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(१८) ज्ञातापद की पहचान
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हैं। यह देह है, वह तो बुलबुला है, यह कब फूट जाए कहा नहीं जा सकता। यह है तब तक आप अपना काम निकाल लो। वीतरागों में जैसा प्रकाश हुआ था, वैसा प्रकाश है। इन 'ज्ञानी पुरुष' के पास संपूर्ण समाधान हो जाए, वैसा है, इसलिए आपका काम निकाल लो। हम तो आपको इतना कह देते हैं। हम वीतराग हैं, इसलिए आपको फिर पत्र नहीं लिखेंगे कि आइए।
बंधन में से मुक्ति दिलवाए-वह धर्म। सच्ची आज़ादी दे, वह धर्म कहलाता है।
(१९) यथार्थ भक्तिमार्ग
श्रद्धा ही फल देती है ऐसा है, देवता आपकी बिलीफ़ के अधीन है। मूर्ति में दर्शन करो, पर बिलीफ़ नहीं हो तो क्या फायदा? बिलीफ़ अनअवकाश रूप से हो तो वह रात-दिन याद आया करती है। इसलिए मूर्ति में श्रद्धा रखो। मूर्ति भगवान नहीं है, आपकी श्रद्धा ही भगवान है। फिर भी भगवान के दर्शन करो तो भाव से करना। मेहनत करके दर्शन करने जाओ, पर दर्शन ठीक से भाव से नहीं करो तो मेहनत बेकार जाएगी। भगवान के मंदिर में या जिनालय में जाकर सच्चे दर्शन करने की इच्छा हो तो मैं आपको दर्शन करने का सच्चा तरीका सिखलाऊँ। बोलो, है किसीको इच्छा?
प्रश्नकर्ता : हाँ, है। सिखलाइए दादा। कल से ही उस अनुसार दर्शन करने जाऊँगा।
दादाश्री : भगवान के मंदिर में जाकर कहना कि, "हे वीतराग भगवान! आप मेरे भीतर ही बिराजे हैं, पर मुझे उसकी पहचान नहीं हुई, इसलिए आपके दर्शन करता हूँ। मुझे यह 'ज्ञानी पुरुष' दादा भगवान ने सिखलाया है, इसलिए उस अनुसार आपके दर्शन करता हैं। तो मझे मेरे 'खुद की' पहचान हो, ऐसी आप कृपा कीजिए।" जहाँ जाओ वहाँ इस
अनुसार दर्शन करना। ये तो अलग-अलग नाम दिए हैं। सभी भगवान रिलेटिवली अलग-अलग हैं, परन्तु रियली एक ही है।
दुकान टावर के पास हो तो दुकान के विचार यहाँ करता है! अरे, जिस स्थल पर हो उस स्थल के विचार कर। अरे, रास्ते में भी दुकान के