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आप्तवाणी-१
सर्युलेशन चलाती है। उसके तार-डोरियाँ सब जगह पहुँचते हैं, इसीलिए सारी मशीनरी काम करती है। यदि किसी कर्म की कमी हो, तो बचपन से ही जठर खाना नहीं पचा सकता। देह के अंदर की इलेक्ट्रिकल बॉडी ही असल में कार्य करती है, पर स्थूल शरीर उसे ग्रहण नहीं कर सकता, इसीलिए देह कमजोर होती जाती है। सूक्ष्म शरीर तो सभी का एक जैसा ही होता है। यह जो आपकी देह का आकार है, उसका आर्किटेक्चर तो पहले से ही तय हो गया होता है। वह कॉज़ल बॉडी कहलाता है और यह जो स्थूल देह प्राप्त हुई, वह इफेक्ट बॉडी है। शरीर में जो भाग एबोव नोर्मल या बिलो नोर्मल हो जाता है, उसी भाग का दोष होता है और वही भाग भुगतता है। इस पर से अनुमान लगाया जा सकता है कि दर्द कहाँ से आया और क्यों आया ?
देह के तीन प्रकार तीन प्रकार के देह है : तेजस देह, कारण देह और कार्य देह।
आत्मा के साथ निरंतर रहनेवाली, वह तेजस देह है। वह सूक्ष्म शरीर है, इलेक्ट्रिकल बॉडी है। शरीर का जो नूर है, जो तेज होता है, वह तेजस शरीर के कारण होता है। शरीर का नूर चार वस्तुओं से प्राप्त होता है।
(१) कोई बहुत लक्ष्मीवान हो और सुख-चैन से रहता हो, तो उसका तेज आता है, वह लक्ष्मी का नूर।
(२) जो बहुत धर्म करता हो, तो उसके आत्मा का प्रभाव पड़ता है, वह धर्म का नूर।
(३) कोई बहुत विद्याभ्यास करे, रिलेटिव विद्या प्राप्त करे, तो उसका तेज आता है, वह पांडित्य का नूर।
(४) ब्रह्मचर्य का नूर। ये चारों नूर सूक्ष्म शरीर, तेजस शरीर से आते हैं।
जब माता का रज और पिता का वीर्य इकट्ठा होते हैं, तब नया इफेक्ट बॉडी (कार्य शरीर) उत्पन्न होता है। जीव क्या है? जो जीता है
और मरता है, वह जीव है। ये सभी जीव मरते हैं, तब सक्ष्म शरीर और कारण शरीर साथ ले जाते हैं। मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार यहीं स्वतंत्र हो जाते हैं, और जो कॉजल बॉडी (कारण शरीर) साथ ले जाते हैं, उससे नया इफेक्ट बॉडी (कार्य शरीर) बनता है। माता के रज और पिता के वीर्य से उत्पन्न हुआ कार्य शरीर, उन्हीं को खा जाता है और उसकी गाँठ बनती है। जीव घंटेभर के लिए भी बिना खुराक के नहीं रह सकता। अन्न नहीं, तो हवा-पानी कुछ न कुछ तो लेता ही रहता है।
जो तेजस शरीर है, वही सूक्ष्म शरीर या इलेक्ट्रिकल बॉडी है। यह इलेक्ट्रिकल बॉडी खाना पचाती है, शरीर में गरमी पैदा करती है।
कारण देह समझ में आए ऐसी है। जन्म से ही उत्पन्न होती है, अंदर से ही होती है। हवा खाए, तभी से शुरू होती है, तभी से रागद्वेष उत्पन्न होते हैं। बचपन से ही पसंद-नापसंद होती है। राग-द्वेष से परमाणु खिंचते हैं, वीतरागता से नहीं खिंचते। परमाणु खिंचने से, पूरण होने से 'कारण देह' बनती है। आज जो देह दिखाई देती है, वह पूर्वभव की कारण देह है। ज्ञानी पुरुष को कारण देह दिखाई देती है और उनमें इतना सामर्थ्य होता है कि कारण देह का गठन बंद कर दें, सील कर दें। फिर नयी कारण देह गठित नहीं होती।
आत्मा जब देह से अलग होती है, तब उसके साथ कारण देह जाएगी, पुण्य-पाप जाएँगे। पुण्य के आधार पर रूप, सिमेट्रिकल बॉडी (समरूप शरीर) सुख इत्यादि मिलते हैं। पाप के आधार पर कुरूपता मिलती है। पाप के आधार पर देह असिमेट्रिकल (बैडौल) मिलती है। इस देह में से आत्मा खिसक जाए, तब कारण शरीर और सूक्ष्म शरीर साथ ही रहते हैं। सूक्ष्म शरीर और कारण शरीर के परमाणुओं के सांयोगिक प्रमाण इकट्ठे होते हैं, तब स्थूल शरीर खड़ा होता है। आत्मा जब मृत्यु समय, स्थूल देह से अलग होता है, तब वह एक जगह से निकलकर दूसरी जगह पर, एक समय में, उसके व्यवस्थित द्वारा निश्चित