीव को भी तरछोड़ मारकर कोई मोक्ष में नहीं जा सकता। व्यक्तित्व सौरभ वीतरागता से बरतते हैं 'ये' 'ज्ञानी' प्रश्नकर्ता : आपको सबसे अधिक प्रिय वस्तु कौन-सी है? दादाश्री : मुझे आत्मा के सिवाय कोई वस्तु प्रिय नहीं है। प्रश्नकर्ता : आध्यात्मिकता के बारे में आपके अनुभव, विचार बताइए। दादाश्री : मैं मन-वचन-काया से बिल्कुल जुदा रहता हूँ, बिल्कुल निराला रहता हूँ। फिर भी केवलज्ञान नहीं हुआ है, काल के आधार पर वह चार डिग्री पचा नहीं है। प्रश्नकर्ता : संसार से आप किस प्रकार अलिप्त रह सकते हैं? दादाश्री : संपूर्ण वीतरागता से। व्यवसाय-व्यापार करते हैं, इन्कमटैक्स-सेल्सटैक्स सभी भरते हैं, संसार की सेंकडों तलवारों के नीचे भी वीतरागता में रहते हैं। हाथ काट डालें, तो भी वीतरागता रहती है। प्रश्नकर्ता : इतना होने के उपरांत भी आपको व्यापार का महत्व लगता है? दादाश्री : हमें किसी चीज़ का महत्व नहीं होता, फिर भी करना पड़ता है। पुलिसवाला पकड़कर ले जाए और करवाए और वह करना पड़े, उसके जैसा है। प्रश्नकर्ता : व्यापार में फायदा हो तो?
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
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