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(१९) यथार्थ भक्तिमार्ग
विचार करते-करते जाता है! और मंदिर जाने को निकले तब कोई धर्म के विचार करता ही नहीं! वहाँ तो दुकान के विचार करता है। कुछ को तो रोज़ मंदिर में जाने की आदत पड़ चुकी होती है। अरे, आदत पड़ चुकी है इसलिए तू दर्शन करता है भगवान के? भगवान के दर्शन तो रोज़ नये-नये ही लगने चाहिए और दर्शन करने जाते समय भीतर उल्लास, फ्रेश का फ्रेश ही होना चाहिए। यह तो रोज़ डिबिया लेकर दर्शन करने जाने की आदत पड़ चुकी है।
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धर्म कहाँ से कर सकेंगे? पूरे दिन कर्म करें या धर्म करें? यह तो घंटे-दो घंटे ही काम करें और गाड़ी तेज़ी से चले वैसा पुण्य हो, वही धर्म प्राप्त कर सकता है और धर्म कर सकता है।
भक्ति से ईश्वर की प्राप्ति
प्रश्नकर्ता: कोई भी व्यक्ति भक्ति करे तो ईश्वर मिलते हैं ? दादाश्री : इन पाँच इन्द्रियों से ईश्वर के लिए कुछ भी नहीं होता, जो होता है वह परोक्ष भक्ति है।
प्रश्नकर्ता: वह काल्पनिक भक्ति है न?
दादाश्री : वह काल्पनिक ही कहलाती है और निर्विकल्प भक्ति हो तब काम होता है। विकल्प भक्ति मन से होती है।
प्रश्नकर्ता: मुझे भक्ति सबसे अधिक पसंद है।
दादाश्री : भक्ति, वह आपकी ग्रंथि है। भक्ति का विचार आए, दर्शन का विचार आए, वह ग्रंथि है। कभी न कभी निग्रंथ होना ही है। आपने सुना कि परसों डाकोर (गुजरात का एक गाँव) जाना है तो आपको फिर वहाँ जाने की गाँठ फूटती है। हालाँकि वह गलत नहीं है। खराब विचारों से तो यह अच्छा कहलाता है। भक्ति अर्थात् क्या? कि भक्ति का रंग रखे तो संसार के दूसरे रोग नहीं आएँ ।
प्रश्नकर्ता: भक्तिमार्ग पढूँ तो ऐसा लगता है कि वह करने जैसा है। योग का, कर्म का, ज्ञानमार्ग का पढूँ तो ऐसा लगता है कि वह करने
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आप्तवाणी-४
जैसा है, यह क्या है?
दादाश्री : पूरा जगत् स्वच्छंद नाम के रोग में है, वह खुद के नाप से सबकुछ नापने जाता है।
प्रश्नकर्ता: आप ज्ञान देंगे, पर हमारी कुछ बुनियाद तो चाहिए न ? दादाश्री : ये सभी बिना बुनियाद के ही थे। बुनियादवाला कोई हुआ ही नहीं है। जिस जाने हुए से ठोकर लगे, वह अंधेरा नहीं कहलाएगा? उजाले में ठोकर नहीं लगती। विषम परिस्थिति में समता रहे वही ज्ञान कहलाता है, समता में तो सभी को समता रहती है। 'मैंने यह किया, वह किया, मैंने भक्ति की ।' वह सब इगोइज़म है। ज्ञान आउट ऑफ इगोइज़म है।
रणछोड़जी गलत नहीं हैं, तेरी भक्ति गलत है। फिर भी वह परोक्ष भक्ति है, सेकन्डरी भक्ति है। परोक्ष भजना का फल अपराभक्ति और अपरोक्ष भजना का फल पराभक्ति है। पराभक्ति से मोक्ष है।
ये भक्त मंझीरों की ताल में ही मस्त रहते हैं। भगवान के ताल में मस्त हुआ वैसा कोई ही होता है। सिर्फ भगवान के नाम पर करते हैं, उससे कितना कुछ होता है!
भक्ति : परोक्ष और प्रत्यक्ष
प्रश्नकर्ता: भक्तिमार्ग में भौतिक समस्याएँ आड़े आती हैं न?
दादाश्री : भक्तिमार्ग दो प्रकार के हैं। एक परोक्ष भक्ति, उससे संसारफल मिलता है और धीरे-धीरे ऊर्ध्वगति होती रहती है। और दूसरी प्रत्यक्ष भक्ति, जहाँ भगवान प्रकट हुए हैं उनकी प्रत्यक्ष भक्ति । वहाँ हल आ जाता है। परोक्ष भक्ति में तो बहुत बाधाएँ आती हैं। खुद के ही विचार खुद के आड़े आते हैं। भक्ति का मार्ग अच्छा है पर भक्ति तो ऐसा है न कि कभी संयोग बदलें तो वह चली जाती है, पर ज्ञान तो निरंतर साथ में ही रहता है।
प्रश्नकर्ता: भक्तिमार्ग में जोखिमदारी किस पर है? भगवान पर?