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(१) जागृति
आप्तवाणी-४
दान देना है।' लेकिन उसका बीज नहीं पड़ता। क्योंकि निअहंकारी हैं, इसलिए।
खुद का स्वभाव क्या है, उसे नहीं जानता है इसलिए भावनिद्रा कहा है। खुद के स्वभाव को जानना वह निरालंब दर्शन है, निरालंब ज्ञान है।
जागृति की शुरूआत... पहले पुद्गल में जागृति आनी चाहिए। आत्मभान होने के बाद पुद्गल में सोए, फिर आत्मजागृति उत्पन्न होती है। द्ध ढल जाए तो ये छोटे बच्चे कच-कच करते हैं? नहीं। किसलिए? तो कहे, 'अज्ञान के कारण ही न।' फिर जैसे-जैसे बड़े होते हैं, वैसे-वैसे पुद्गल की जागृति आती है, तब कच कच करनी शुरू करते हैं। उसके बाद आत्मजागृति की बात आती है। इन बालकों को व्यवहार जागति नहीं है। किसीको व्यवहार जागृति नहीं है। व्यवहार जागृति हो तो घर में या बाहर मतभेद नहीं पड़े। किसीके साथ भी टकराव में नहीं आए। संसार में जागृति किसे कही जाती है कि खुद के घर में क्लेश होने की नौबत नहीं आने दे। व्यवहार की जागृति में लोभ-कपट-मोह जबरदस्त होते हैं और निश्चय की जागति में तो क्रोधमान-माया-लोभ खत्म हो गए होते हैं। 'नींद क्या है? और जगना क्या है?' वह तो समझना पड़ेगा न? लोग तो ऐसा ही समझते हैं कि ये पी.एच.डी. हो गए हैं। जागृत मनुष्य तो ग़ज़ब का होता है। मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार अंत:करण के इन चारों ही भागों के हर एक कार्य के समय हाजिर रहे, उसे जागृति कहते है!
जागृति किसे कहा जाता है? खुद, स्वयं से कभी भी किसी भी संयोग में क्लेशित नहीं हो, वहाँ से जागति की शरूआत होती है। फिर दूसरे 'स्टेपिंग' में दूसरे से भी खुद क्लेशित नहीं होता, तब से ठेठ सहज समाधि तक की जागृति होती है। यदि जाग गए तो जागने का फल होना चाहिए। क्लेश हो तो जाग गए किस तरह कहा जाएगा? किसीको थोड़ासा भी दु:ख दे तो वह जागृत किस तरह कहा जाएगा? क्लेश रहित भूमिका करनी, उसे बहुत बड़ा पुरुषार्थ किया कहा जाता है।
'योग-क्रियाकांड' जागृति नहीं देते प्रश्नकर्ता : ये पूजा, जप, तप, करते हैं, वह खुद की जागृति के लिए कुछ हेल्प करते हैं क्या?
दादाश्री: वह तो जिस हेतु के लिए करें, उस हेतु के लिए फल मिलता है। किसी आदमी को 'शादी' करनी हो और पत्नी नहीं मिल रही हो, तो पूजा, तप करें तो उसे वह मिल जाती है। जिस हेतु के लिए करें वह मिलता है।
प्रश्नकर्ता : उससे अध्यात्म में प्रगति नहीं मिलेगी?
दादाश्री : अध्यात्म के हेतु के लिए करे तो आध्यात्मिक फल मिलेगा। बाक़ी, आध्यात्मिक हेतु के लिए कोई करे, वैसा है ही नहीं। सभी को जलन हो रही है, उस जलन की ही दवाई चाहिए। इस संसार के दुःखों की जलन लगी है लोगों को। वह जागति के लिए कुछ करता ही नहीं। कोई मान का भूखा, कोई कीर्ति का भखा. कोई शिष्यों का भूखा, इन सभी भीखों के भूखे हैं। अध्यात्म में मान नहीं, कीर्ति नहीं, किसी चीज की वहाँ अपेक्षा नहीं है। और ये अशुभ में ही पड़े हैं, कोई मान में, कोई कीर्ति में, संसारिक चीजों में, भोगविलास में, कितने लोग ऐसे अध्यात्म मार्ग में होंगे? कोई ही व्यक्ति होगा। अधिकतर तो मान के भूखे हैं सभी।
एक ही क्षण यदि नींद बंद हो जाए तो सब तरफ प्रकाश ही हो जाए। रोज़ के क्रम में रहता हो और उसमें ही तन्मयाकार रहता हो, उसे नींद में कहा जाता है। चरम ज्ञान की तुलना में यह बात कर रहा हूँ कि ये जप-तप करते हैं, वे उसमें ही तन्मयाकार रहते हैं, उसमें से एक मिनिट भी जागृत हो जाए तो बहुत हो गया। खद के दोष दिखें और निष्पक्षपाती जजमेन्ट दे सके, वह जागृत कहलाता है। जागृत हो उसके हाथ में सत्ता आती है। संपूर्ण जागृत व्यक्ति ही हमें जागृत कर सकते हैं।
प्रश्नकर्ता : कुंडलिनी जागृत करते हैं, वह क्या है? दादाश्री : वह मिकेनिकल जागृति है, उसका और दरअसल जागृति