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अहिंसा
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अहिंसा
जाती है। इसलिए हम क्या कहते हैं कि जिसे अड़चन हो, वे ज्ञानी पुरुष को फूल चढ़ाएँ और अड़चन न हो उसे कोई ज़रूरत नहीं। सभी को क्या एक जैसा होता है? कुछ लोगों को कैसी-कैसी अड़चनें होती है! वे सभी चली जाती हैं। और 'ज्ञानी पुरुष' को तो इसमें कुछ छूता नहीं है और बाधक भी नहीं होता।
फिर भी कुछ लोग मुझे कहते हैं कि 'पुष्प पांखडी ज्यां दुभाय जिनवरनी नहीं आज्ञा। भगवान की आज्ञा नहीं है न?' मैंने कहा, 'यह तो कॉलेज के तीसरे वर्ष की बात अभी सेकन्ड स्टेन्डर्ड में किसलिए ले आते हो? कॉलेज के तीसरे वर्ष में उस पर अटेन्शन देना है। आप अभी सेकन्ड में किसलिए लाते हो यह सब?' तब वे कहते हैं, 'वह तो विचार करने जैसी बात है।' मैंने कहा, 'तब विचार करो। यह सेकन्ड, थर्ड स्टेन्डर्ड में लाने की जरूरत नहीं है। आप अंतिम वर्ष में आओ तब करना न!' तब कहते हैं कि, 'उसकी लिमिट कितनी होती है?' मैंने कहा कि, 'अंतिम जन्म में भगवान महावीर विवाहित थे, ऐसा आप नहीं जानते?' तब कहते हैं कि, 'हाँ, विवाहित थे।' मैंने कहा कि, 'कितने वर्ष तक संसार में रहे थे?' तब कहे, 'तीस वर्षों तक।' मैंने कहा कि, 'संसार में रहे थे उसका कोई प्रमाण है आपके पास?' तब कहते हैं कि, 'उनके बेटी थी न!' मैंने कहा कि, 'संसार में रहते हैं इसलिए वे तो स्त्री के अपरिग्रही तो नहीं ही थे न? परिग्रही थे। परिग्रही हों तो बेटी होगी न? नहीं तो प्रमाण क्या होगा? इसलिए तीस वर्ष तक वे अपरिग्रही थे। तो भगवान ने ऐसा क्या देखा कि स्त्री का परिग्रह उस जन्म में हो और उस जन्म में मोक्ष में भी जा सकें? तो उन्होंने ऐसी क्या खोज की?! इसलिए यह फाइनल बात है सारी।
इसलिए मूर्ति को भी फूल चढ़ाए जा सकते हैं और अपने तीर्थंकरों की मूर्ति पर भी फूल चढ़ाए जा सकते हैं। ये तो ऐसे फूल की पंखुड़ी को नहीं दुख देते और ऐसे साथवालों के साथ कषाय कर-करके दम निकाल डालते हैं। पुष्प की पंखुड़ी दुख नहीं पाए, ऐसे मनुष्य से तो, एक कुत्ता सो रहा हो और वह उधर से गुज़रे तो कुत्ता जगे नहीं, ऐसा होता
यह पुष्प पंखुड़ी तब भी न दुख पाए ऐसा अंतिम जन्म में अंतिम पंद्रह वर्ष मोक्ष जाने में बाकी रहे हों, तब ही बंद करना होता है। इसलिए
अंतिम पंद्रह वर्ष के लिए सँभाल लेना है। और जब से स्त्री का योग छोड़ते हैं, उसके बाद अपने आप ये पुष्प और ये सभी रख देना होता है। और वह तो अपने आप ही बंद हो जाता है। इसलिए तब तक व्यवहार में कोई दखल करनी नहीं।
एकेन्द्रिय जीवों की सृष्टि प्रश्नकर्ता : ये अपकाय, तेउकाय, पृथ्वीकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय, वे क्या है?
दादाश्री : वे सब एकेन्द्रिय जीव हैं।
प्रश्नकर्ता : पानी में जीव है वह हमें श्रद्धा बैठ गई है इसलिए हम उबालकर पानी पीते हैं।
दादाश्री : मेरा कहना है कि पानी में जीवों की बात आप जो समझे हो और कहते हो, वह तो इन लोगों का कहा हुआ आपने मान लिया है। बाकी, बात इसमें समझ आए ऐसी नहीं है। आज के बड़े-बड़े साइन्टिस्टों को समझ में आए ऐसी नहीं है न! और बात बहुत सूक्ष्म है। वह ज्ञानी खुद समझ सकते हैं। परन्तु इसे विस्तारपूर्वक समझाने जाएँ, तब भी आपको समझ में नहीं आए ऐसी बात है। ये पाँच जो हैं न, उनमें वनस्पतिकाय अकेला ही समझ में आए ऐसा है। बाकी वायुकाय, तेउकाय, जलकाय और पृथ्वीकाय, इन चार जीवों को समझने के लिए बहुत ऊँचा लेवल चाहिए।
प्रश्नकर्ता : साइन्टिस्ट वही खोज कर रहे हैं न!
दादाश्री : पर साइन्टिस्ट नहीं समझ सकेंगे। सिर्फ इस पेड़ में ही समझ सकते हैं। वह भी बहुत प्रकार से नहीं, कुछ ही प्रकार से समझ सकते हैं।
है।
ऐसा है, यह आपको भगवान की भाषा की बात कह दूँ। ये पेड़