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(३०) संयम परिणाम
से अनंत नुकसान उत्पन्न करते हैं। जब कि ज्ञान उसे झाड़ देता है और उससे जो संयम सुख उत्पन्न होता है, उसका तो वर्णन नहीं हो सके वैसा होता है।
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व्यवहार कब से अच्छा माना जाता है? जब से संयमित हो तब से, असंयमी का व्यवहार पूर्ण नहीं माना जाता। 'ज्ञानी पुरुष' के तो वाणी, वर्तन, सबकुछ संयमित होता है, मनोहर होता है।
लोभ के सामने संयम, किस तरह?
प्रश्नकर्ता: मान का संयम, लोभ का संयम, वह जरा समझाइए ।
दादाश्री : ऐसा है, कुछ लोगों में मान का संयम कुछ अंशों तक आ गया होता है। कोई गालियाँ दे, अपमान करे, तो वह अर्धसंयम पालन कर सकता है। जब कि लोभ के विषय में बेसुध हो जाता है। वहाँ पर असंयम अधिक उत्पन्न होता है। फिर देर से जागृति आए, वह वन फोर्थ संयम होता है। वणिक की लोभ की ग्रंथि बड़ी होती है और क्षत्रिय की मान की ग्रंथि बड़ी होती है। जिसकी जो ग्रंथि बड़ी हो, उसमें संयम को नहीं सँभाल पाता। वहाँ पुरुषार्थ धर्म में और पराक्रम में आना पड़ेगा।
परिषह या उपसर्ग आएँ फिर भी भीतर असर नहीं होने दे और असर हो तो उसे 'जाने' वह संयम हैं। वेदन को 'जाने' वह संयम है। भगवान महावीर जानते ही थे, वेदन नहीं करते थे 'ड्रामेटिकली' ही वेदन करते थे।
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(३१) इच्छापूर्ति का नियम
कुदरत, कितनी नियमबद्ध
जगत् में वस्तुएँ संख्य हैं और मनुष्यों की इच्छाएँ असंख्य हैं, अनंत हैं। दुनिया के लोगों की इच्छाओं की सूची बनाएँ और जगत् की तमाम लक्ष्मी की सूची बनाएँ तो मेल खाएगा?
प्रश्नकर्ता: इच्छाएँ पूरी हों उसके लिए क्या करना चाहिए?
दादाश्री : मन का स्वभाव कैसा है कि नया ढूंढता है। घर में नया सोफा ढूंढता है, नया फ्लेट ढूंढता है। तबियत अच्छी हो तो फ्लेट की बात करता है और तबियत बिगड़ी तब कहेगा, 'अब फ्लेट नहीं चाहिए।' तबियत सुधरे ऐसी मानताएँ मानता है! मन तो बंदर की तरह छलाँगें लगाता है और वह भी बिना पूँछ के ! कुदरत क्या कहती है कि, "मैं तुझे जो देता हूँ उसे करेक्ट मान, 'व्यवस्थित' है ऐसा मान।" तेरी सभी इच्छाएँ मैं धीरे-धीरे, मेरी सुविधानुसार पूरी कर दूँगी। तेरे मरने से पहले तेरी इच्छाएँ पूरी कर दूँगी।
इच्छा मर जाए तब वस्तुएँ मिलती हैं। एक व्यक्ति पचपन वर्ष का था, तब तक विवाह का विचार करता था और लोगों से कहता रहता था कि कोई कन्या ढूंढ दो। और फिर अट्ठावन वर्ष का हुआ तो कोई कहने आया कि, 'हमारी एक बेटी है, यदि तुझे विवाह करना हो तो।' तब उसने कहा, 'नहीं, अब मेरी इच्छा मर गई है।'
माँजी सत्तर वर्ष के हो जाएँ, तब हीरे के टॉप्स लाएँ, उसका क्या
अर्थ है?