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आप्तवाणी-१
आप्तवाणी-१
कॉजेज़ और इफेक्ट्स, इफेक्ट्स और कॉज़ेज़ की परंपरा चलती ही रहती
अपनी लेडी को भी भूल गया। हमारे फोटो खींचकर साथ ले गया।
मन-वचन-काया, इफेक्टिव ये मन-वचन-काया इफेक्टिव हैं या अन्इफेक्टिव? इफेक्टिव हैं। जन्म से ही इफेक्टिव हैं। गर्भ में भी इफेक्टिव हैं। इफेक्टिव कैसे? यदि सवेरे किसी ने कह दिया कि तुम कमअक्ल हो, तो रात दस बजे भी मन सोने नहीं देता और इफेक्ट चालू हो जाता है, ऐसा क्यों? तब कहे, मन इफेक्टिव है इसलिए? बाकी वाणी तो प्रत्यक्ष रूप से इफेक्टिव है। यदि किसी को एक गाली सुनाई, तो पता चल जाएगा तुरंत ही और तीसरे यह देह भी इफेक्टिव है, सर्दी में ठंड लगती है, गरमी में गरमी लगती है। नवजात शिशु को ठंड में ओढ़ाया गया कपड़ा यदि हट जाए, तो तुरंत रोने लगता है और फिर ओढ़ाने पर चुप हो जाता है। मुँह में मीठा देने पर चाटने लगता है और कड़वा रखने पर मुँह बिगाड़ता है। ये सारे इफेक्ट्स (असर) ही हैं केवल। अरे, गर्भ में भी इफेक्टिव होता हैं। इसका मेरा खुद का देखा हुआ दृष्टांत बताता हूँ। पचास साल पहले की बात है। हमारे भादरण गाँव में एक महिला को आठवाँ महीना चल रहा था। राह चलते उसे गाय ने सींग मारा और सींग गर्भाशय में लगा
और बच्चे की ऊँगली बाहर निकल आई, जरा-सी। डॉक्टरों को बुलाया गया। उस वक्त मिशनरी के उन डॉक्टरों के लिए बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो गई। महिला की स्थिति गंभीर होती जा रही थी। उतने में गाँव की एक सत्तर-अस्सी साल की बुढ़िया को इसका पता चला, तो वह लाठी ठोकती ठोकती वहाँ आ पहुँची। उसने सबको कहा कि तुम सब दूर हट जाओ और आराम से बैठ जाओ भगवान का नाम लो और देखो कि क्या होता है। उसने एक सूई ली और उसकी नोक को गरम किया और बाहर निकली ऊँगली को जरा-सा छुआया कि पट्ट से ऊँगली अंदर चली गई। अंदर बच्चे को इफेक्ट हुआ और उसने ऊँगली अंदर खींच ली!
इफेक्ट है, तो कॉज अवश्य होना ही चाहिए। कॉज़ेज हैं, तो इफेक्टस हैं, और इफेक्टस हैं, तो कॉजेज होने ही चाहिए। इस प्रकार
कारण के बिना कार्य नहीं होता और कार्य हो, तो कारण होना ही चाहिए। पूर्वजन्म के कारण को लेकर आज की देह है, वह कार्यस्वरूप की देह है। जन्म होता है, तब स्थूल शरीर और सूक्ष्म शरीर, ऐसे दो शरीर साथ होते हैं। पर बाद में उनसे जो इफेक्ट होता है, उसमें राग-द्वेष करके दूसरे नये कारण पैदा करता है और अलगे जन्म के बीज बोता है, ऐसे अंतत: मरते दम तक 'कारण शरीर' उत्पन्न करता रहता है। मरता है तब कारण शरीर और सूक्ष्म शरीर के साथ आत्मा छूटता है
और स्थूल शरीर यहाँ पड़ा रहता है। उस कारण शरीर में से. फिर से. कार्य शरीर मिल ही जाता है, ऑन द वेरी मॉमेन्ट (तत्काल)।
यदि पुनर्जन्म नहीं होता और सभी को भगवान ने गढ़े होते, तो सभी एक सरीखे होते। एक ही साँचे में से निकले हों वैसे एक सरीखे ही होते। पर यह तो एक बड़ा और एक छोटा, एक लम्बा और एक नाटा, एक गोरा, एक काला, एक गरीब, एक श्रीमंत ऐसे होते हैं। भगवान ने बनाया होता, तो वैसा नहीं होता। उन सभी में जो फर्क दिखता है, वह उनके पूर्वजन्म के आधार पर है। पूर्व के कॉजेज के आधार पर आज के ये अलग-अलग इफेक्ट्स हैं केवल। प्रत्येक के कॉजेज़ अलग इसलिए इफेक्ट्स भी अलग-अलग। यदि पुनर्जन्म नहीं है, तो एक भी ऐसा सबूत दिखाइए कि जो उसका समर्थन करता हो। ये अंग्रेज लकी और अनलकी बोलते हैं, वह क्या है? मुस्लिम तकदीर और तदबीर कहते हैं, वह क्या सूचित करता है? इन सबकी भाषा पूर्ण है, पर बिलीफ़ (मान्यता) अपूर्ण है। ऐसे शब्द जहाँ पुनर्जन्म होता है, वही प्रयोग में लाए जाते हैं।
जैसे कॉज़ेज़ उत्पन्न किए हों, वैसे ही इफेक्ट्स आते हैं। अच्छों का अच्छा और बुरों का बुरा। पर अंत तक छट तो सकते ही नहीं। वह तो कॉजेज का होना बंद होगा, तो ही इफेक्ट्स बंद होंगे। पर जब तक 'मैं चंदूभाई हूँ' ऐसा है, तब तक कॉज़ेज़ बंद होंगे ही नहीं। वह तो ज्ञानी पुरुष झकझोरकर जगाएँ और स्वरूप का भान कराएँ, तब कॉजेज़ होने