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आप्तवाणी-४
आप्तवाणी श्रेणी - ४
(१)
जागृति जागृति हो, अचल स्वभाव की जहाँ आत्मा नहीं है, वहाँ 'मैं हूँ' ऐसी प्रतिष्ठा की, इसलिए प्रतिष्ठित आत्मा हुआ। उसमें चेतन है ही नहीं। वह 'मिकेनिकल' चेतन है। वह दरअसल आत्मा नहीं है, सिर्फ 'मशीनरी' ही है। यदि कभी उसमें पेट्रोल वगैरह नहीं डालें न, तो वह खत्म हो जाए। अरे, यहाँ से हवा ही नहीं जाने दे तो वह पूरी मशीनरी बंद हो जाए। 'मिकेनिकल चेतन' चंचल स्वभाव का है और अंदर जो दरअसल आत्मा है, वह अचल स्वभाव का है। कभी भी चंचल हुआ नहीं। ऐसा वह अचल आत्मा है और वही भगवान है, तीन लोकों का नाथ है परन्तु भान हो जाए तब!!! खुद को खुद का भान हो जाए तो तीन लोकों के नाथ जैसा सुख बरते। यह तो अभानता में है। यह सब अजागृत दशा में है।
भावनिद्रा में से जागो पूरा जगत् भावनिद्रा में है। भावनिद्रा मतलब स्वभाव में सो गया, वह और फिर देहनिद्रा में तो स्वभाव में सोता है और परभाव में भी सोता है वह। देहनिद्रा में देह का भी भान नहीं रहता। देहनिद्रा में से देह का भान आए, तब दूसरी ओर भावनिद्रा रहती है। अभानता से खुद, खुद का
अहित ही करता रहता है। क्रोध-मान-माया-लोभ, वे भावनिद्रा के कारण होते हैं। किसीको किंचित् मात्र दु:ख होता है, वह भी भावनिद्रा के कारण होता है। पूरा जगत् भावनिद्रा में है, उसमें से जागो। मैं तो आपको सिर्फ यही कहने आया हूँ कि जागो।
तुझे जागना है या सोना है? ऐसे कब तक सोता रहेगा? प्रश्नकर्ता : मैं तो जाग ही रहा हूँ न?
दादाश्री : 'कौन कहता है कि तू जाग रहा है?' जग रहा हो तो किसीके साथ क्लेश नहीं हो, झगड़ा नहीं हो, किसीके साथ मतभेद नहीं पड़े, चिंता नहीं हो।
पौद्गलिक जागृति : स्वरूप जागृति दो प्रकार की जागृति : एक पौद्गलिक जागृति और दूसरी आत्मिक जागृति। पौद्गलिक जागृतिवाला पुद्गल (जो पूरण और गलन होता है) में ही रमणता करता है और आत्मिक जागतिवाला केवल आत्मा में ही रमणता करता है। पौद्गलिक जागृति बढ़ती ही जाती है और पदगल में रमणता करते-करते थक जाता है, ऊब जाता है और फिर खुद के सच्चे सुख की इच्छा करे, तब स्वरूप जागृति के संयोग सारे मिल जाते हैं और उन संयोगों के मिलने के बाद आगे स्वरूप जागति में आता है। स्वरूप जागृति में थोड़ी आँखें खुलीं, तब फिर धीरे-धीरे पूरी आँखें खुलेंगी।
केवलज्ञान अर्थात्... संपूर्ण जागृति को ही केवलज्ञान कहा है। दूसरा कुछ है ही नहीं। केवलज्ञान कोई नई वस्तु नहीं है। किसी भी जगह पर गफलत नहीं हो, थोड़ा भी झोंका नहीं आए, उसका नाम संपूर्ण जागृति । इस संसार की जागृति तो बहुत लोगों को होती ही है, परन्तु वह सर्वांशतः नहीं होती।
संसार जागृति - दुःख का उपार्जन संसार की जागृति जैसे-जैसे सर्वांशतः होती जाए वैसे-वैसे संसार