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आप्तवाणी-१
आप्तवाणी-१
मन में घबराहट होती है कि नहीं? होती ही है। अभी कोई निकाल बाहर करेगा, धमकाएगा', ऐसा भय निरंतर रहा ही करता है। पर यदि अपने ही घर में बैठे है, तो है कोई चिंता? शांति ही होगी न अपने घर में तो? वैसा ही है यह। 'चंदूलाल', आपका घर नहीं हो सकता। आप खुद क्षेत्रज्ञ पुरुष हैं और भ्राँति से पराये क्षेत्र में क्षेत्राकार हो गए हैं। 'पर' के स्वामी बन बैठे हैं और ऊपर से, पर के भोक्ता बन बैठे हैं। इसलिए निरंतर चिंता, उपाधि, आकुलता और व्याकुलता रहा करती है। पानी से बाहर निकाली गई मछली की तरह छटपटाहट, छटपटाहट रहती है। ये सेठ लोग डनलप के गढ्दों में सोते हैं, मच्छरदानी लगाते हैं और एक-एक खटमल को हटवाकर सो जाते हैं, फिर भी सारी रात करवटें बदलते रहते हैं। ढाई मन का बोरा (शरीर) इधर घुमाए, उधर घुमाए। रातभर अंदर चुन-चुन होती रहती है, करे भी तो क्या करे बेचारा? क्या खटिया से ऊपर हवा में सोएगा?
बंद होते है। हम, कारण शरीर का नाश कर देते हैं। फिर इस 'चंदूलाल' के जितने भी इफेक्ट्स हैं, उनका निपटारा कर देना, फिर उन इफेक्ट्स का निपटारा करते समय आपको राग-द्वेष नहीं होते, इसलिए नये बीज नहीं पड़ते। हाँ, इफेक्ट्स तो भुगतने ही होंगे। इफेक्ट्स तो इस संसार में कोई बदल ही नहीं सकता। यह कम्पलीट साइन्टिफिक वस्तु है। अच्छेअच्छे साइन्टिस्टों को भी मेरी बात कबूल करनी ही पड़ेगी।
इस कलियुग में, दूषमकाल में गज़ब का आश्चर्यज्ञान प्रकट हुआ है। इस आश्चर्यकाल के हम अक्रम ज्ञानी हैं और ऐसा हमें खुद बोलना पड़ता है। हीरे को खुद की पहचान कराने, खुद को बोलना पड़े ऐसा यह वर्तमान आश्चर्यकाल है।
आधि - व्याधि - उपाधि सारा संसार त्रिविध ताप से सुलग रहा है। अरे! पेट्रोल की अग्नि से धाँय-धाँय जल रहा है। वे तीन ताप कौन से? आधि, व्याधि और उपाधि।
पेट में दुखता हो उसका नाम व्याधि। भूख लगे उसका नाम व्याधि। आँखें दुखती हों वह व्याधि। शारीरिक दुःख व्याधि कहलाते हैं।
मानसिक दुःख आधि कहलाते हैं। सारा दिन चिंता करते रहें, वह आधि। और बाहर से आ धमके वह उपाधि है। इस समय यहाँ बैठे हैं और कोई पत्थर मारे वह उपाधि। कोई हमें बुलाने आया वह उपाधि। उपाधि बाहर से आती है, वह अंदर से नहीं होती।
___सारा संसार, फिर चाहे वह साधु हो या सन्यासी हो, तो भी त्रिविध ताप से सुलग रहे हैं। हमने जिन्हें ज्ञान दिया है, उन्हें तो निरंतर समाधि रहती है। जिन्हें शुद्धात्मा पद प्राप्त है, वे निरंतर स्वरूप में ही रहते हैं, उन्हें हर अवस्था में समाधि रहती है, क्योंकि वे तो प्रत्येक अवस्था को 'देखते' हैं और 'जानते' हैं।
यह कैसा है कि यदि आप अन्य किसी के घर में घुस जाएँ, तो
संसार और ब्रह्म यह संसार सत्य होगा या इल्यूजन (मिथ्या)? प्रश्नकर्ता : इल्यूजन।
दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है। देखिए, मैं आपको समझाता हूँ कि इल्यूजन क्या है? इल्यूजन यानी पानी दिखाई दे, और धोती ऊपर करके चले, पर धोती भीगे नहीं, चारों और आग ही आग दिखाई दे, पर जले नहीं। वह इल्यूजन कहलाता है। कुछ कहते हैं, 'ब्रह्म सत्य, जगत् मिथ्या'। यदि मिथ्या है, तो अंगारों में हाथ डालकर देख न? तुरंत ही मालूम हो जाएगा कि मिथ्या है कि नहीं? यदि मिथ्या होता, तो यदि किसी ने कहा हो, 'चंदूलाल में अक्ल नहीं है, तो वह बात वहीं की वहीं मिथ्या सिद्ध हो जानी चाहिए। मिथ्या किसे कहते हैं कि वही की वही, उसी क्षण उसका असर, इफेक्ट साबित हो जाए। उदाहरण के तौर पर, दीवार पर ईंट फेंकी, तो तुरंत ही दीवार पर असर के रूप में गड्ढा होगा या लाल निशान तो बन ही जाएगा। इसी प्रकार रात दो बजे