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________________ अहिंसा नहीं कोई फर्क, काँटें और मच्छर में यह मच्छर काटता है तब लोगों को मच्छर का दोष दिखता है और वो काँटा काटता है तब क्या करता है? इतना बड़ा काँटा लग जाए तो? उस काँटे में और मच्छर में फर्क नहीं है ज़रा भी, भगवान ने फर्क देखा नहीं है। जो काटता है न, वह आत्मा नहीं है। वे काँटे ही हैं सभी। उस काँटे का दोष नहीं दिखता न! उसका क्या कारण है? प्रश्नकर्ता : जीवित कोई निमित्त दिखता नहीं न वहाँ! दादाश्री : और उसमें जीवित दिखता है न, इसलिए वह समझता है कि इसीने मुझे काटा। 'खुद' भ्रांतिवाला, फिर जगत् उसे भ्रांतिवाला ही दिखा करता है। आत्मा किसी को काटता ही नहीं। यह सब अनात्मा होकर दंड दे रहा है जगत् को। परमात्मा दंड नहीं देते। आत्मा भी दंड नहीं देता, यह तो बबूल के काँटे ही सबको चुभते रहते हैं। पहाड़ पर से इतना बड़ा पत्थर गिरे सिर पर तो ऊपर देख लेता है कि किसी ने लुढ़काया या नहीं लुढ़काया? फिर कोई न दिखे तब चुप! और किसी ने अपने ऊपर कंकड़ मारा हो वहाँ हल्दीघाटी की लड़ाई कर लेता है। कारण क्या है? कि भ्रांतदृष्टि है! यह 'अक्रम विज्ञान' क्या कहता है? कि वह काँटा भी निमित्त है और व्यक्ति भी निमित्त है, दोष आपका ही है। इस फूल को कुचलें तो उसका फल नहीं आता और काँटे को कुचलें तो फल आता है, वैसे ही इन मनुष्यों में भी है। इसलिए सँभालकर चलो! काँटा चुभना या फिर बिच्छू का काटना दोनों कर्मफल है। यह फल आया, पर किसका फल? मेरा खुद का। तब कहे, 'उसे क्या लेना-देना?' वे तो बेचारे निमित्त हैं। भोजन करवानेला कौन होता है और परोसनेवाला कौन होता है? अहिंसा मैं दूंगा एक दिन वह हिसाब! तब जगत् को ठंडक लगेगी। नहीं तो ठंडक नहीं लगती। अनुभव में तो लेना पडेगा न! अनभव के स्टेज पर लें तब ही काम होगा न ! कि 'इसका क्या परिणाम आएगा' ऐसा रिसर्च तो करना पड़ेगा न! किसी का जीने का राइट तोड़ना चाहिए? इसकी मैंने जाँच भी करी हुई है फिर । क्या अक्कलवालों ने आबरू पाई! चूहा, वह बिल्ली का भोजन है। खाने दो न उसे! और यह छछूदर जाता हो न, तो बिल्ली उसे नहीं छूती। बिल्ली यदि भूखी ही हो और चूहा, जीवजंतु, जीवों को खा जाती हो तब छडूंदर को क्यों नहीं खाती? पर वह छडूंदर को नहीं छूती। इस पर विचार करना। ये कोई पुण्य करे थे इसलिए बैठे-बैठे खाने का मिला। और इन मज़दूरों को तो मेहनत करें उसके बाद पैसे लाएँ तब खाने का मिलता है। इसलिए हमें, अब किसी को दुःख नहीं हो, जानवर को-छोटे जीवजंतुओं को भी दु:ख नहीं हो उस तरह वर्तन रखना चाहिए। ऐसे तो लोग भगवान का नाम लेते हैं और जिनमें भगवान रहते हैं, उन्हें मारते रहते हैं। साँप निकले हो तो मार डालते हैं, खटमल को भी मार डालते हैं, ऐसे शूरवीर(!) लोग! इस तरह लोग मारते हैं सही? बड़े शूरवीर कहलाते हैं न?! इसलिए लोग मारने में शरवीर वापिस! और यह सर्जन किसका, जो कि विसर्जन में खुद तैयार हो जाता है?! आप सर्जन कर सको तो उसका विसर्जन कर सकते हो। कोई न्याय होगा या नहीं होगा? ऐसा है न, ये तो रिलेटिव व्यू पोइन्ट से खटमल हैं और रियल व्यू पोइन्ट से शुद्धात्मा हैं। आपको शुद्धात्मा को मारना है? नहीं पसंद हो तो बाहर जाकर डाल आना न! अब सबको मारकर मनुष्य सुख ढूँढता है इसमें। मच्छर मारना, खटमल मारना, जो आया हो उसे मारना और सुख ढूँढना, ये दोनों किस तरह साथ में हो सकता है? प्रश्नकर्ता : घर में चींटियाँ बहुत निकलती है तो क्या करना चाहिए? इसलिए सावधानी से चलना। यह जगत् बहुत अलग तरह का है। बिलकुल न्यायस्वरूप है। मैंने सारी ज़िन्दगी का हिसाब निकाला है न, वह हिसाब निकालते-निकालते इतना अच्छा हिसाब निकाला है, और जगत् को
SR No.009573
Book TitleAhimsa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages59
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Sermon
File Size36 KB
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