________________
आप्तवाणी-१
१६९
१७०
आप्तवाणी-१
एडजस्ट होना ही धर्म है। इस दुनिया में तो प्लस-माइनस करके एडजस्टमेन्ट लेना होता है। माइनस हो वहाँ प्लस, और प्लस हो वहाँ माइनस कर लेना। यदि हमारे सयानेपन को भी कोई पागलपन कहे, तो हम कहेंगे, 'हाँ ठीक है।' इस प्रकार तुरंत ही माइनस कर देते हैं।
अक्लमंद कौन कहलाता है? किसी को जो दु:ख नहीं पहुँचाए वह, और यदि कोई उसे दु:ख पहुँचाए, उसे जमा कर ले। सभी को सारा दिन ऑब्लाइज करता रहे। सुबह उठते ही उसका लक्ष्य यही होता है कि मैं कैसे लोगों को हेल्पफुल हो सकूँ, ऐसा जिसे लगातार रहा करे, वही मानव कहलाता है। उसे फिर आगे चलकर मोक्ष की राह भी मिल जाती है।
टकराव 'किसी से टकराव में मत आना और टकराव टालना'। हमारे इस वाक्य का आराधन करें, तो ठेठ मोक्ष में पहुंचेंगे। आपकी भक्ति और हमारा वचनबल सारा काम कर देगा। आपकी तैयारी चाहिए।
हमारे एक ही वाक्य का यदि आराधन करेगा. तो ठेठ मोक्ष पाएगा। अरे, हमारा एक शब्द जैसा है वैसा, निगल जाए, तो भी मोक्ष हाथ में आ जाए ऐसा है, मगर उसे जैसा है वैसा ही निगल लेना। उसे चबाने या मसलने मत लग जाना। तेरी बुद्धि काम नहीं लगेगी. और वह उलटे घोटाला कर डालेगी।
हमारे एक शब्द का, एक दिन पालन करे, तो गज़ब की शक्ति उत्पन्न होगी! प्रभाव उत्पन्न होता ही जाएगा। अंदर इतनी सारी शक्तियाँ हैं कि चाहे जैसा टकराव आ पड़े, तो भी उसे टाला जा सकता है। जो जान-बूझकर खड्डे में पड़ना चाहता है, उसके साथ हम उलझें, तो वह हमें भी खाई में गिराएगा। हमें तो मोक्ष में जाना है या ऐसों के साथ झगड़ने यहीं बैठे रहना है? वे तो कभी मोक्ष में नहीं जाएंगे, पर तुझे भी अपने साथ बिठाकर रखेंगे। अरे! ऐसा कैसे पुसाएगा? यदि तुझे मोक्ष में ही जाना है, तो ऐसों के साथ बहुत अक्लमंदी दिखाने की जरूरत नहीं है कि भैया आपको लग गया क्या? हर ओर से, चारों ओर से संभालना,
वर्ना आप इस जंजाल से लाख छूटना चाहें, मगर संसार छूटने नहीं देगा। टकराव तो निरंतर आता ही रहेगा। उसमें से हमें ज़रा-सा भी घर्षण उत्पन्न किए बगैर बाहर निकल जाना है। अरे, हम तो यहाँ तक कहते हैं कि यदि तेरी धोती झाड़ी में फँस जाए और तेरी मोक्ष की गाड़ी चलने को हो, तो भाई, धोती छुड़वाने के लिए बैठा मत रहना, धोती-वोती छोड़कर दौड़ जाना। एक क्षण के लिए भी, किसी भी अवस्था से बंधकर रहने जैसा नहीं है। फिर और सभी की तो बात ही क्या करनी? जहाँ तू बंधा, उतना तू स्वरूप को भूला।
तू यदि भूले से भी किसी के टकराव में आ गया, तो उसका निपटारा कर देना। सहज रूप से उस टकराव में से घर्षण की चिंगारी उड़ाए बगैर निकल जाना।
इकॉनोमी इकॉनोमी (मितव्ययता) किसे कहते हैं? टाइट (हाथ तंग होना) हो तब टाइट और मंदी हो तब मंद। कभी भी उधार लेकर कार्य मत करना। उधार लेकर व्यापार कर सकते हैं पर मौज-मज़े नहीं कर सकते। कर्ज लेकर कब खाना चाहिए? जब मरने की नौबत आए, तब। मगर उधार लेकर घी नहीं पी सकते।
प्रश्नकर्ता : लोभी और कंजूस में क्या अंतर है?
दादाश्री : कंजूस केवल लक्ष्मी का ही होता है। लोभी तो हर तरफ से लोभ में होता है। मान का भी लोभ करता है और लक्ष्मी का भी लोभ करता है। यह लोभी को तो सारी दिशाओं का लोभ होता है, इसलिए सबकुछ खींचकर ले जाता है। चींटियाँ तो यदि किसी कीट-पतंगे का पँख हो, तो भी मिलकर खींच ले जाती हैं। लोभी का ध्येय क्या? जमा करना। पंद्रह साल चले, उतना चींटी जमा करती हैं। वह जमा करने में ही तन्मय रहती है। उसमें कोई बीच में आए, तो उसे काटकर खुद मर जाती है। चींटी सारी जिंदगी बिल में जमा करती है और चूहेभाई, मुफ्त का खानेवाला, एक ही मिनट में सब खा जाता है।