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आप्तवाणी-१
वास्तव में भावमन यानी प्रतिष्ठित आत्मा का डायरेक्ट चार्ज होनेवाला मन। यह द्रव्यमन जो दिखाता है, वह तो डिस्चार्ज है। चार्ज तो दिखता ही नहीं। पता ही नहीं चलता। यदि चार्ज समझ में आए ऐसा होता, तो कोई चार्ज ही नहीं होने देता न? सभी का मोक्ष ही हो जाता। भाव का पता चले ऐसा नहीं है। मिले, तो तो सील कर दें। बहुत ही कम लोग भाव को समझ पाते हैं, पर फिर वे उसे मढात्मा का समझते हैं, इसलिए गड़बड़ हो जाती है। 'ज्ञान' के बिना भाव पकड़ में आए ऐसा नहीं है। अत्यंत गहन, गहन है। लाख बार गहन-गहन बोलें, तब भी उसकी गहनता का अंत न आए ऐसा है।
शद्धात्मा को भाव होता ही नहीं है। भाव अर्थात अस्तित्वपना. बाकी यह भाव तो प्रतिष्ठित आत्मा का ही है। लोग तो जो भाता है उसी पर भाव करते हैं। भावाभाव करते हैं। ये सभी प्रतिष्ठित आत्मा के ही हैं, उनसे कर्म बंधते हैं। नाशवंत चीज़ों का भाव करते हैं, इसलिए नाशवंत हो जाते हैं। शीशे को 'मैं हूँ' समझें, तो बात कैसे बने?
सज्जनता-दुर्जनता संसार में सज्जन और दुर्जन, दोनों साथ ही रहनेवाले हैं। दुर्जन हैं, तो सज्जन की क़ीमत है। यदि सभी सज्जन होते, तो?
सज्जन पुरुष : जो निरंतर उपकार ही करता रहे, वह। दुर्जन पुरुष : निरंतर अपकार ही करता रहे, वह। कृतज्ञ : सामनेवाले द्वारा किए गए उपकार को कभी न भूले और
सामनेवाले का अपकार कभी भी लक्ष्य में न लाए, वह । कृतघ्न : सामनेवाले का उपकार भूल जाता है, और जान-बूझकर अपकार करता है। खुद को कोई भी ज़रूरत नहीं हो, कोई लाभ नहीं हो, फिर भी अपकार करता है, वह।
सागर की गहराई का अंत है, पर संसार की गहराई का कोई अंत ही नहीं।
अधिकार का दुरुपयोग करता है उसकी सत्ता चली ही जाती है। जो सत्ता मिली हो, उसे शोभा नहीं दे, ऐसा कार्य करे, तो सत्ता चली जाती है। भले ही आपका नौकर आपको गाली दे पर आप गाली देंगे, तो आपकी सत्ता चली जाएगी।
झूठ सिर चढ़कर बोलता है, और सत्य भी सिर चढ़कर बोलेगा। झुठ तुरंत ही बोलेगा। सत्य को देर लगेगी। असत्य तो दूसरे दिन ही बोलेगा।
हल्दीघाटी का युद्ध छेड़ने में मज़ा नहीं है, निपटाने में मज़ा है। समझा-बुझाकर काम निकाल लेना, पर लड़ना नहीं। न्याय किसे कहते है? कोर्ट में जाना नहीं पड़े वही न्याय कहलाता है। कोर्ट जाना पड़े, वह अन्याय है।
मन-वचन-काया और आत्मा का उपयोग लोगों के लिए कर। तेरे खुद के लिए करेगा, तो खिरनी (खिरनी का पेड) का जन्म मिलेगा। फिर पाँच सौ साल तक भुगतते ही रहो। लोग तेरे फल खाएँगे, लकड़ियाँ जलाएँगे, कैदी की तरह तेरा उपयोग होगा। इसलिए भगवान कहते हैं कि तेरे मन-वचन-काया और आत्मा का उपयोग औरों के लिए कर। फिर तुझे कोई भी दु:ख आए, तो मुझे कहना।
अविरोधाभास खोजने की जिसकी मति उत्पन्न हुई है, वही 'सुमति'।
जो जो संसार का उच्छेद करने गए हैं, उनका अपना ही उच्छेदन हो गया है। मनुष्यत्व तो सबसे बड़ा भयस्थान है, टेस्ट एक्जामिनेशन (कसौटी) है। उसमें लोग मज़ा ले रहे हैं। उसमें तो निरे भयस्थान ही हैं। हर क्षण मृत्यु का भय, एक क्षण भी व्यर्थ कैसे गवाएँ। ऐसा कुछ कर कि जिससे तेरा अगला जन्म सुधरे। यह मनुष्य गति टर्निंग पोइन्ट है। यहाँ से वक्र गति होती है। नर्क, तिर्यंच, मनुष्य और देव चारों गतियों में यहाँ से जा सकते हैं, और मोक्ष भी मनुष्य गति में ही मिलता है। यदि ज्ञानी पुरुष मिल गए, तो समझो बेडा पार ही हो गया।