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________________ आप्तवाणी-१ आप्तवाणी-१ रौब जमाते फिरते हैं। पर वह तो जब मार पड़े तब ठिकाने पर आ जाता है, पर वणिक को राह पर लाना बड़ा मुश्किल है। क्षत्रिय मंदिर में पैसे डालने जेब में हाथ डाले, तो जितने पैसे हाथ में आएँ उतने डाल देते हैं। जब कि वणिक घर से तय करके निकलता है कि पाँच पैसे डालने हैं और रास्ते में छूट्टे करवाकर, प्रत्येक मंदिर में पाँच या दस पैसे डालेगा। जब भाव होता है, तब वणिक बुद्धि खर्च करेगा। है, इसलिए चेतन को गलत बतलाया कहा जाएगा। उसके व्यू पोइन्ट से वह सही है, क्योंकि जब तक अज्ञान है तब तक उसे व्यू पोइन्ट का ही आधार है। ज्ञान प्राप्ति के बाद सेन्टर में (आत्मा में) आने से अज्ञान और व्यू पोइन्ट दोनों निराधार हो जाते हैं। हम किसी को भी 'तू गलत है' ऐसा नहीं कहते। चोर को भी गलत नहीं कहते हैं, क्योंकि उसके 'व्यू पोइन्ट' से वह सही है। हाँ, हम उसे चोरी करने का फल क्या होगा, वह, जैसा है वैसा, समझाएँगे। संसार के सारे मनुष्य सद्बुद्धि और दुर्बुद्धि में ही खेला करते हैं। सद्बुद्धि शुभ दिखलाती है और दुर्बुद्धि अशुभ दिखलाती है। कुल मिलाकर दोनों प्रकार की बुद्धि संसारानुगामी है। इसलिए हम उसे विपरीत बुद्धि कहते हैं। विपरीत बुद्धि लेनेवाले और देनेवाले दोनों का ही अहित करती है। जब कि सम्यक् बुद्धि लेनेवाले और देनेवाले दोनों का हित ही करती है। बुद्धि तो जबरदस्त मार खिलाती है। यदि घर में कोई बीमार हो जाए और यदि बुद्धि दिखलाए कि ये मर जाएँगे तो? बस, हो गया। सारी रात बुद्धि रुलाती रहेगी। बनिये बहुत बुद्धिवाले होते हैं, इसलिए उन्हें बहुत मार पड़ती है। वणिक् बुद्धि से तो मोक्षमार्ग में अंतराय बँधता है। मोक्ष में जाना तो शूरवीरों का काम है, क्षत्रियों का काम है। आत्मा वर्ण से तो भिन्न है, पर प्राकृत गुण उसे उलझा देते हैं, उलटा दिखलाते हैं। क्षत्रिय तो बलवान होते हैं। चौबीसों तीर्थकर क्षत्रिय थे। क्षत्रियों को तो मोक्ष के लिये भाव आएँ, तब सांसारिक वस्तु का तोल नहीं करते। जब कि वणिक तो मुक्ति का भाव आए, वहाँ भी सांसारिक वस्तुओं का तोल करते हैं। वणिकबुद्धि पर तो नजर रखने जैसा है, उससे जागृत रहने जैसा है। मोक्ष मार्ग पर वणिकबुद्धि बहुत उलझाती है। वणिक की लोभ की गाँठ बहुत बड़ी होती है और वह तो दिखाई तक नहीं देती। जबकि क्षत्रिय तो उछल-कूद मचा देते हैं। सब जगह पैसा-वैसा क्या है? परण-गलन है। पूरण हुआ, तो गलन होगा ही। बहीखातों का हिसाब है। उसमें लोग बुद्धि खर्च करके दखल कर डालते हैं। ये तो मरे, पूरण-गलन में शक्तियाँ बरबाद करते हैं। पैसा तो बैंक बैलेन्स है, हिसाब है। नक्की हुआ है। उसमें, पैसा कमाने में बुद्धि खर्च करते हैं, वे अपना ध्यान बिगाड़ते हैं और अगला जन्म बिगड़ते हैं। अधूरे में पूरा ट्रिक करना सीख गए हैं। ट्रिक अर्थात् सामनेवाले की कम बुद्धि का गलत लाभ उठाकर अपनी ज्यादा बुद्धि से सामनेवाले की धोखा देकर हड़प लेना। ट्रिकवाला बड़ा चपल होता है, ओर चोर भी चपल होता है। ट्रिकवाला तो भयंकर अधोगति पाता है। वणिक तो बुद्धि की ऐसी बाड़ें बना लेते हैं कि अपना खुद का ही संभालते हैं, पड़ोसी का नहीं देखते। वे व्यवहार में अच्छे किस लिए दिखाई देते हैं? बुद्धि की बाड़ से। उनकी दृष्टि खुद की ओर ही होती है। केवल अपने स्वार्थ को ही तकता है। यदि उसे न्याय करने को कहा जाए, तो उसमें सामनेवाले को सुख होगा या दु:ख होगा, यह देखने बैठ जाता है। मतलब न्याय ऐसा करो कि सामनेवाले को बुरा नहीं लगे। सामनेवाले को बुरा नहीं लगे, इसलिए मरा झुठ बोलता है, गलत न्याय करता है। फलतः भगवान तो भीतर बैठे हैं, वे देखते हैं कि इसने तो दोनों ओर परदा डाला है। सच-सच बोलना चाहिए, कड़वा नहीं लगे ऐसा सत्य कहो, पर यह तो परदा करके झूठा न्याय करता है। अतः भयंकर जोखिम मोल लेता है। सामनेवाला गलत हो, उसे सच्चा साबित
SR No.009575
Book TitleAptavani 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages141
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size42 KB
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