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(१) जागृति
आप्तवाणी-४
न?' तब वह कहे कि, 'हाँ। जागृति तो चाहिए ही, दादा!' उसे पूछे कि, 'जागृति तुझे पूरी करनी है न?' तब कहे, 'हाँ, पूरी करनी ही है।' इस तरह सीधी टिकिट देते हैं, मुफ्त देते हैं तो नहीं लेते और वो पैसे खर्च करके लेते हैं! अपने लोग ऐसे हैं, हिताहित का भान ही नहीं।
संपूर्ण जागृति ही मोक्ष है। संपूर्ण जागृति ही केवलज्ञान है। निन्यानवे प्रतिशत जागृति हो जाए और एक प्रतिशत जोड़ दें तब सौ प्रतिशत पर केवलज्ञान होता है।
आत्मानुभाव अर्थात् क्या, कि ज्ञान मिलने से पहले जो अनुभव होते थे, उसके बदले ज्ञान मिलने के बाद नये प्रकार के अनुभव होते हैं और वे अनुभव धीरे-धीरे बढ़ते जाते हैं और जागृति बढ़ती है। संपूर्ण जागृति, वह संपूर्ण अनुभव है।
इन्द्रियज्ञान : जागृति दो प्रकार के ज्ञान हैं। एक इन्द्रियज्ञान, दूसरा अतिन्द्रियज्ञान। इन्द्रियज्ञान सीमित है, अतीन्द्रियज्ञान असीमित है। लोगों को इन्द्रियज्ञान में भी, संसार में पूर्ण जागृति नहीं है। इन्द्रियज्ञान में यदि संपूर्ण जागृत हो चुका हो तो वह जबरदस्त संतपुरुष कहलाता है।
प्रश्नकर्ता : इन्द्रियज्ञान में संपूर्ण जागृति मतलब क्या?
दादाश्री : पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार वह सब इन्द्रियज्ञान में आता है। इन्द्रियज्ञान की संपूर्ण जागृति में आए तब उसका अहंकार कैसा होता है कि किसीके साथ उसका मतभेद नहीं पड़ता, हम मतभेद डालें तो भी वह मतभेद नहीं डालता, उस तरह से हट जाता है। कहीं पर झगड़ा होने की जगह हो तो वहाँ वह मतभेद का निवारण कर देता है। इन्द्रियज्ञान की जागृति से किसीके साथ किंचित् मात्र टकराव नहीं होता, एवरीव्हेर एडजेस्टेबल हो जाता है, सांसारिक दख़ल नहीं होती।
इन्द्रियज्ञान में भी दो प्रकार की जागृति है। एक बाह्य और दूसरी आंतरिक। भले अतिन्द्रियज्ञान नहीं मिलता, पर इन्द्रियज्ञान थोड़े ही चला
गया है? उसके स्टुडेन्ट भी हिन्दुस्तान में बहुत मिलते हैं, परन्तु उसके अध्यापक नहीं हैं, कॉलेज नहीं हैं।
क्रोध-मान-माया-लोभ का कारण क्या है?
किसी व्यक्ति को मतभेद हुआ तो उसका कारण क्या है? तो कहें, भावनिद्रा। किसी व्यक्ति को क्रोध हुआ तो उसका कारण क्या है? तो कहे. भावनिद्रा। किसी व्यक्ति को लोभ होता हो तो उसका कारण क्या है? तो कहे, भावनिद्रा। भावनिद्रा से उपदेश ग्रहण नहीं होता। हमें एकबार क्रोध हुआ तो उसमें से हमें एकबार उपदेश मिलता है न कि फिर क्रोध नहीं करो? इसके बावजूद फिर क्रोध करता है, वह भावनिद्रा।
क्रोध आना, लोभ होना, वह अजागृति है। जितनी-जितनी अजागृति कम हुई, जागृत हो, वैसे-वैसे क्रोध-मान-माया-लोभ कम होते जाते हैं। अजागृत अर्थात् क्रोध करने के बाद भी नहीं पछताता। क्रोध करके जो पछताता है, उसे थोड़ी जागृति है, पर वह अजागृत अधिक है। क्रोध करने के बाद पता चल जाए और फिर उसे शुद्ध कर डाले वह कुछ जागृति कहलाती है। पर क्रोध करने के बाद पता ही नहीं चलता, वह अजागृत दशा! जो जागति, क्रोध नाम की कमजोरी उत्पन्न करे उसे जागृति कहेंगे ही कैसे? कहीं भी क्रोध नहीं हो, वैसा होना चाहिए। जो जागृति क्रोध का शमन करे, वह जागृति अच्छी। सच्ची जागति तो. क्रोध होनेवाला हो. उसे मोड़ ले, वह। लोगों को जागृति होती ही नहीं।
अभी मनुष्यों में जो एक प्रतिशत भी जागृति रही है, वह इस नाभि जितनी ही है। दूसरी सब जगह अजागृत दशा है, इस नाभिप्रदेश में जो रूचक प्रदेश खुले हुए हैं न, उतनी जागृति है। बाक़ी जागृति ही नहीं रही, जागृति ही खत्म हो गई है। जागृति बढ़ती-बढ़ती ३६० डिग्री की जागृति हो जाए, वह केवलज्ञान है। जागृति ३५९ डिग्री हो तब तक जागृति ही कहलाती है।
क्रोध-मान-माया-लोभ सभी अजागृति है। कोई मुझे पूछे कि वह अजागृति किस प्रकार से? वह समझाइए।' तब हम उसे कहें कि, 'आपको