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________________ आप्तवाणी-१ १६१ १६२ आप्तवाणी-१ परेशान हैं, उनका कुछ करो न? नींद तो एक कुदरती भेंट है, नैचुरल गिफ्ट, उसे भी तुमने खो दिया? तब इन दूसरे वैभवों का करना क्या है? नैचुरल नींद नहीं आती उसका कारण यह है कि जितना उनका आहार है, उतनी मेहनत नहीं है। थकें और नींद आए उतना आहार होना चाहिए। लेबर के अनुसार आहार का प्रमाण हो, तो नोर्मल नींद आती है। नींद की तो मारामारी ही हो गई है न? सब जगह हो गई है न? फ़ॉरेन में तो नींद ढूंढने पर भी नहीं मिलती है, इसलिए तो मैं उसकी नैचुरल दवाई की व्यवस्था में हूँ। हम सभी को नोर्मल जीवन जीना सिखाएँगे। नोर्मल खाना-पीना, नोर्मल सोना और नोर्मल मौज मनाना। नींद कितनी होनी चाहिए? भगवान ने सोने के लिए तीन घंटे की छूट दे रखी है। यह संसार सोने के लिए नहीं है। ज्ञान मिलने के बाद बहुत नींद नहीं आए, तो अच्छा, इससे ज्ञाता-दृष्टा पद विशेष रहता है। हम पिछले बीस बरसों से डेढ़ घंटे से ज्यादा सोए नहीं हैं। ज्ञान जागृति में ही रातें गई हैं। नींद कितनी चाहिए? इस देह को उसके कार्य के बाद थकान उतारने जितनी ही और उतना समय पर्याप्त होता है। गौतम स्वामी ने महावीर भगवान से पूछा कि सोता हुआ अच्छा या जागता अच्छा?'भगवान ने कहा कि एक हजार में से नौ सौ निन्यानवे मनुष्य इस संसार में सोते हुए ही अच्छे, पर एकाध परोपकारी जीव जागता हुआ भी अच्छा। स्वप्न स्वप्न विज्ञान गहन है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक उसकी खोज में लगे हैं। इसमें कौन-सी देह कार्य करती है, अंत:करण उस समय क्या कार्य करता है आदि खोज रहे हैं। पर स्वप्न विज्ञान यों समझ में आए ऐसा नहीं है। स्वप्न में स्थूल देह के सारे ही दरवाजे बंद होते हैं। सूक्ष्म देहमन, बुद्धि, और चित्त कार्य करते हैं। अहंकार कुछ नहीं कर सकता। यदि अहंकार कार्य कर रहा होता, तो मनुष्य सपने में भी उठकर मारामारी करने लगता, उठकर चलने लगता। स्वप्न में हो रही सारी क्रियाएँ करने लगता, पर अहंकार की वहाँ एक नहीं चलती। जब कि जागृत अवस्था में उसे ऐसा भान होता है कि मैं कर सकता हूँ। वास्तव में किसी भी अवस्था में वह कुछ कर ही नहीं सकता है। पर जागृत अवस्था में सारी की सारी खिड़कियाँ खुली होती हैं, इसलिए भ्रांति से कर्ताभाव आ जाता है। सपने गलत नहीं होते। सच्चे हैं, यथार्थ हैं, इफेक्टिव हैं, और यह साइन्टिफिक रूप से प्रमाणित हो सके, ऐसा है। स्वप्न में होनेवाले सूक्ष्म देह का असर स्थूल देह पर भी होता हैं। इसलिए वह इफेक्टिव है। ऐसा कैसे है, यह मैं आपको समझाता हूँ। स्वप्न में भिखारी को महाराजा होने का स्वप्न आए, तो पाव सेर खून बढ़ जाता है और स्वप्न में राजा भिखारी हो जाए, तो उसका पाव सेर खून कम हो जाता है। जगते हुए उसे जितना दुःख हो सकता है, उतना ही दुःख उसे स्वप्न में भी होता है। मरा, रोता भी है। जागे, तब आँखों में पानी होता है। अरे! कई बार तो जागने के बाद भी उसका असर गया नहीं होता है, जिससे देर तक रोता रहता है। छोटे बच्चे भी स्वप्न के असर से डरकर जग जाते हैं, और कितनी ही देर तक रोते रहते हैं। भय के स्वप्न का देह पर असर होता है, उसके श्वासोच्छवास बढ़ जाते हैं, दिल की धड़कन भी बढ़ जाती है। ब्लड सर्कुलेशन वगैरह सभी बढ़ जाता है। ये सभी असर साइन्टिफिकली प्रमाणित किए जा सकें ऐसा है। यदि स्वप्न इतना इफेक्टिव है, तो उसे गलत कैसे कहें? एक व्यक्ति मुझे मिला ही नहीं था, फिर भी उसने स्वप्न में मेरे एक्जेक्ट दर्शन किए थे। इसका हिसाब कैसे लगाना? कैसा कॉम्प्लेक्स है यह? कोई भी वस्तु देखी न हो वह स्वप्न में आती ही नहीं है। किसी न किसी जन्म में देखा हो वही दिखता है। स्वप्न तो अनेक जन्मों की संकलना है। वह कोई नया नहीं है। कुछ कहते हैं कि दिन में जो विचार
SR No.009575
Book TitleAptavani 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size42 KB
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