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आप्तवाणी-१
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आप्तवाणी-१
से याद नहीं आए मतलब उसका निपटारा हो गया और फिर से याद आया, उसका मतलब तन्मय हो गया, इसलिए वह विषय है। विषय के कितने प्रकार? अनंत प्रकार। गुलाब का फूल पसंद हो, तब बगीचे में देखा कि दौड़भाग करता है, वह विषय। जिसे जो याद आए वह विषय। हीरे याद आते रहें, तो वह विषय और लाने के बाद याद आने बंद हो जाएँ, तो समभाव से निपटारा हो जाए। पर यदि फिर से कभी भी याद आए, तो निपटारा नहीं हुआ, इसलिए विषय ही कहलाएगा।
इच्छा होना स्वभाविक है, पर इच्छा करते रहना अवरोधक है, नुकसानदायक है।
स्त्रियाँ साड़ी देखती हैं और उसे बार-बार याद करती रहती हैं, वह उनका विषय कहलाता है। जहाँ विषय संबंध, वहाँ तकरार होती है।
आत्मा खुद निर्विषयी, तो वह विषयों को कैसे भोगेगा? यदि वह विषयों को भोगे, तो कभी भी मोक्ष में नहीं जा सकेगा। क्योंकि तब वह उसका अन्वय (हमेशा साथ रहनेवाला) गुण हो गया कहलाएगा। कम्पाउन्ड स्वरूप हो गया कहलाएगा। वह तो सिद्धांत के विरुद्ध कहलाएगा, विरोधाभास कहलाएगा। आत्मा कभी भी कोई विषय भोग नहीं सकता। मात्र भोगने की भ्रांति से अहंकार करता है कि मैंने भोगा, बस, इसी से ही अटका हुआ है। यदि यह भ्रांति टूटे, तो खुद अनंत विषयों में भी निर्विषयी पद में रह सकता है।
विषय किसे कहते हैं? जिस-जिस बारे में मन प्रफुल्लित होता है वह विषय कहलाता है। मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार जिस-जिस में तन्मयाकार होते हैं, वे विषय हैं। जहाँ एकाकार होते हैं, वे विषय हैं। विषयों के विचार आना स्वाभाविक है। ऐसा होना परमाणु का गलन है। पहले किए गए पूरण का ही गलन है। पर उसमें तू तन्मयाकार हुआ, उसमें तुझे अच्छा लगा, वह विषय है, जो नुकसानदेह है। विषय किसे कहते हैं? बिगिनिंग में (शुरू में) भी अच्छा लगे और एन्ड में भी अच्छा लगे, उसका नाम विषय। विषय कोई वस्तु नहीं है, पर वह तो परमाणु का फोर्स है। जिन-जिन परमाणुओं को तूने अत्यंत भाव से खींचे हैं, उनका गलन होते समय तू फिर से उतना ही तन्मयाकार होता है, वही विषय है। फिर चाहे कोई भी सब्जेक्ट हो, कोई इतिहास का विषय लेकर, उसका विषयी बनता है, कोई भूगोल का विषयी होता है, उसमें ही लीन रहता है। वे सभी विषय हैं। वैसे ही जिसने तप का विषय लिया. त्याग का विषय लिया और उसमें ही तन्मयाकार रहे. वह भी विषय है। अरे! विषयों को लेकर विषयी बनकर मोक्ष कैसे होगा? निर्विषयी बन, तब मोक्ष होगा।
जो बार-बार याद आता रहे, वह विषय है। पकौड़े या दहीबड़े खाने में हर्ज नहीं है, पर यदि आपने उसे बार-बार याद किया कि किसी दिन ऐसे फिर बनाना, ऐसा कहा तो वह विषय है। सिनेमा देखा और उसमें से कुछ भी याद नहीं आया, तो वह विषय नहीं कहलाता। फिर
मोक्ष में जाने का हो तब सामने से ढेरों विषय की आकर पड़ते हैं। यह 'दादा भगवान' का मोक्षमार्ग अनंत विषयों में निर्विषयी पद सहित का मोक्षमार्ग है।
विषयों की आराधना करने जैसा नहीं है, और उनसे डरने जैसा भी नहीं है, उनसे चिढ़ने जैसा भी नहीं है। हाँ, साँप के सामने तू कैसे सावधान होकर चलता है, वैसे विषयों से सावधान रहना, निडर मत होना।
जब तक आत्मज्ञान प्रकट नहीं होता, तब तक विषय किसी को भी छोड़ते नहीं हैं, क्योंकि तब तक कर्त्ताभाव, अहंकार जाता ही नहीं।
वीतरागता जिसका सब्जेक्ट होता है, वह वीतराग को समझ सकता है, पर कषाय जिसका सब्जेक्ट है, वह वीतराग को कैसे समझ सकता है? ज्ञान नहीं हो और यदि एक जन्म के लिए विषय का व्हीलकॉक बंद कर दे, फिर भी दूसरे जन्म में खुल जाता है। बिना ज्ञान के विषय छूटता ही नहीं है।
विषय की आराधना का फल विषय ही मिलता है। ग्रहण की आराधना का फल त्याग मिलता है और त्याग की आराधना का फल ग्रहण