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(३५) कर्म की थियरी
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पूछा, 'सेठ कहाँ गए हैं?' तब सेठानी ने जवाब दिया, 'कचरेखाने'। सेठ ने अंदर बैठे-बैठे यह सुना और अंदर जाँच की तो वास्तव में वे कचरेखाने में ही गए हुए थे! अंदर तो खराब विचार ही चल रहे थे और बाहर सामायिक कर रहे थे। भगवान ऐसे घोटाले को नहीं चलने देते। अंदर सामायिक रहता हो और बाहर समायिक न भी हो तो उसका 'वहाँ पर चलेगा। ये बाहर के दिखावे 'वहाँ' चलें, ऐसे नहीं हैं।
स्थूलकर्म अर्थात् क्या, वह समझाऊँ तुझे एकदम गुस्सा आया, तुझे गुस्सा नहीं लाना फिर भी वह आ जाता है, ऐसा होता है या नहीं होता?
प्रश्नकर्ता होता है।
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दादाश्री : वह गुस्सा आया, उसका फल यहीं पर तुरन्त मिल जाता है। लोग कहते हैं कि 'जाने दो न इसे, यह तो है ही बहुत क्रोधी ।' अरे कोई तो उसे सामने धौल भी मार देता है। यानी अपयश का या और किसी तरह से उसे यहीं के यहीं फल मिल जाता है। यानी गुस्सा होना वह स्थूल कर्म है और गुस्सा आया उसके भीतर आज का तेरा भाव क्या है कि 'गुस्सा करना ही चाहिए', तो वह आनेवाले जन्म का फिर से गुस्सा करने का हिसाब है। तेरा आज का भाव है कि गुस्सा नहीं करना चाहिए, तेरे मन में नक्की हो कि गुस्सा नहीं ही करना है, फिर भी गुस्सा हो जाता है, तो तुझे अगले भव के लिए बंधन नहीं रहा। इस स्थूलकर्म में तुझे गुस्सा आया तो उसकी तुझे इस भव में मार खानी पड़ेगी। फिर भी तुझे अगले जन्म के लिए बंधन नहीं होगा। क्योंकि सूक्ष्मकर्म में तेरा निश्चय है कि गुस्सा करना ही नहीं चाहिए और अब कोई व्यक्ति किसीके ऊपर गुस्सा नहीं होता, फिर भी मन में कहता है कि इन लोगों के ऊपर गुस्सा करें तो ही ये सीधे हों ऐसे हैं। तो इससे वह अगले भव में फिर गुस्सेवाला हो जाता है। यानी बाहर जो गुस्सा होता है, वह स्थूल कर्म है और उस समय भीतर जो भाव होता है, वह सूक्ष्मकर्म है। स्थूल कर्म से बिलकुल बंधन नहीं है, यदि इसे समझो तो ! इसलिए यह साइन्स मैंने नई तरह से रखा है। अभी तक दुनिया को यही समझाया गया है कि स्थूल कर्म से बंधन है और इसीलिए लोग घबराते रहते हैं।
आप्तवाणी-४
अब घर में स्त्री हो, शादी की हो और मोक्ष में जाना है, तो मन में होता रहता है कि 'मैंने तो शादी की है तो अब किस तरह मोक्ष में जा सकूँगा?' अरे, स्त्री बाधक नहीं है, तेरे सूक्ष्म कर्म बाधक हैं। ये तेरे स्थूल कर्म बिल्कुल बाधक नहीं हैं। वह मैंने ओपन किया है और यह साइन्स ओपन नहीं करूँ तो भीतर घबराहट - घबराहट और घबराहट रहती है। भीतर अजंपा, अजंपा, अजंपा रहता है! वे साधु कहते हैं कि हम मोक्ष में जाएँगे । अरे, आप किस तरह मोक्ष में जाओगे? क्या छोड़ना है, वह तो आप जानते नहीं हो। आपने तो स्थूल को छोड़ा है, आँखों से दिखे, कान से सुनाई दे, वह छोड़ा है। उसका फल तो इस भव में ही मिल जाएगा। यह साइन्स नये ही प्रकार का है! यह तो अक्रम विज्ञान है, जिससे इन लोगों को हर प्रकार से फेसिलिटी हो जाती है। क्या पत्नी छोड़कर भागा जाता है ? और पत्नी को छोड़कर भाग जाओ और अपना मोक्ष हो ऐसा हो सकता है क्या? किसीको दुःख देकर अपना मोक्ष हो, ऐसा संभव है क्या? इसलिए बीवी-बच्चों के प्रति सभी फर्ज निभाओ और पत्नी जो 'भोजन' दे वह चैन से खाओ, परन्तु वह सब स्थूल है, वह समझ जाना। स्थूल के पीछे आपका अभिप्राय ऐसा नहीं रहना चाहिए कि जिससे सूक्ष्म में चार्ज हो। इसलिए मैंने आपको 'पाँच वाक्य' दिए हैं। भीतर ऐसा अभिप्राय नहीं रहना चाहिए कि 'यह करेक्ट है, मैं जो करता हूँ, जो भोगता हूँ, वह करेक्ट है।' वैसा अभिप्राय नहीं रहना चाहिए। बस इतना ही आपका अभिप्राय बदला कि सबकुछ हो गया।
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बच्चे में खराब गुण हों तो माँ-बाप उन्हें डाँटते हैं और कहते फिरते हैं कि, 'मेरा बेटा तो ऐसा है, नालायक है, चोर है।' अरे, वह ऐसा करता है, उस करे हुए को रख न एक तरफ पर अभी उसके भाव बदल न ! उसके भीतर के अभिप्राय बदल न !! उसके भाव कैसे बदलने, वह माँबाप को आता नहीं है। क्योंकि सर्टिफाइड माँ-बाप नहीं हैं। सर्टिफाइड नहीं हैं और माँ-बाप बन बैठे हैं! बच्चे को यदि चोरी की बुरी आदत पड़ गई हो तो माँ-बाप उसे डाँटते रहते हैं, मारते रहते हैं, कि 'तुझमें अक्कल नहीं है, तू ऐसे करता है, वैसे करता है।' ऐसे झिंझोड़ते रहते हैं। इस तरह माँ-बाप एक्सेस (ज़रूरत से ज्यादा) बोलते हैं! कभी भी एक्सेस बोला