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________________ आप्तवाणी - १ ९५ इसलिए समझा-बुझाकर पेन्शन देकर विदा करो। पेन्शन अर्थात् आश्वासन । यदि आप मोक्ष में जाना चाहते हैं, तो बुद्धि की एक मत सुनना । बुद्धि तो ऐसी है कि ज्ञानी पुरुष का भी उलटा दिखाए। अरे! जिसके द्वारा मोक्ष प्राप्त हो सकता है, उसका भी उलटा देखा? तब फिर आपका मोक्ष आपसे अनंत जन्मों दूर हो जाएगा। बुद्धि ही संसार में भटका कर मरवाती है। अरे! एक औरत की सुनकर चलें, तब भी पतन होता है, टकराव हो जाता है, तो यह तो बुद्धिबहन ! उसकी सुननेवाला तो कहीं का कहीं जा गिरता है। अरे! रात दो बजे जगाकर बुद्धि बहन उलटा दिखाएगी। स्त्री तो कुछ समय साथ नहीं भी होती, पर बुद्धिबहन तो निरंतर साथ ही रहती है। इसलिए बुद्धि तो डीथ्रोन (पदभ्रष्ट कराए ऐसी है। एक हीरा पाँच अरब का है और आप सौ जौहरियों को क्रीमत करवाने बुलाएँगे, तो हरएक अलग-अलग क़ीमत करेगा, क्योंकि हरएक अपनी बुद्धि के अनुसार मुल्यांकन करेगा। अरे! हीरा तो वही का वही है और क़ीमत अलग-अलग क्यों ? क्योंकि हरएक की बुद्धि में अंतर है इसलिए। इसलिए मैं कहता हूँ, "यह 'ज्ञानावतार' आपकी बुद्धि की नाप से नहीं नापे जा सकते, इसलिए नापना मत ! " ज्ञानी पुरुष के पास तो भूल से भी बुद्धि का प्रयोग नहीं करना चाहिए। ज्ञानी पुरुष का प्रत्येक अंग, उनका एक-एक दिव्य कर्म पूजने योग्य है। वहाँ बुद्धि इस्तेमाल नहीं करनी होती। ये ज्ञानी पुरुष तो देहधारी हैं, पर भीतर तो अद्भुत अहर्निश जागृति हैं। आपको जो दिखाई देते हैं, वे देहधारी ज्ञानी नाटक का हिस्सा हैं। संपूर्ण नाटकीय भाव में ही रहनेवाले हम, अबुध हैं। अबुध के संग से ही अबुध हो सकते हैं। संसार के लोगों का कारोबार बुद्धि चलाती हैं, जब कि ज्ञानियों का ' व्यवस्थित' चलाता है। फिर उसमें व्यतिरेक होता ही नहीं। बुद्धि क्या है? वह तो पिछले जन्म का आपका व्यू पोइन्ट है । जैसे आप्तवाणी - १ ९६ आप हाई वे पर से गुजर रहे हैं और पहले मील पर एक प्रकार का व्यू पोइन्ट दिखाई दिया, तो इस पर बुद्धि के हस्ताक्षर हो जाते हैं कि हमारे तो ऐसा ही हो तो ठीक रहेगा। ऐसे पहले मील का व्यू पोइन्ट तय हो जाता है। फिर आगे बढ़ने पर दूसरे मील पर अलग ही दृश्य दिखाई देता है और सारा का सारा व्यू पोइन्ट ही बदल जाता है, तब उसके हिसाब से बुद्धि फिर हस्ताक्षर कर देती है कि हमें ऐसा ही चाहिए, पर इससे पिछला पोइन्ट भूल गया ऐसा नहीं है इसलिए वह आगे से ही चलता रहता है। यदि पिछले व्यू पोइन्ट का अभिप्राय नहीं लें, तो हर्ज नहीं है, पर ऐसा होना संभव नहीं है। अभिप्राय आकर आगे खड़ा हो ही जाता है। इसे हम गत ज्ञान - दर्शन कहते हैं। क्योंकि बुद्धि ने हस्ताक्षर करके मुहर लगा दी है, इसलिए अंदर मतांतर होता ही रहता है। आज की आपकी बुद्धि आपके पिछले जन्म का आपका व्यू पोइन्ट है और आज का व्यू पोइन्ट आपके अगले जन्म की बुद्धि होगी, ऐसे परंपरा चलती ही रहती है। चोर चोरी करता है, वह उसका व्यू पोइन्ट है। उस पर पिछले जन्म में बुद्धि ने मुहर लगाई है। इसलिए इस जन्म में चोरी करता है। यदि उसे अच्छों का संग मिल जाए, तो फिर उसका व्यू पोइन्ट बदल भी जाता है और ऐसा तय करता है कि चोरी करना गलत है । अत: पिछले जन्म के व्यू पोइन्ट के आधार पर चोरी तो करता है, पर आज का उसका व्यू पोइन्ट चोरी नहीं करनी चाहिए, ऐसा हो रहा है, इससे अगले जन्म में चोरी नहीं करने की बुद्धि प्राप्त होती है। मतभेद क्यों? किसी के साथ मतभेद होता है, उसकी क्या वजह है? हर एक का व्यू पोइन्ट अलग-अलग होने के कारण। हर एक मनुष्य अलग-अलग देखता है। चोर चोरी करता है, वह उसका व्यू पोइन्ट है । वह खुद चोर नहीं है । व्यू पोइन्ट को गलत बताना, उसके आत्मा को गलत बताने के समान है, क्योंकि उसकी बिलीफ़ में ऐसा है। वह तो उसे ही चेतन मानता
SR No.009575
Book TitleAptavani 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size42 KB
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