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आप्तवाणी-४
जी ही नहीं सकता, फिर भी अधर्म घुस जाता है। यह नास्तिक है वह भगवान में नहीं मानता, धर्म में नहीं मानता परन्तु अंत में नीति में मानता है
और नीति तो सबसे बड़ा धर्म है। नैतिकता के बिना धर्म ही नहीं है। नैतिकता तो धर्म का आधारस्तंभ है। जो भगवान को नहीं मानता, वह भी धर्म में ही है। धर्म के बिना तो कोई है ही नहीं। आत्मा है तो धर्म होना ही चाहिए। हर एक मनुष्य धर्म में ही है! हाँ, परन्तु साथ में अधर्म भी होता है!!
धर्म, पक्ष में या निष्पक्षता में?
(२२)
लौकिक धर्म मोक्ष के लिए कौन-सा धर्म? प्रश्नकर्ता : साधक किसी भी धर्म का ठीक से पालन करे तो वह मोक्ष तक पहुँच जाएगा न?
दादाश्री : साधक तो पक्षपाती है और भगवान कौन-से पक्ष के होंगे? निष्पक्षपाती होंगे न वे?
प्रश्नकर्ता : हाँ।
दादाश्री : पक्ष में पड़े हुए का मोक्ष कभी भी नहीं होगा। हाँ, भौतिक सुख मिलेंगे। मोक्ष स्टेन्डर्डवाले को नहीं मिलता। आउट ऑफ स्टेन्डर्ड हो जाएँ तभी मोक्ष मिलेगा। यहाँ पर यह स्टेन्डर्ड से बाहर है। यहाँ सभी आते हैं, मुस्लिम, जैन, वैष्णव सभी आते हैं!
ये अलग-अलग धर्म हैं - जैनधर्म, वैष्णवधर्म, मुस्लिमधर्म - वे सभी 'रिलेटिव' धर्म हैं। इसमें से एक भी 'रियल' धर्म नहीं है। 'रिलेटिव' धर्म अर्थात् आपको डेवलप कर देता है। पर उसमें से फुल डेवलप नहीं हुआ जा सकता। और मोक्ष तो पूर्ण विकसित का ही हो सकता है। देह होने के बावजूद भी देह और आत्मा अलग रहें, उसके बाद ही मोक्ष होता है।
मोक्ष के लिए तो वीतराग वाणी के अलावा और नहीं कोई उपाय ! और दूसरी सभी रागवाली वाणी होती है। वीतराग वाणी अर्थात् स्यादवाद। किसी जीव का प्रमाण नहीं दुभे (आहत होना)। फिर भले ही कसाई आए, पर वह भी उसके धर्म में ही है। वीतराग की दृष्टि से कोई एक घड़ी के लिए भी धर्म से बाहर नहीं जाता है। धर्म के बिना तो कोई एक क्षण भी
सब धर्मों के संप्रदाय-पंथ मताग्रह और कदाग्रह में ही रचे-बसे हैं। उनमें हर एक ऐसा मानता है कि उनके धर्म से ही मोक्ष होगा, ऐसा मानते हैं, पर वे सब आग्रही हैं, मताग्रही हैं। मताग्रह से कभी भी मोक्ष नहीं होता। निराग्रही का ही मोक्ष है। पक्ष में पड़ा हुआ मनुष्य उस पक्ष के शास्त्र पढ़े तो कुछ भी नहीं होगा। हर एक पक्ष का 'एसेन्स' (सार) निकाले और हर एक पक्ष के, हर एक धर्म के शास्त्र पढ़े, तब उसने धर्म को प्राप्त किया ऐसा कहा जाएगा। 'धर्म क्या है?' वह धारण किए बिना समझ में नहीं आ सकता। वर्ना, जितने बाड़े में बंद हुए वे सभी भेड़ें और जितने लोग बाड़े से बाहर निकल गए, वे सभी शेर। भगवान कहते हैं कि हमारा वीतराग मत है और आप पक्षवालों का मत वीतराग रहित है। चौबीसों तीर्थंकरों का वीतराग मत था। पक्ष में पड़े हुए हों, वहाँ वीतराग मत नहीं होता। भगवान के जाने के बाद पक्षपात हो गया, भाग हो गए। मोक्ष का मार्ग तो सच्चा नहीं रहा, पर व्यवहारिक धर्म भी सच्चा नहीं रहा। भगवान की सच्ची आज्ञा पालना और उसमें रहना, वही धर्म कहलाता है। उनकी आज्ञा कम पाली जाए तो कम और दो पाली जा सकें तो दो, परन्तु घोटाला नहीं होनी चाहिए। यह तो सामायिक करता है और घड़ी देखता है! भगवान ने कहा है कि हो सके तो सामायिक करना, बहुत नहीं हो सके तो कम करना, परन्तु सतर्कता से करना, ठीक से करना। भगवान की आज्ञा का लाख बार पालन करें तो भी पुरानी नहीं होती। परन्तु भगवान की आज्ञा समझ में नहीं आती, इसलिए सिर्फ घोटाला करते हैं। उसमें उनका दोष नहीं है। वीतराग भगवान का धर्मध्यान कब होगा कि जब किसी भी पक्ष