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अहिंसा अलाभ होता हो तो वह बंद कर दो। परन्तु यह तो अलाभ से अधिक लाभ होता है। पर तू फूल चढ़ाएगा नहीं, तो तेरा व्यापार बंद हो गया।
अहिंसा लगने से क्यों मर गए? पर ऐसा नहीं है।
गोवर्धन उन्होंने बहुत सुंदर तरीके से किया था। क्योंकि उस समय में हिंसा बहुत बढ़ गई थी, जबरदस्त हिंसा बढ़ गई थी। क्योंकि मुस्लिम अकेले हिंसा करते हैं, ऐसा नहीं है। हिन्दुओं में कुछ ऊपर की क्वॉलिटी ही हिंसा नहीं करती, दूसरी सभी प्रजा हिंसा करनेवाली है।
हिंसक भाव तो नहीं ही होना चाहिए न! मनुष्य को अहिंसक भाव तो होना ही चाहिए न! अहिंसा के लिए जीवन खर्च कर डालना, वह अहिंसक भाव कहलाता है।
क्या पूजा के पुष्प में पाप? प्रश्नकर्ता : मंदिर में पूजा करने के लिए फूल चढ़ाने में पाप है या नहीं?
दादाश्री : मंदिर में भगवान की पूजा करने में फूल चढ़ाए जाते हैं, उसे दूसरी दृष्टि से देखना है। फूल तोड़ना, वह गुनाह है। फूल मोल लेना, वह भी गुनाह है। पर दूसरी दृष्टि से देखते हुए उसमें लाभ है। कौनसी दृष्टि, वह मैं आपको समझाऊँ।
आज कुछ लोग मानते हैं कि फूल में महादोष है और कुछ लोग फूल को भगवान पर चढ़ाते हैं। अब उसमें खरी हक़ीक़त क्या है? यह वीतरागों का मार्ग जो है, वह लाभालाभ का मार्ग है। दो फूल गुलाब के तोड़कर लाया, वह उसने हिंसा तो की। उसकी जगह पर से तोड़ा इसलिए हिंसा तो हुई ही है। और वह फूल खद के लिए काम में नहीं लेता। पर वह फूल भगवान पर चढ़ाए या फिर ज्ञानी पुरुष पर चढ़ाए, वह द्रव्यपूजा हुई कहलाएगी। अब यह हिंसा करने के लिए फाईव परसेन्ट का दंड करो और भगवान पर फूल चढ़ाए तो फोर्टी परसेन्ट प्रोफिट दो या फिर ज्ञानी पुरुष पर फूल चढ़ाएँ तो थर्टी परसेन्ट प्रोफिट दो। फिर भी पच्चीस प्रतिशत बचे न इसलिए लाभालाभ के व्यवहार के लिए है यह सारा जगत् । लाभालाभ का व्यापार करना चाहिए। और यदि लाभ कम होता हो और
पुष्प पंखुड़ी जहाँ दुख पाए... प्रश्नकर्ता : अभी तक जो पुष्प तोड़े होंगे, तो उनके कोई पाप दोष लगे होंगे?
दादाश्री : अरे, पुष्प एक हज़ार वर्ष तोड़े और एक ज़िन्दगी लोगों के साथ या घर में कषाय करे, घर में कलह करे, तो उससे अधिक इन कषायों का दोष बढ़ जाता है। इसलिए कलह पहले बंद करने का कहा है भगवान ने। पुष्पों का तो कोई हर्ज नहीं। फिर भी पुष्प ज़रूरत न हो तो नहीं तोड़ने चाहिए। ज़रूरत मतलब देवताओं को चढ़ाएँ तो हर्ज नहीं है। शौक के लिए नहीं तोड़ने चाहिए।
प्रश्नकर्ता : परन्तु ऐसा कहते हैं न, 'पुष्प पाँखड़ी ज्यां दुभाय जिनवरनी नहीं त्यां आज्ञा' (पुष्प पंखुड़ी जहाँ दुख पाए, जिनवर की नहीं वहाँ आज्ञा)।
दादाश्री : वह तो कृपालुदेव ने कहा है। तीर्थंकरों ने लिखा था, फिर कृपालुदेव ने तीर्थंकर के शब्द लिखे हैं। पर वह तो कहाँ पर? कि जिसे इस संसार की कोई चीज़ नहीं चाहिए, ऐसी श्रेणी उत्पन्न हो तब ! और आपको तो अभी यह बुशशर्ट पहनना है न?
प्रश्नकर्ता : वह भी इस्त्रीवाला!
दादाश्री : और वह भी फिर इस्त्रीवाला! इसलिए इस संसार के लोगों को तो हर एक चीज़ चाहिए। इसलिए कहते हैं कि, 'भगवान के सिर पर फूल चढ़ाना।' तो अपने तीर्थंकर भगवान की मूर्ति पर फूल रखते हैं या नहीं रखते? आपने नहीं देखा अभी तक? मूर्तिपूजा करने नहीं गए हैं न?! वहाँ मूर्ति पर फूल रखते हैं।
भगवान ने साधुओं से कहा था कि आप भावपूजा करना। और जैन द्रव्यपूजा साथ में करें। द्रव्यपूजा करने से उनकी अड़चनें सभी खतम हो