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(१) जागृति
अच्छा ही नहीं लगता उसे, उसे संसार दुःखदायी लगता है। उसके बाद वापिस खुद की जागृति करने का प्रयत्न करता है। जैसे-जैसे इस संसार की जागृति बढ़े, वैसे-वैसे भौतिक सुख, दुःख जैसे लगते हैं, भौतिक सुखराजसुख जंजाल जैसे लगते हैं। चक्रवर्ती राजाओं की खुद की तेरह सौ रानियाँ थीं। चक्रवर्ती का राज्य था, वह भी उन्हें निरंतर दुःखदायी लगता रहता था। क्योंकि सुख की चोटी पर बैठा हुआ व्यक्ति, जिसे संसार की जागृति अत्यधिक बढ़ चुकी हो, तब उसे संसार की जागृति ही दुःखरूप लगती है। इसलिए वह समझता है कि मुझे नया जानना बाक़ी रह गया है कि जिसमें से मुझे परमानेन्ट सुख मिले। हर एक जीव सुख को ढूंढता है। जब तक सच्चा सुख नहीं मिलता, तब तक भौतिक सुखों में जितनी जागृति हो उस अनुसार उसे सुख मिलते रहते हैं। पर यह भौतिक सुख सारा द्वंद्ववाला सुख है, इसलिए सुख के बाद दुःख आए बगैर रहता ही नहीं और आत्मिक सुख द्वंद्वातीत सुख है। जो सुख आने के बाद फिर कभी भी जाए नहीं, वह द्वंद्वातीत सुख, सच्चा सुख है। जैसे-जैसे स्वरूप की जागृति बढ़े, वैसे-वैसे सच्चा सुख प्रकट होता जाता है। यह स्वरूपज्ञान देने से आपको जागृति उत्पन्न होती है, फिर उसके बाद संसार की जागृति तो बढ़ती रहती है, पर स्वरूप जागृति ही मुख्य वस्तु है। ये फ़ॉरेन के साइन्टिस्ट 'जागृति, जागृति' बोलते हैं, पर वह जागृति पुद्गल में है, अध्यात्म में तो कुछ भान ही नहीं। 'इसमें' तो सोते हैं सभी, पूरा जगत् सो रहा है।
खिलौनों की रमणता
पुद्गल की जागृति अर्थात् विनाशी चीज़ों में ही रमणता। यानी खिलौनों से ही खेलते हैं सभी, पूरा जगत् खिलौनों से ही खेल रहा है।
खुली आँखों से निद्रा जैसा खेल है। जागृत हो जाए तब खिलौनों से नहीं खेलते। और अविनाशी, सनातन चीज़ से खेले, वह जागृत। बाक़ी, ये खिलौने तो टूटते रहेंगे और रोते रहना है, टूटते रहेंगे और फिर रोना है, टूटते रहेंगे और फिर रोना है.... विनाशी चीज़ों में खिलौनों से कब तक खेलना है? छोटा बच्चा हो उसे खिलौने दें और टूट जाएँ, तब वह
आप्तवाणी-४
क्या करता है? रोता है न? वैसे ही ये लोग भी खिलौने से खेलते हैं और खिलौना टूट जाए तो रोते हैं फिर । 'मेरा बेटा मर गया!' अरे, यह तो खिलौना टूट गया ! छोटे बच्चे को तो मालूम नहीं कि यह खिलौना टूट गया और दूसरा लाया जा सकता है !! संसार दुःखदायी नहीं है, लेकिन अजागृति दुःखदायी है।
प्रश्नकर्ता मोक्ष भी खिलौना है या नहीं?
दादाश्री : नहीं, नहीं, खिलौना नहीं है! खिलौना किसे कहा जाता है ? जो विनाशी हो उसे यह मोक्ष तो जाता ही नहीं। जीव मात्र को सुख चाहिए ही और वह भी सनातन सुख चाहिए। और वह सुख जाता ही नहीं ! कोई कान काट ले, जेब काट ले, चाहे जो करे, तो भी वह सुख जाता ही नहीं। क्योंकि खिलौनों में उसे प्रियता नहीं है, निस्बत नहीं है। जागृति ही परिणमित मोक्ष में
प्रश्नकर्ता मोक्ष और जागृति एक ही है?
दादाश्री : जागृति से ही मोक्ष है। अजागृति मतलब क्या? आपका किसीके साथ मतभेद हो जाए, वह आपकी अजागृति है। जिसे हिताहित का भान है वह जागृत और जिसे हिताहित का भान नहीं है वह अजागृत, उसे ही भावनिद्रा कहा है। खुली आँखों से सोए वह भावनिद्रा और बंद आँखों से सोए वह द्रव्यनिद्रा किसी व्यक्ति से मतभेद हुआ तो उसका कारण क्या है? तो कहें, भावनिद्रा ।
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प्रश्नकर्ता: इसका मतलब जागृति और मोक्ष एक ही है?
दादाश्री : जागृति, वो ही केवलज्ञान है, वो ही मुक्ति है। दूसरा इसमें कोई फर्क नहीं है। मगर मोक्ष का परिणाम जागृति नहीं है, जागृति का परिणाम मोक्ष है। 'जागृति इज़ द मदर ऑफ मोक्ष !'
कुछ लोग मुझे कहते हैं कि, 'दादा मुझे मोक्ष नहीं चाहिए।' ऐसा टेढ़ा बोले तब उसे हम कहें कि, 'मोक्ष नहीं चाहिए, पर जागृति चाहिए