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अहिंसा
पौधे जो सब खुली आँखों से दिखते हैं, वे वनस्पतिकाय हैं। इस पेड़ में भी जीव है। यह वायुकाय यानी वायु में भी जीव हैं, उन्हें वायुकाय जीव कहा है। फिर यह मिट्टी है न, उसके अंदर भी जीव हैं और मिट्टी भी हैं। यह हिमालय में मिट्टी है, पत्थर हैं, उन सभी में जीव हैं। पत्थर भी जीवित होते हैं, उन्हें पृथ्वीकाय जीव कहा है। ये अग्नि में लपटें उठती हैं न, उस घड़ी उस कोयले में अग्नि नहीं होती। वे तो तेउकाय जीव वहाँ इकट्ठे हो जाते हैं। वे तेउकाय जीव। यह पानी पीते हैं, वे केवल जीवों का ही बना हुआ है। हाँ, जीव और उनकी देह- दोनों मिलकर यह पानी है। उन्हें भगवान ने अपकाय नाम के जीव कहा है। जिन का पानीरूपी शरीर है। ऐसे कितने सारे जीवों के इकट्ठे होने से एक प्याला पानी बनता है। अब यह पानी-वह जीव, यह खुराक-वह जीव, यह हवा-वह भी केवल जीव, सब जीव ही हैं।
सिद्धि, अहिंसा की प्रश्नकर्ता : तो अब अहिंसा किस प्रकार सिद्ध हो?
दादाश्री : अहिंसा? ओहोहो, अहिंसा सिद्ध हो जाए तो मनुष्य भगवान हो जाए! अभी थोड़ी-बहुत अहिंसा पालते हो?
प्रश्नकर्ता : साधारण। बहुत नहीं।
दादाश्री : तो फिर थोड़ी-बहुत पालन करने का निश्चिच करो न ! अरे फिर सिद्ध होने की बातें कहाँ करते हो? अहिंसा सिद्ध हो जाए तो भगवान हो गया!
प्रश्नकर्ता : अहिंसा पालने का उपाय बताइए।
दादाश्री : एक तो, जो जीव अपने से त्रास पाए उसे दुख नहीं देना चाहिए, उसे त्रास नहीं देना चाहिए। और गेहूँ है, बाजरा है, चावल है, उन्हें खाओ। उसका हर्ज नहीं है। वे अपने से त्रास नहीं पाते, वे अभान अवस्था में हैं और ये कीड़े-मकोड़े वे तो दौड़ जाते हैं, उन्हें नहीं मारना चाहिए। ये सीप-शंख के जो जीव होते हैं, जो हिलते-डुलते हैं ऐसे दो इन्द्रिय से
अहिंसा लेकर और पाँच इन्द्रिय तक के जीवों को कुछ नहीं करना चाहिए। खटमल को भी आप पकड़ो तो त्रस्त हो जाता है। इसलिए आप उसे मारो नहीं। समझ में आया न?
प्रश्नकर्ता : हाँ, समझ में आया।
दादाश्री : हाँ, दूसरा, सूर्यनारायण के अस्त हो जाने के बाद भोजन मत करो।
अब तीसरा, अहिंसा में जीभ का बहुत कंट्रोल रखना पड़ता है। आपको कोई कहे कि आप नालायक हो, तो आपको सुख होता है या दुख होता है?
प्रश्नकर्ता : दुख होता है।
दादाश्री : तो आपको इतना समझ जाना है कि हम उसे 'नालायक' कहें तो उसे दुख होगा। वह हिंसा है, इसलिए हमें नहीं कहना चाहिए। यदि अहिंसा पालनी हो तो हिंसा के लिए बहुत सावधानी रखनी पड़ती है। हमें जिससे दुख होता है, वैसा दूसरों को नहीं कह सकते।
फिर मन में खराब विचार भी नहीं आना चाहिए। किसी का मुफ्त में ले लेना है, हड़प लेना है ऐसे विचार कोई आने ही नहीं चाहिए। बहुत पैसे इकटठे करने के विचार नहीं आने चाहिए। क्योंकि शास्त्रकारों ने क्या कहा है कि पैसे तेरे हिसाब के जो हैं, वे तो तेरे लिए आया ही करते हैं। तो बहुत पैसे इकट्ठे करने के विचार करने की तुझे ज़रूरत ही नहीं। तू ऐसा विचार करे तो उसका अर्थ हिंसा होता है। क्योंकि दूसरे के पास से हड़प लेना, दूसरों का क्वोटा हमें ले लेने की इच्छा होती है, इसलिए वहाँ भी वह हिंसा समाई हुई है। इसलिए ऐसे कोई भाव नहीं करना।
प्रश्नकर्ता : बस, ये तीन ही उपाय हैं अहिंसा के?
दादाश्री : और भी हैं दूसरे। फिर माँसाहार, अंडे, कभी भी नहीं खाने चाहिए। फिर आलू है, प्याज़ है, लहसुन है, ये चीज़ मत लेना। कोई रास्ता न हो तब भी मत लेना। क्योंकि ये प्याज़-लहसुन हिंसक है, मनुष्य