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(१) जागृति
आप्तवाणी-४
क्रोध-मान-माया-लोभ निकालने हैं या नहीं?' तब वह कहता है कि, 'हाँ, निकालने हैं।' 'निकालने हैं' कहे तब तक वह जागृत है। परन्तु क्रोधमान-माया-लोभ को खुराक दे देता है, वह अजागृति है। जिन्हें निकालने हैं उन्हें खुराक देते हैं, इसलिए वे टिकते हैं। यदि तीन वर्ष तक उन्हें खुराक नहीं दें तो वे खड़े ही नहीं रहें। मनुष्य अजागृत हैं, ये जानवर भी अजागृत हैं, तो दोनों एक जैसे ही कहलाएँगे न? मनुष्यगति का लाभ नहीं मिला उसे!
निजदोष दर्शन खुद का दोष दिखे तब समझना कि जागृत हुआ है, नहीं तो नींद में ही चलते हैं सभी। दोष खत्म हुए या नहीं हुए, उसकी बहुत चिंता करने जैसी नहीं है, पर जागृति की मुख्य ज़रूरत है। जागृति होने के बाद नये दोष खड़े नहीं होते और पुराने दोष हों तो वे निकलते रहते हैं। आप उन दोषों को देखो कि किस-किस तरह के दोष होते हैं।
खुद के दोष दिखें, तब समझना कि मोक्ष में जाने की तैयारी हुई। जागृति के बिना किसीको खुद के दोष नहीं दिखते। सामनेवाले के दोष निकालने हों तो दो सौ-पाँच सौ निकाल देता है ! यदि हमारे दोष किसीको नुकसान कर रहे हों तो 'हमें' 'चंदूभाई' से कहना चाहिए कि, 'प्रतिक्रमण करो।' किसीको किंचित् मात्र दु:ख देकर कोई मोक्ष में नहीं गया है। रोज आम का रस और पूरियाँ खाता होगा तो उसमें हर्ज नहीं, पर यह दुःख देकर मोक्ष में जाए, वह होता नहीं। यहाँ पर 'क्या खाते हैं, क्या पीते हैं', उसकी वहाँ क़ीमत नहीं है। पर वहाँ तो कषायों का ही हर्ज है और अजागृति नहीं रहनी चाहिए। जगत् को सोता हुआ क्यों कहा जाता है? क्योंकि 'स्व-पर' का भान नहीं है, खुद का, स्व का और पर का, हिताहित का भान नहीं रहा। मोक्ष के लिए कषायों का हर्ज है।
'टॉपमोस्ट' जागृति हमारी जागृति 'टॉप' पर की होती है, आपको पता भी नहीं चलता। पर आपके साथ बोलते हुए जहाँ हमारी भूल होती है, वहाँ हमें तुरन्त मालूम
पड़ जाता है और तुरन्त उसे धो डालते हैं। उसके लिए यंत्र रखा हुआ होता है, जिससे तुरन्त ही धुल जाता है। हमारे सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम दोष बचे हैं, जो जगत् के किसी भी जीव को थोड़े-से भी नुकसानदेह नहीं होते। हमें पूरा जगत् निर्दोष दिखता है। हम खुद निर्दोष हुए हैं और पूरे जगत् को निर्दोष ही देखते हैं। अंतिम प्रकार की जागृति कौन-सी कि जगत् में कोई दोषित ही नहीं दिखे, वह।
ज्ञाता-ज्ञेय के रूप में जगत् में संपूर्ण ज्ञान हाज़िर रहे, वह संपूर्ण जागति, वह हमें रहती है। और जिसे हमारा ज्ञान मिला हो, उन्हें कितनी जागृति होनी चाहिए कि कोई भी घटना हो, तब हमारे 'पाँच वाक्य' 'एट ए टाइम' हाज़िर रहें और भीतर पेट का पानी ज़रा भी नहीं हिले। कोई भी देहधारी हो, फिर पेड़ हो, पक्षी हो, उनमें शुद्धात्मा देखते-देखते जाएँ। ऐसी जागृति रहे, उसे 'टॉप'वाली जागृति कहा है। उससे ऊपर की 'टॉपमोस्ट' जागृति कौन-सी? कि मैं इस 'चंदूभाई' के साथ बातें करूँ, तब निश्चय से ये 'चंदूभाई कौन हैं, वह लक्ष्य में रखकर बात होती है, 'वह शुद्धात्मा है' वह लक्ष्य में रखकर बात होती है। जागृति तो बहुत 'टॉप' बात है।
भाव जागृति - स्वभाव जागृति प्रश्नकर्ता : भावजागृति क्या है?
दादाश्री : भावजागृति क्रमिक मार्ग में होती है। अक्रम मार्ग में स्वभाव-जागृति होती है। भावजागृति प्रकृति को गढ़ती है और स्वभावजागृति प्रकृति से निर्लेप रखती है। मेरे पाँच वाक्य आपको स्वभाव जागृति में रखते हैं। मैंने आपकी भावजागृति खत्म कर दी है। पूरा जगत् भावनिद्रा में फँसा हुआ है।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् भावजागृति से बीज पड़ते हैं?
दादाश्री : हाँ। 'मैं चंदूलाल हूँ' करके दान देने का भाव करे तो बीज पड़े। स्वभाव जागृति में आने के बाद आप बोलते जरूर हो कि, 'मुझे