SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२२) लौकिक धर्म १८१ में नहीं पड़े तब। किसी भी पक्ष में पड़े तो धर्मध्यान नष्ट हो जाएगा। पक्ष में रहना अर्थात् 'व्यू पोइन्ट' में पड़े रहना। 'सेन्टर' मैं बैठे तो मतभेद नहीं रहेगा, तब मोक्ष होगा। किसी भी 'डिग्री' पर बैठे वहाँ हमारा तुम्हारा रहता है, उससे मोक्ष नहीं होगा । धर्म में भी व्यापारी वृत्ति..... संसार में जो धर्म चल रहे हैं वे व्यापार कहलाते हैं, उनमें सूक्ष्म भी इच्छा छुपी होती है। सूक्ष्म में भी इच्छा है, वहाँ वस्तु प्राप्त नहीं होती। वही डूबा हुआ हो तो हमें किस तरह तारेगा? ज्ञान के बिना इच्छा जाती नहीं। इच्छा स्वयं ही अग्नि है। इच्छा हुई अर्थात् वह प्रज्वलित होती है और फिर बुझानी पड़ती है। लोग आज उसे 'पेट्रोल' से बुझाते हैं! आप यदि घर से अच्छी तरह पेट भरकर खा-पीकर निकले हों तो किसीकी दुकान की तरफ देखोगे? प्रश्नकर्ता: नहीं। दादाश्री : वैसे ही ‘ज्ञानी पुरुष' भीतर तृप्ति करवा देते हैं, इसलिए फिर बाहर इच्छा नहीं होती। प्रश्नकर्ता: सभी लोग लूटबाजी में पड़े हैं, तो उनका क्या होगा? दादाश्री : जो लुट रहे हैं, वे सब कमाई कर रहे हैं! 'रिलेटिव' में लुटे, तब 'रियल' में कमाई करेगा, ऐसा माना जाता है। प्रश्नकर्ता: महामोहनीय कर्म यानी क्या? दादाश्री : धर्म के नाम पर दुरुपयोग करना, वह महामोहनीय कर्म कहलाता है, वह भयंकर अवतार बाँध देता है। धर्म में व्यापार करे, पैसे संबंधी का व्यापार बहुत खराब नहीं कहलाता, परन्तु दुराचारी हो वह भयंकर कर्म बाँधता है। जब संसार में दुरुपयोग करे वह मोहनीय कर्म और धर्म में दुरुपयोग करे वह महामोहनीय कर्म । ...तो रिर्टन टिकिट तिर्यंच की! लौकिक धर्म में 'गुरुजी हमारा यह कीजिए' इतना करो तो गुरुजी आप्तवाणी-४ खुश हो जाते हैं। पर वह चलता है। क्योंकि अहंकार के बिना तो जीया ही कैसे जाए? परन्तु लक्ष्मी या विषय धर्म में नहीं घुसने चाहिए। मैं लक्ष्मी लूँ. लोग भी भिखारी और मैं भी भिखारी, तो फिर 'ज्ञानी पुरुष' में और लोगों में फर्क क्या रहा? इसलिए 'ज्ञानी पुरुष' तो किसी भी चीज़ के भिखारी नहीं होते। उन्हें किसी चीज़ की इच्छा नहीं होती। यहाँ तो मान की भीख, लक्ष्मी की भीख, विषयों की भीख, कीर्ति की भीख, शिष्यों की भीख - किसी भी प्रकार की भीख नहीं होती। जहाँ किसी भी प्रकार की भीख है वहाँ भगवान और भक्त अलग हैं। और किसी भी प्रकार की भीख नहीं है, वहाँ भगवान और भक्त एक हो गए, अभेद हो गए! सभी लोग धर्म में झगड़े नहीं करते। वह तो जिसे रिटर्न टिकिट मिली हुई हो, उतने ही करते हैं। संसार में झगड़े करे उसमें हर्ज नहीं है, पर धर्म में झगड़े करना तो रिटर्न टिकिटवालों का काम है। प्रश्नकर्ता: 'रिटर्न टिकिट' मतलब क्या? दादाश्री : ये जानवर में से यहाँ पर आया और वापिस वहाँ से रिटर्न टिकिट लेकर आया है, वह वापिस वहीं जानेवाला है। धर्म में झगड़े नहीं होने चाहिए कि हमारा मुस्लिम धर्म, हमारा हिन्दूधर्म । धर्म पर हाथ नहीं डालना चाहिए किसीको। जो रिटर्न टिकिट लेकर आया हो, वही धर्म में हाथ डालता है। किसी धर्म की तरफ नफरत रखनी, वे सभी धर्म के झगड़े कहलाते हैं। सच्ची, सीधी लाइनवाले ऐसा नहीं करते। वैसे मानवतावाले लोग बहुत कम होते हैं। १८२ 'आत्मा' की पहचान 'ज्ञानी' ही करवाएँ वीतरागों की बात इतनी झूठी निकलती है क्या? क्या सास-बहू जैसी लगती है? नहाने की आदत पड़ी है इसलिए कीचड़ चुपड़ता है। अब यह बुरी आदत जाती नहीं, तब तक कीचड़ चुपड़े बिना रहेगा नहीं। इससे तो भगवान को पहचानो, आत्मा को जानो। आत्मा जाना उसने सबकुछ जान लिया और आत्मा नहीं जाना तो जंगल में जाकर चिल्लाकर रो, ताकि अच्छी तरह जी भरकर रोने को मिले ! यहाँ तो जी भरकर रोने को भी नहीं मिलता।
SR No.009576
Book TitleAptavani 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages191
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size50 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy