________________
(२१) तपश्चर्या का हेतु
१७७
१७८
आप्तवाणी-४
जाता है। क्योंकि जब कभी भी खाए बिना तो चलेगा ही नहीं न? और एक बार संपूर्ण जागृत हो जाने के बाद खाए-पीए तो कोई हर्ज नहीं। एक बार आँख खुली फिर भले ही खाए-पीए, उसे कुछ भी बाधक नहीं होता। वह तो जिसे जो माफिक आए वह भोजन तो लेना ही पड़ता है। तुझे यदि माफिक आए तो तप की खुराक लेना और माफिक नहीं आए तो वह मत लेना। तप भी खुराक है। फिर भी तुझे अजीर्ण हो जाए तो उपवास करना। भगवान का और भोजन का कुछ लेना-देना नहीं है। आत्मा को उपवास की क्या जरूरत है? ये तो उपवास करते हैं और कहते हैं कि आत्मा के लिए कर रहा हूँ। आत्मा कहता है कि उसमें मुझ पर क्या उपकार किया? इसलिए आपको जब ऐसा लगे कि यह तप करना है, तब करना।
___उपवास से मुक्ति ? इस शरीर को रोज खिलाते रहते हैं, उसे एक दिन निराहारी रखें तो शरीर अच्छा रहेगा, मन अच्छा रहेगा, सब अच्छा रहेगा - हानिकारक नहीं। जिसे मोक्ष में जाना हो उसे इन सबकी ऐसी कोई जरूरत नहीं है। जरूरत है, पर उपवास का अभिनिवेष नहीं होना चाहिए। मोक्ष में जाना हो तो इतना समझना चाहिए कि 'मैं बंधा हुआ हूँ या नहीं?' फिर यह जानना चाहिए कि, 'यह बंधन किस तरह टूटेगा? बंधन किस आधार पर हुआ है? यह बंधन किससे टूटेगा?' उसके उपाय जान लेने चाहिए।
बंधन तोड़ने के उपाय तो जो मुक्त हो चुके हों उनसे हमें पूछना चाहिए कि, 'साहब, आप मुक्त हो चुके हैं तो मैं आपके साथ बैलूं, नहीं तो मुझे टाइम बिगाड़कर क्या करना है? वर्ना आप बंधे हुए हैं और मैं भी बंधा हुआ हूँ तब हमारा काम कैसे होगा?' तुझे कोई कहनेवाले नहीं मिले कि मैं मुक्त हो चुका हूँ?
प्रश्नकर्ता : यह आपका सत्संग मिला है न?
दादाश्री : बस, तो, 'हम' मुक्त हो चुके हैं, वैसा हम कहते हैं! और तुझे मुक्ति चाहिए तो आना। इसकी फ़ीस वगैरह नहीं होती और भगवान के मुक्तिमार्ग में फ़ीस जैसा कुछ होता ही नहीं। क्योंकि 'ज्ञानी पुरुष'
किसे कहा जाता है कि जिसे लक्ष्मी की भीख नहीं हो, कीर्ति की भीख नहीं हो, शिष्यों की, विषयों की भीख नहीं हो, किसी चीज़ की भीख नहीं हो, तब 'ज्ञानी' का पद प्राप्त होता है।
'करो' पर फल 'श्रद्धा' से ही प्रश्नकर्ता : परन्तु ज्योतिषी ऐसा कहते हैं कि राहु और केतु बाधक हैं, इसलिए बुधवार का व्रत करो।
दादाश्री : तो आप बुधवार का व्रत करो। उसमें क्या नुकसान है? यदि ज्योतिषी के वहाँ गए तो बुधवार का व्रत करना, नहीं तो जाना मत। ज्योतिषी के घर पर पछने गए तो वहम घुस गया न? इसलिए अब बुधवार का व्रत कर लेना। वैसे भी उपवास से शरीर को फायदा होता है।
प्रश्नकर्ता : हमारे घर पर वंश-परंपरागत सोमवार का उपवास चलता है।
दादाश्री : वह करना। आपको विश्वास है या नहीं? प्रश्नकर्ता : विश्वास तो होगा ही न?
दादाश्री : जो करो वह विश्वास से करना चाहिए और विश्वास डिग जाए तो नहीं करना चाहिए। गाड़ी में बैठते ही ऐसा लगे कि 'कल गाडी पटरी पर से उतर गई थी, वह आज भी उतर गई तो क्या होगा?' तब उस घड़ी गाड़ी में से उतर जाना। विश्वास नहीं आए तब उसके किस काम का? विश्वास हो तब तक करो, विश्वास नहीं हो तब छोड़ दो।
विश्वास तो कैसा होना चाहिए कि मारे, अपमान करे आपका, तो भी आपका विश्वास नहीं उठे! ऐसा विश्वास बैठ जाना चाहिए।