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(३०) संयम परिणाम
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आप्तवाणी-४
इसे संयम कहते हैं। जगत् रोकर मार खाता है और ज्ञानी हँसकर मार खाते हैं। भोगना तो पड़ेगा ही न?
संयम से ही आत्मशक्ति प्रकट ऐसे एकबार संयम पालन करे तो उसे दो बार संयम पालन करने की शक्ति उत्पन्न होती है। फिर दो से चार और चार से सोलह गुना शक्ति उत्पन्न होती है, मल्टीप्लिकेशन का नियम है। इसमें आत्मा अनंत शक्तिवाला है। संयम में आ गए कि शक्तियाँ प्रकट होती जाती हैं।
स्वानुभव पद अर्थात् क्या? आत्मा प्राप्त करने के बाद जितना संयम में रहा उतना स्वानुभव पद कहलाता है। जिसे एक अंश हुआ, उसे फिर सर्वांश हो जाता है।
संयमधारी को तो भगवान ने भी सराहा है। संयमधारी के तो दर्शन करने चाहिए, जिन्होंने यमराज को वश में किया है!
प्रश्नकर्ता : यमराज को वश में किया, वह किस तरह?
दादाश्री : यमराज वश में हो गए कब कहलाते हैं कि जिसे मृत्यु का भय नहीं रहे।
संयम के स्कोप का लाभ उठाओ! किसीने कहा हो कि, 'चंदूभाई ने यह सब बिगाड़ दिया।' उस घड़ी भीतर अपने परिणाम बदल जाते हैं। परन्तु 'यह गलत हो रहा है', ऐसा 'जानना' उसे अर्धसंयम कहा है और ऐसे परिणाम भीतर खड़े ही नहीं हों उसे पूरा संयम कहा है।
प्रश्नकर्ता : मुझे कोई टोके, डाँटे या गाली दे, तब मैं उस तरफ की खिड़की ही बंद कर देता हूँ, हम सुनें ही नहीं। भले ही वह बोलता
और मैं संयम रखू' वैसा होगा ही नहीं न! यह तो कुदरती कभी प्राप्त हो जाए तब हमें कान बंद करके 'हट, वह तो बोलता है, उसे तो ऐसी बुरी आदत है', यदि ऐसा करे तो क्या लाभ? दुर्गंध आती हो और नाक दबाकर रखें, उसमें आपने क्या संयम किया?
हमने तो पहले इनाम निकाला था कि जिस किसीको रुपये की तंगी हो वह हमें एक धौल मारकर पाँच सौ रुपये ले जाए। आपको मुफ्त में मारने को तैयार है? अरे, इनाम घोषित किया तो भी मुझे कोई मारने नहीं आया। लोग कहने लगे कि, 'आपको मारकर हम कहाँ जाएँगे? ऐसा है। इसलिए कुदरती स्कोप मिले, उसे तो चूकना मत।
हमारी शक्ति संयम के गुणाकार से बढ़ी है। ज्ञान होने के बाद तो हमें अनंत संयम परिणाम रहते हैं। इसलिए जो मिला वह सभी फायदेमंद, बाहर के उपसर्ग में तो आत्मा का संयम जबरदस्त रहता है।
संयम ही पुरुषार्थ सच्चा संयम आत्मा की हाज़िरी में उत्पन्न होता है। खुद के स्वरूप की प्रतीति बैठे, तब से ही सच्चे संयम में आता है। उसके बाद ही खुद के दोष दिखते हैं और उनके प्रतिक्रमण करे वह सच्चा संयम है। संयम को ही पुरुषार्थ कहा है। पुरुष होने के बाद, आत्मा जानने के बाद पुरुषार्थ हो सकता है। संयम पुरुष के लिए ही लागू होता है, वर्ना प्रकृति के लिए लागू नहीं होता। प्रकृति उदयकर्म के अधीन है, वहाँ संयम कैसा? आत्मा प्रकट हुआ उसके बाद ही कहा जाता है कि वास्तविक संयम स्वरूप में आ गया। बाकी इस लौकिक संयम में तो व्यवहार की प्रेक्टिस करने जैसा
रहे।
सिर्फ संयमी ही जागृत होते हैं। संयमी पुरुष तो एक नुकसान में से दूसरा नुकसान उत्पन्न नहीं होने देते। कोई जा रहा हो और उससे अपने ऊपर अंगारे गिर गए और अंदर कढ़ापा-अजंपा (कुढ़न, क्लेश- बेचैनी, अशांति, घबराहट) हुआ, वह एक नुकसान तो हुआ था और दूसरा भयंकर नुकसान उत्पन्न हुआ। ऐसे दिवालिया ही निकालते हैं। एक नुकसान में
दादाश्री : यह तो ऐसा कहा जाएगा कि संयम का 'स्कोप' मिला, उसका आपने लाभ नहीं उठाया। आप किसीसे कहो कि, 'आप मुझे डाँटो