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आप्तवाणी-१
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आप्तवाणी-१
आते हैं, वे स्वप्न में आते हैं। अरे! दिन में तो तरह-तरह के असंख्य विचार आते हैं, तो क्या वे सभी स्वप्न में आते हैं? और क्या ऐसा नहीं होता कि कभी विचार तक आया न हो वह स्वप्न में आया हो?
स्वप्न में कारण देह और सूक्ष्म देह - दो ही देह कार्य करती हैं। स्थूल देह का उसमें कार्य नहीं होता है।
एक व्यक्ति को स्वप्न आया कि वह बीमार पड़ गया, डॉक्टर आए हैं, उन्होंने कहा कि नाड़ी नहीं चल रही है, मर गया है। मतलब खुद मर गया वैसा देखता है। शव को जलता हआ भी देखता है और घबराकर जाग जाता है (शव को जला दिया और मैं बच गया यह समझकर)।
स्वप्न में तो कुँवारे का विवाह होता है, अपने बच्चों को भी देखता है और फिर उसकी भी शादी करवाता है।
प्रश्नकर्ता : स्वप्न आने का कारण क्या है?
दादाश्री : संसार, जो दिखाई देता है, वह जागते कर्मों का फल है। सपने दिखाई देते हैं, वे भी पुण्य-पाप के उदय के अनुसार होते हैं, मगर सपने में उनका असर हलका होता है।
है, उसे उतना कम दिखाई देता है। आवरण जितना पतला होता है, उतना अधिक स्पष्ट दिखता है। कई कहते हैं कि हमें स्वप्न आते ही नहीं हैं। उन्हें भी स्वप्न आते हैं, मगर आवरण गाढ़ होने से याद नहीं रहते हैं।
एक आदमी मुझसे कहता है कि दादाजी. सपने में, मैं दो घंटे रोया। आप आए, और दर्शन करने पर सब शांत हो गया! हलका फूल जैसा हो गया! मैंने कहा, 'क्या कपड़े भीग गए थे?' आमने-सामने मिलने के बजाय ऐसे सपने में दादाजी आएँ, और उनसे माँगे, तो अपार मिलता है। सपने में आकर भी यह दादा सबकुछ कर सकें ऐसे हैं, पर माँगना आना चाहिए। हमारे कुछ महात्माओं को तो दादाजी रोज सपने में आते हैं। शास्त्र क्या कहते है?
'जेनुं स्वप्ने पण दर्शन थाय रे,
तेनुं मन न ज बीजे भामे रे।' जिनके सपने में भी दर्शन हो जाएँ रे,
उसका मन कहीं और नहीं जाए रे। यदि ज्ञानी पुरुष के स्वप्न में भी एकबार दर्शन हो जाएँ, तो तेरे मन की दूसरी भ्रमणाएँ छूट जाएंगी।
ज्ञानी क्या कहते हैं कि क्या दो देह का स्वप्न तुम्हें सच लगता है? नहीं। वैसे ही तीन देह का स्वप्न भी ज्ञानियों को सच नहीं लगता। वह तो भ्रांतिजन्य ज्ञान से लोग इस तीन देह के स्वप्न (संसार) को सच मान बैठे हैं।
प्रश्नकर्ता: क्या स्वप्न ग्रंथि है?
दादाश्री : स्वप्न जो हैं, वे सब ग्रंथियाँ ही हैं। स्वप्न दो देह का कर्म है। तीन देह से बंधा हुआ कर्म नहीं है वह। इसलिए दो देह से ही उसका वेदन किया जाता है।
प्रश्नकर्ता : स्वप्न में कर्म बंधते हैं क्या?
दादाश्री : नहीं, स्वप्न केवल कम्प्लीट इफेक्ट है। उसमें अहंकार नहीं होता, इसलिए कर्म नहीं बंधते हैं।
स्वप्न में कारण-देह और सूक्ष्म-देह का कार्य होता है। उसे देखनेवाला प्रतिष्ठित आत्मा होता है, और प्रतिष्ठित आत्मा को दरअसल देखनेवाला और जाननेवाला खुद 'शुद्धात्मा'। जिसे जितना आवरण होता
इन्द्रिय-प्रत्यक्ष यानी इन्द्रियों से देखा-जाना जा सके, वह। जो सपने नींद में दिखाई देते हैं, वे दो देह के हैं। जब कि ज्ञानी पुरुष को तो जागते हुए भी संसार तीन देह का स्वप्न ही लगता है।
स्वप्न में भिखारी राजा हो जाए, तो उसे कितनी मस्ती रहेगी? पर जागते ही, जैसे था वैसा का वैसा। उसी प्रकार, यह संसार भी एक सपना ही है। संसार स्वप्नवत् है। यहाँ से गए कि फिर जो था, वही