________________
सांसारिक बुद्धि के अंतराय गाँठ के समान और धार्मिक बुद्धि के अंतराय पक्की गाँठ के समान होते हैं, अनंत जन्मों तक भटकाते हैं। "मैं कुछ जानता हूँ', वह भाव अध्यात्म में सबसे बड़ा अंतराय डालता है। आर्तध्यानरौद्रध्यान होता है, वहाँ कुछ भी जाना नहीं है, ऐसा फलित होता है।
सबसे बड़ा अंतराय ज्ञानांतराय है। अध्यात्म में अन्य कोई कुछ भी नहीं समझता है, खुद ही समझता है।' उससे अथवा कोई 'स्वरूपज्ञान' प्राप्त करने जाए वहाँ रुकावट डालते हैं, सच्चे 'ज्ञानी' मिलें, फिर भी मन में होता है कि ऐसे तो बहुत 'ज्ञानी' देखे हैं - ये सभी ज्ञानांतराय डालते हैं। वहाँ मन में भाव हो कि, 'ज्ञानी' आए हैं, पर मुझसे जाया नहीं जा सकता, तो वह अंतराय को तोड़ता है।
[८] तिरस्कार-तरछोड़ 'मुझे नहीं आता है। ऐसा हुआ कि कार्यकुशलता पर अंतराय पड़ता है। और 'मुझे क्यों नहीं आएगा?' ऐसा दृढ़ता से हो, वहाँ पर अंतराय टूटते
धोखा देते हैं। एक्सपर्ट कोई हो ही नहीं सकता, वह तो कुदरती देन है। ज्ञानी तो आत्मविज्ञान के एक्सपर्ट होते हैं।
मन की ज़रूरतें, चित्त की ज़रूरतें, बुद्धि की, अहंकार की, खुद सभी ज़रूरतें लेकर ही आया हुआ होने के कारण कुदरत उसे सभी कुछ सप्लाइ करती है। उसमें खुद का क्या पुरुषार्थ? कुदरत जब पूर्ति करती ही है, तब खुद को चित्त सहज रखना चाहिए, वहाँ उपयोग नहीं बिगाड़ना चाहिए। जीवन का यह सार तो निकालना ही पड़ेगा न!!
[७] अंतराय 'मैं चंदूभाई हूँ' कहा कि पड़ गया अंतराय! खुद परमात्मा ही है, उसे चंदूभाई मान लिया?! खुद ब्रह्मांड का स्वामी, अनंत शक्ति का धनी, चाहे जो प्राप्त कर सके, वैसा होने के बावजूद क्यों चीजें नहीं मिलती ! अंतराय डाले हैं इसलिए। अंतराय से शक्ति आवृत हो जाती है!
इच्छा अंतरायों को आमंत्रित करती है। हवा की इच्छा नहीं होती तो उसका अंतराय पड़ता है? ज्ञानी को निर्-इच्छक पद, निर्-अंतराय पद होता है। किसी चीज़ की उन्हें भीख नहीं होती।
अंतराय किस तरह पड़ते हैं? कोई दे रहा हो और खुद उसमें दखल करे, रुकावट डाले, उससे।
अज्ञानदशा में उल्टे विचारों का रक्षण किया जाता है. जब कि ज्ञानदशा में उसका तुरन्त ही प्रतिक्रमण होता है। शुभ कार्य में अनुमोदना स्व-पर लाभकारी होती है। अन्य का अनुमोदन किया तो हमें वैसे ही अनुमोदन करनेवाले मिल जाएँगे! सामनेवाले को बिना अक्कल का कहा, उससे खुद की अक्कल पर अंतराय डाला!
___ मोक्षमार्ग में आनेवाले अंतरायों के सामने खुद का दृढ़ निश्चय रहे, वहाँ खद की शक्तियाँ विकसित होती जाती हैं। अनिश्चय से ही अंतराय पड़ते हैं। निश्चय अंतरायों को तोड़ता है। आत्मा का निश्चय होते ही तमाम अंतरायों का अंत आ जाता है।
२१
'घंटेभर में तो मोक्ष होता होगा?' वैसा भाव होते ही मोक्ष का अंतराय पड़ा! बुद्धि से नापा जा सके, वैसा यह विश्व नहीं है।
ज्ञानी पुरुष ज्ञानांतराय-दर्शनांतराय तोड़ देते हैं, परन्तु जहाँ पर विनयधर्म खंडित होता हो वहाँ 'ज्ञानी' भी असमर्थ होते हैं। 'ज्ञानी' के लिए तो एक भी उल्टा विचार नहीं आना चाहिए। ज्ञानी के पास जाने में आनेवाले अंतरायों के लिए 'ज्ञानी' की प्रार्थना-विधि में उन अंतरायों को तोड़ देने की प्रार्थना होने से, वे अंतराय टूटते हैं! अंतराय तो भाव से टूटते हैं! अंतराय तो भाव से टूटते हैं और भाव समय आने पर होते हैं।
आत्मज्ञानी के लिए अंतराय संयोग स्वरूपी होते हैं, जो वियोगी स्वभाव के हैं, और खुद 'शुद्धात्मा' तो असंयोगी-अवियोगी है।
जिसका तिरस्कार - उससे भय। तिरस्कार में से भय जन्म लेता है। कोर्ट और पुलिस के प्रति तिरस्कार, उनके प्रति भय को जन्म देता है।
२२